शिमला/शैल। भाजपा 2019 के लोकसभा चुनावों की तैयारियों में जुट गयी है। इसका पहला खुलासा मण्डी में हुए पहले पन्ना प्रमुखों के सम्मेलन में उस समय सामने आया जब प्रदेश अध्यक्ष सतपाल सत्ती और फिर गृह मन्त्री राजनाथ सिंह ने मण्डी से मौजूदा सांसद राम स्वरूप शर्मा को यहां से पुनः प्रत्याशी बनाये जाने की घोषणा की। मण्डी के इस सम्मेलन में केन्द्रिय मन्त्री जगत प्रकाश नड्डा और पंडित सुखराम शामिल नही थे और सुखराम ने इस सम्मेलन में राम स्वरूप को घोषित किये जाने पर यह कहकर सवाल उठा दिया कि सत्ती को नाम की घोषणा करने का कोई अधिकार नही है। पंडित सुखराम के इस एतराज का इतना असर हुआ कि सत्ती को सोलन में अपना यह ब्यान वापिस लेना पड़ा और साथ ही यह कहना पड़ा कि लोकसभा प्रत्याशीयों की घोषणा हाईकमान ही करेगा। मण्डी मुख्यमन्त्री जयराम का गृह जिला है। विधानसभा चुनावों में जब सुखराम परिवार को भाजपा में शामिल करके उनके बेटे अनिल शर्मा को टिकट दिया गया था तभी भाजपा मण्डी की दसों सीटों पर अपना कब्जा कर पायी थी। मण्डी में पंडित सुखराम परिवार का अपना एक प्रभाव है यह बहुत पहले से प्रमाणित हो चुका है। इसी प्रभाव के चलते सुखराम अपने पौत्र को भी सक्रिय राजनीति में उतारना चाहते हैं और इसके लिये उन्होंने लोकसभा टिकट दिये जाने की मांग रख दी है। स्मरणीय है कि उनके पौत्र ने विधानसभा चुनावों से बहुत पहले ही यह घोषित कर दिया था कि वह कांग्रेस के टिकट पर सिराज से चुनाव लड़ेंगे। इसके लिये उन्होंने कांग्रेस हाईकमान की स्वीकृति मिलने का दावा करते हुए यहां तक कह दिया कि पंडित सुखराम उनके लिये चुनाव प्रचार करेंगे।
लेकिन यह होने से पहले सुखराम परिवार भाजपा में शामिल हो गया। परन्तु इस सबसे यह स्पष्ट हो ही जाता है कि सुखराम अपने पौत्र को चुनावी राजनीति में उतारना चाहते हैं। इसके लिये लोकसभा चुनावों से ज्यादा बेहतर कोई मौका हो नही सकता। सूत्रों की माने तो सुखराम के लोग तो चुनाव प्रचार अभियान में जुट गये हैं अब यहां पर यह सवाल खड़ा होता है कि मण्डी के इस सम्मेलन में सत्ती और राजनाथ सिंह ने जो नाम की घोषणा कर दी क्या यह सब मुख्यमन्त्री की जानकारी और उनके विश्वास में लिये बिना किया जा सकता था शायद नहीं। पंडित सुखराम अपने पौत्र के अभियान मेें जुट गये हैं क्या इसकी जानकारी जयराम की सीआईडी ने उनको नही दी होगी। जबकि जंजैहली काण्ड को लेकर धूमल और जयराम सरकार के बीच जिस तरह के ब्यानों की नौबत आ गयी थी उसके बाद से तो मण्डी पर सीआईडी का ज्यादा फोकस रहा होगा। बल्कि जब मण्डी से मुख्यमन्त्री की पत्नी डाक्टर साधना ठाकुर की उम्मीदवारी की चर्चा उठी थी तब उस चर्चा को सुखराम के काऊंटर के रूप में देखा गया था। इस परिदृश्य में राजनीतिक पंडितों का मानना है कि मण्डी मेें अन्ततः सुखराम के पौत्र और मुख्यमन्त्री की पत्नी दोनों में से किसी के हाथ यह टिकट लगेगा। यदि सुखराम टिकट की लड़ाई हार जाते हैं तो उसके बाद उनकी अगली रणनीति क्या होगी इस पर अभी से नज़रें लग गयी हैं।
इसी तर्ज पर इस बार कांगड़ा में भी टिकट को लेकर रोचक दृश्य देखने को मिलेगा। शान्ता कुमार एक बार फिर चुनाव के लिये तैयार हैं लेकिन इस बार यहां से विद्यार्थी परिषद भी प्रबल दावेदारी कर रही है। इस समय कांगड़ा से भाजपा के प्रदेश संगठन मन्त्री पार्टी कार्यालय को कन्ट्रोल करके बैठे हैं तो यहीं से प्रदेश के संघ प्रमुख भी हैं। इस तरह कांगड़ा में चार-चार सत्ता केन्द्र हो गये हैं। संघ प्रमुख संजीवन ने सचिवालय में सरकारी बैठकों में भी शिरकत करनी शुरू कर दी है। जिससे स्पष्ट हो जाता है कि संघ अब सीधे तौर पर भी सरकार पर नज़र रखने लग गया है। यदि कांगड़ा में सत्ता के इन चारों केन्द्रो में एक सहमति न हो पायी तो यहां पर पार्टी की राह आसान नही होगी।
हमीरपुर में यदि उम्मीदवारी अनुराग या स्वयं धूमल में से ही किसी की होती है तो यहां पार्टी की स्थिति काफी सुखद रह सकती है। लेकिन पिछले दिनों जिस तरह से ऊना में यह प्रचार सामने आया है कि यदि सत्ती जीत गये होेते तो वह इस बार मुख्यमन्त्री होते। इसी के साथ यह भी जोड़ा जा रहा है कि हमीरपुर से सत्ती को भी हाईकमान उम्मीदवार बना सकती है। वीरभद्र ने यहां से कांग्रेस में राजेन्द्र राणा का नाम घोषित कर दिया है। वीरभद्र और जयराम के रिश्ते आम आदमी में चर्चा में हैं। फिर पिछले दिनों राजेन्द्र राणा और जयराम में हुआ संवाद भी चर्चा में आ चुका है। माना जा रहा है कि हमीरपुर का सारा सियासी गणित इन रिश्तों के गिर्द ही घूमेगा।
शिमला में भाजपा महिला उम्मीदवार की तलाश में है क्योंकि वर्तमान सांसद वीरेन्द्र कश्यप के मामले में आरोप तय होने के बाद अभियोजन पक्ष की गवाहियां चल रही हैं। कश्यप का मामला उच्च न्यायालय के निर्देशों पर ट्रायल कोर्ट में पहुंचा है। इस तर्क पर यहां से महिला उम्मीदवार की बात की जा रही है। लेकिन संयोगवश जो भी महिला चेहरे इस दौड़ में माने जा रहे हैं वह अपने-अपने क्षेत्र तक ही सीमित हैं। इस नाते यहां पर सबसे ज्यादा सशक्त उम्मीदवार एचएन कश्यप को माना जा रहा है। क्योंकि 2004 में पहला चुनाव हारने के बाद वह लगातार लोगों से संपर्क बनाये हुए हैं और पूर्व प्रशासनिक अधिकारी होने का भी उन्हे लाभ है। यदि किसी भी गणित में वह नज़रअन्दाज होकर घर बैठ जाते हैं तो उनका बैठना मात्र ही पार्टी पर भारी पड़ेगा। वैसे तो वह इस बार हर हाल में चुनाव लड़ने का मन बना चुके हैं और उनकेे समर्थकों ने भी इसका अनुमोदन कर दिया है। पार्टी के भीतर उभर रही इन स्थितियों के परिणाम दूरगामी होंगे। इसी परिदृश्य में सरकार के पास इस एक वर्ष के कार्यकाल में कोई बड़ी उपलब्धि भी नहीं है। अभी सरकार एक वर्ष पूरा होने पर बड़ा जश्न मनाने जा रही है। इस मौके पर सभी विभाग अपनी-अपनी एक वर्ष की उपलब्धियों का ब्योरा पोस्टर छापकर जनता के सामने रखने जा रहा है। हर विभाग इस आश्य के तीस- तीस हजार पोस्टर छापेगा। इन पोस्टरों में जो कुछ दर्ज रहेगा उसकी पड़ताल जनता आसानी से कर लेगी क्योंकि आरटीआई के माध्यम से ही तथ्य जनता के सामने आ जायेंगे। अभी सरकार के उपर जो पत्र बंमों के हमले अपने ही लोगों ने किये हैं वह पहले ही जनता के सामने हैं और कल तो बड़े पैमाने पर यह जनता में चर्चा का विषय बनेंगे ही। एक वर्ष के कार्यकाल में सरकार अधिकांश में अधिकारियों के तबादलों में ही व्यस्त रही है और अन्त में जो नियुक्तियां /तबादले सामने आये हैं उनसे सरकार की कार्यशैली और नीयत दोनों पर ही गंभीर सवाल भी खड़े हो गये हैं। इस परिदृश्य में लोकसभा चुनाव जयराम सरकार के लिये कड़ी परीक्षा होने जा रहे हैं।