आईजीएमसी में टर्शरी कैंसर सैंटर का निर्माण हुआ लाल फीताशाही का शिकार

Created on Tuesday, 11 December 2018 05:51
Written by Shail Samachar

शिमला/शैल। राजधानी स्थित इन्दिरा गांधी मैडिकल कॉलिज में तीन साल पहले 45 करोड़ के निवेश से कन्द्रे ने टर्शरी कैंसर सैन्टर खोले जाने को स्वीकृति दी थी। इसके लिये 15 करोड़ की पहली किश्त भी जारी कर दी गयी थी जो आज तक बिना खर्च किये पड़ी हुई है। यह सैन्टर तीन साल में बनकर तैयार होना था। यदि ऐसा नही हो पाता है तो यह स्वीकृति 31 मार्च 2019 को समाप्त हो जायेगी और यह 45 करोड़ लैप्स हो जायेगा। अभी 2018 का दिसम्बर चल रहा है और इस सैन्टर के नाम पर अब तक एक ईंट भी नहीं लग पायी है जब यह सैंटर स्वीकार हुआ था तब शिमला में एनजीटी की ओर से निर्माणों पर कोई प्रतिबन्ध नही था। लेकिन एनजीटी के फैसले के अनुसार ऐसे सरकारी निर्माणों को इस प्रतिबन्ध से बाहर रखा गया है जो आवश्यक और आपात सेवाओं के दायरे में आते हैं। इस तरह इस सैन्टर के निर्माण में एनजीटी के फैसले में कोई बाधा नही हैं केवल इस फैसले के तहत निर्माणों की स्वीकृति देने के लिये बनाई कमेटीयों के पास इसका प्रारूप जाना है। दुर्भाग्य है कि प्रदेश की अफसरशाही अभी तक इसके प्रारूप को इन कमेटीयों तक नही ले जा पायी है। दुर्भाग्य तो यह है कि प्रदेश की जयराम सरकार के स्वास्थ्य मंत्री विपिन परमार को 45 करोड़ से इंदिरा गांधी मेडिकल कालेज में बनने वाले टर्शरी कैंसर सेंटर का स्टेटस ही नहीं पता है। जयराम सरकार को सत्ता में आए हुए एक साल हो गया लेकिन न तो मुख्यमंत्री व न ही मंत्री की अपने विभागों पर पकड़ बनी है।
राजधानी में प्रेस क्लब शिमला की ओर से आयोजित मीट द मीडिया कार्यक्रम में स्वास्थ्य मंत्री परमार से पूछा गया कि आइजीएमसी टर्शरी कैंसर सेंटर का निर्माण जयराम सरकार एक साल के कार्यकाल में क्यों शुरू नहीं कर पाई। परमार ने कहा कि इस मामले को मंजूरी के लिए एनजीटी को भेज दिया है। उन्होंने कहा कि यह सेंटर कोर एरिया में बन रहा है ऐसे में एनजीटी की इजाज़त लेनी जरूरी है। यह पूछने पर कि एनजीटी में सरकार की ओर से दायर अर्जी सुनवाई के लिए कब लगी है उन्होंने कहा कि सुपरवाइजरी कमेटी ने छः नवंबर को इस सेंटर को हरी झंडी दे दी है।
मंत्री परमार को इस टर्शरी कैंसर सेंटर के बारे में कुछ भी पता नहीं है। यहां तक जब मंत्रा ने स्वास्थ्य विभाग की समीक्षा बैठक की थी तो भी यह सेंटर एजेंडे में नहीं था।
जबकि सही तस्वीर यह है कि बड़ी जददोजहद के बाद इस मसले पर एनजीटी के फैसले के बाद मार्च में गठित इंप्लीमेंटेशन कमेटी की 2 नवंबर को हुई बैठक में इस मसले पर मौखिक चर्चा हुई थी। चूंकि मुख्यमंत्री से लेकर मंत्री और मंत्री से लेकर अतिरिक्त मुख्य सचिव स्वास्थ्य के एजेंडे में यह महत्वपूर्ण सेंटर पिछले एक साल से है ही नहीं। ऐसे में दो नवंबर की बैठक में इस मसले को ले जाने के लिए औपचारिकताएं ही पूरी नहीं की जा सकी थी। इसके बाद तीन महीने में एक बार होने वाली सुपरवाइजरी कमेटी की बैठक 13 नवंबर को रखी गई थी। इस बैठक से पहले इस मसले को सर्कुलेशन से इंप्लीमेंटेशन कमेटी के सदस्यों को भेजा गया 13 नवंबर को सुपरवाइजरी कमेटी ने इस पांच मंजिलें सेंटर को बनाने के लिए हरी झंडी दे दी। लेकिन सिफारिश की कि स्वास्थ्य विभाग इस मसले को आखिरी मंजूरी के लिए एनजीटी के समक्ष ले जाए। लेकिन 13 नवंबर से लेकर अब तक कहीं कुछ नहीं हुआ है।
सुपरवाइजरी कमेटी की प्रोसीडिंग्ज अब निकलनी हैं। हालांकि सुपरवाइजरी कमेटी के सदस्य सचिव की ओर से मामला नगर निगम को भेजा गया है। अब यह मामला नगर निगम में लटका है। मामला आइजीएमसी तक नहीं पहुंचा है। यह मामला नगर निगम से आइजीएमसी के पास जाएगा व आइजीएमसी इसे सचिवालय अतिरिक्त मुख्य सचिव स्वास्थ्य के पास एनजीटी के समक्ष उठाने को ले जाएगा। लेकिन अभी कुछ नहीं हुआ। आइजीएमसी के अधिकारियों ने माना कि मामला उनके पास नहीं आया है।
ऐसे में जयराम सरकार के स्वास्थ्य मंत्री गलत जानकारी सार्वजनिक कर रहे हैं। असल में उन्हें इस मामले को लेकर कुछ पता ही नहीं है। हालांकि मीट द मीडिया में उन्होंने यह भरोसा जरूर दिया कि इस पैसे को लैप्स नहीं होने दिया जाएगा। अगर इस सेंटर का काम शुरू नहीं हुआ तो यह पैसा 31 मार्च 2019 को लैप्स हो जाएगा। इस सेंटर को 15 करोड़ की किश्त तीन साल पहले आ चुकी है। पहले पूर्व मुख्यमंत्री वीरभद्र सिंह ने इस सेंटर को लटकाया व जयराम सरकार इसे तरजीह नहीं दे रही है। मार्च से लेकर अब तक सरकार बुहत कुछ कर सकती थी। इंप्लीमेंटेशन कमेटी व सुपरवाइजरी कमेटी से भी यह मसला मीडिया के दखल के बाद आगे बढ़ा है।