सर्वोच्च न्यायालय के फैसले के तहत मातृवन्दना को दी गयी जमीन पर उठे सवाल

Created on Tuesday, 01 January 2019 09:39
Written by Shail Samachar

शिमला/शैल। जयराम सरकार ने आरएसएस की ईकाई मातृवन्दना को उसकी गतिविधियों के संचालन के लिये नगर निगम शिमला क्षेत्र में 22669.38 वर्ग मीटर भूमि लीज़ पर दी है। यह भूमि नगर निगम शिमला के क्षेत्र में आती है इस कारण से इसमें नगर निगम से अनापत्ति प्रमाणपत्र चाहिये था। इसके लिये यह मामला नगर निगम को भेजा गया और निगम प्रशासन ने मातृवन्दना से आये इस प्रस्ताव को निगम की बैठक में विचार के लिये प्रस्तुत कर दिया निगम के हाऊस ने इस पर विचार करके इसे अनुमोदित करके अनापत्ति प्रमाण पत्र जारी कर दिया।
मातृवन्दना से जब इसके लिये प्रस्ताव आया तब निगम प्रशासन ने इस प्रस्ताव को निगम हाऊस में रखने के लिये जो प्रारूप तैयार किया उसमें स्पष्ट कहा गया था कि राजस्व अभिलेख के अनुसार भूमि की मालिक हिमाचल प्रदेश सरकार का कब्जा स्वयं तावे हुकम्म बर्तन दारान है। सम्बन्धित भूभाग नगर निगम की परिधि में आता है परन्तु नगर निगम शिमला न तो भूमि का मालिक है न ही कब्जाधारी है। निगम की इस टिप्पणी से स्पष्ट हो जाता है कि यह भूमि सरकार की है और कब्जा बर्तन दारान का है। इस नाते यह भूमि विलेज काॅमन लैण्ड की परिभाषा में आती है।
सर्वोच्च न्यायालय के 28-1-2011 को आये फैसले में इन जमीनों के ऐसे आवंटन पर रोक लगा रखी है। शीर्ष अदालत ने अपने फैसले में कहा हैं ...


सर्वोच्च न्यायालय के इस फैसले पर अमल करते हुए 10 मार्च 2011 को ही सारे जिलाधीशों को आवश्यक कारवाई के निर्देश जारी कर दिये और 29 अप्रैल को इस बारे में सर्वोच्च न्यायालय को भी सूचित कर दिया था। विलेज काॅमन लैण्ड का आवंटन सरकार 1974 में पारित Village common lands vesting and Utilisation Act. के तहत करती है। इस एक्ट में 1981, 2016 और 2017 में संशोधन किये गये हैं और इसमें राजनीतिक दलों और सामाजिक संस्थाओं के मुताबिक भी एक बीघा जमीन देने का प्रावधान किया गया है। इस तरह सरकार के अपने संशोधन के मुताबिक भी एक बीघा से अधिक जमीन देने का प्रावधान नही है। सर्वोच्च न्यायालय के फैसले में ऐसी जमीनों के आवंटन पर पूरी तरह प्रतिबन्ध लगा दिया है और ऐसे आवंटनों का प्रावधान करने वाले सारे निमयों/कानूनों को एकदम गैर कानूनी करार दे रखा है। सर्वोच्च न्यायालय के फैसले और सरकार के अपने ही संशोधन के मुताबिक मातृवन्दना को इतनी जमीन नही दी जा सकती है। इस कारण से कांग्रेस ने अपने आरोप पत्र में भी यह मुद्दा उठाया है।
शीर्ष अदालत के फैसले और सरकार के अपने ही संशोधन के बारे में संवद्ध प्रशासन को जानकारी होनी ही चाहिये और रही भी होगी। लेकिन इस सबके बाद भी करीब 30 बीघा जमीन का आंवटन कर देना निश्चित रूप से सरकार पर गंभीर सवाल उठाता है इस आवंटन को लेकर यह सवाल उठाया जा रहा है कि क्या सरकार ने इस आवंटन के लिये प्रशासन पर दबाव डाला गया या प्रशासन ने मुख्यमन्त्री के सामने सही स्थिति ही नहीं रखी। स्थिति जो भी रही हो इसका परिणाम सरकार के लिये सुखद नही होगा।