जब पूंजीगत प्राप्तियां सकल ऋण है तो क्या इस वर्ष राजस्व व्यय पूरा करने के लिये 14000 करोड़ का कर्ज लिया गया?

Created on Tuesday, 05 February 2019 09:21
Written by Shail Samachar

शिमला/शैल। मुख्यमन्त्री जयराम ठाकुर ने जब सदन में 2018 के लिये 41440 करोड़ रूपये के कुल खर्च का बजट रखा था तब उन्होने वीरभद्र शासन पर यह आरोप लगाया था कि इस शासनकाल में 18787 करोड़ का अतिरिक्त कर्ज लिया गया है। जयराम ने सदन में आंकड़ेे रखते हुए खुलासा किया था कि जब भाजपा ने 2007 में सत्ता संभाली थी तब प्रदेश पर 19977 करोड़ का कर्ज था। 31 दिसम्बर 2012 को सत्ता छोड़ते समय यह कर्ज 27598 करोड़ हो गया था। लेकिन अब 18 दिसम्बर को यह बढ़कर 46,385 करोड़ हो गया है। जयराम ठाकुर को 46385 करोड़ का कर्ज विरासत में मिला है। इस विरासत के साथ जयराम ने 41440 करोड़ के कुल खर्च का बजट पेश किया था जो अब 3142.65 करोड़ की अनुपूरक मांगेे आने के बाद कुल 44582.65 करोड़ पर पहुंच गया है।
मुख्यमन्त्री जयराम ने जब 41440 करोड़ के कुल खर्च का बजट सदन में रखा था उसमें सरकार की कुल राजस्व प्राप्तियां 30400.21 करोड़ दिखाई गयी थी और राजस्व व्यय 33567.97 करोड़ दिखाया गया था। इस तरह राजस्व व्यय और आय में 3167.76 करोड़ का अन्तर था। राजस्व आय के बाद सरकार पूंजीगत प्राप्तियों के माध्यम से पैसा जुटाती है। सरकार की यह पूंजीगत प्राप्तियां 7764.75 करोड़ रही है। जिनमें 7730.20 करोड़ की प्राप्तियां कर्ज के रूप में है। यह बजट दस्तावेजों में स्पष्ट रूप से दर्ज है। इस तरह पूंजीगत प्राप्तियों और राजस्व प्राप्तियों को मिलाकर सरकार के पास कुल 38164.96 करोड़ आता है और राजस्व व्यय और पूंजीगत व्यय को मिलाकर कुल खर्च 41439.94 करोड़ हो जाता है। इस तरह सरकार के पास 3274.98 करोड़ का ऐसा खर्च बच जाता है जिसके लिये कोई साधन बजट में नही दिखाया गया है। जिसका सीधा सा अर्थ यह रहता है कि इस खर्च को पूरा करने के लिये पूंजीगत प्राप्तियों के अतिरिक्त और कर्ज लेना पड़ेगा।
अब सरकार 3142.65 करोड़ की अनुपूरक मांगे लेकर आयी है। यह मांगे आने का अर्थ है कि सरकार का इस वर्ष का कुल खर्च बढ़ कर 44582.65 करोड़ का हो गया है। इन खर्चो को पूरा करने क लिये क्या अतिरिक्त उपाय किये गये हैं इसका कोई उल्लेख अनुपूरक मांगों में नही है। स्वभाविक है कि इस खर्च को पूरा करने के लिये या तो सरकार को और कर्ज लेना पड़़ेगा या फिर और टैक्स जनता पर परोक्ष/अपरोक्ष रूप से लगाने पड़ेंगे। इस तरह यदि पूंजीगत प्राप्तियों के नाम पर जुटाये गये ऋण और उसके बाद भी खुले छोड़ेे गये खर्चो और अब आयी अनुपूरक मांगो को मिलाकर देखा जाये तो जो आरोप मुख्यमन्त्री ने वीरभद्र शासन पर अतिरिक्त कर्ज लेने का लगाया था आज यह सरकार स्वयं भी उसी चक्रव्यूह में फंसती नज़र आ रही है। अब अनुपूरक मांगे आने के बाद सरकार का इस वित्तिय वर्ष का कुल राजस्व व्यय बढ़कर 44582.65 करोड़ को पहुंच गया है लेकिन राजस्व की आय तो पूराने 30400.21 करोड़ के आंकड़े पर ही खड़ी है। इससे यह सामने आता है कि इस राजस्व व्यय को पूरा करने के लिये सरकार को 14000 करोड़ का ऋण लेना पड़ा है। यह खुलासा एफआरवीएम अधिनियम के तहत सदन में पेश बजट दस्तावेजों में सामने आता है। इस अधिनियम के तहत बजट दस्तावेजों में व्याख्यात्मक विवरणिका सदन में रखना अनिवार्य है। इस विवरणिका में वित्तिय वर्ष में होने वाला कुल राजस्व व्यय और कुल राजस्व आय के आंकड़े रखे जाते हैं। इसी में पूंजीगत प्राप्तियों का आंकड़ा भी दिखाया जाता है। यह सारी विवरणिका पहले पन्ने पर ही दर्ज रहती है। इस विवरणिका को देखने से सामने आ जाता है कि पूंजीगत प्राप्तियों को सकल ऋण माना जाता है। वर्ष 2018 -19 में यह पूंजीगत प्राप्तियां सकल ऋणों के रूप में 7730.20 करोड़ दिखायी गयी हैं। इन आंकड़ो को देखने के बाद स्पष्ट हो जाता है कि कुल खर्च को पूरा करने के लिये 14000 करोड़ के ऋण की आवश्यकता है क्योंकि कुल आय तो 30400 करोड़ से बढ़ नही पायी है। इस तरह यह सवाल उठना स्वभाविक है कि यह स्थिति कब तक और कितनी देर तक ऐसे चल पायेगी? यह स्थिति सबसे अधिक चिन्ता और चर्चा का विषय बनती है और एक लम्बे समय से ऐसे ही चली आ रही है। लेकिन आज तक इस पर न तो कभी माननीयों ने सदन में कोई चर्चा उठायी है और न ही प्रदेश के मीडिया ने इसे जनता के सामने रखा है।