शिमला/शैल। राजधानी के उप नगर न्यू शिमला मे मुख्य सड़क के किनारे बने दुर्गा मन्दिर को लेकर नगर निगम शिमला के कलैक्टर कोर्ट से आये फैसले के अनुसार यह पूरा मन्दिर सरकार/नगर निगम की जमीन पर बना है। इस जमीन पर मन्दिर बनाने के लिये सरकार/नगर निगम से यह जमीन नही ली गयी है। इस तरह जब मन्दिर निर्माता किसी भी तरह से इस जमीन के मालिक ही नही है तो स्वभाविक है कि सरकारी जमीन पर अतिक्रमण करके अवैध रूप से इस मन्दिर का निर्माण हुआ है। मन्दिर निर्माण के लिये कोई नक्शा आदि भी निगम से स्वीकृत नही करवाया गया है। नगर निगम की जमीन के खसरा न. 3244/22 में 29.88 वर्ग मीटर और खसरा न. 3251/ में 21.63 वर्ग मीटर भूमि पर मन्दिर का निर्माण हुआ है। इस जमीन की निशानदेही 3-2-2010 को सम्बन्धित नायब तहसीलदार कानूनगो और हल्का पटवारी की देखरेख में हो गयी थी। निशानदेही के वक्त मन्दिर का निर्माण करवाने वाले भी मौके पर मौजूद रहे हैं। इस निशानदेही में यह स्पष्ट रूप से आ गया था कि यह जमीन सरकार/नगर निगम की है। इसी कारण से मन्दिर निर्माताओं ने इस निशानदेही को कोई चुनौती नही दी और यह स्वीकार कर लिया कि यह निर्माण अवैध रूप से सरकारी जमीन पर हो रहा है।
3.2.2010 को निशानदेही हो जाने के बाद नगर निगम ने कलैक्टर की कोर्ट में 2-11-2010 इस संबंध में मामला दायर कर दिया। इस मामले में दीपक रोहाल और अश्वनी ठाकुर को प्रतिवादी बनाया गया। 18-11-2010 को प्रतिवादियों को इस बारे में नोटिस भेजे गये। लेकिन नोटिस के बाद प्रतिवादी इसमें कोई जवाब दायर नही कर पाये। जवाब के लिये सात बार मौका दिया गया लेकिन कोई जवाब नही आया। इसी बीच प्रदेश उच्च न्यायालय में आयी एक जनहित याचिका CWP12 No. 08/2018 में उच्च न्यायालय ने कलैक्टर नगर निगम को ऐसे 36 मामलों को तुरन्त निपटाने के आदेश दिये। यह मामले दो माह में निपटाये जाने थे। उच्च न्यायालय के इन निर्देशों के बाद इस मामले में कारवाई आगे बढ़ी और अन्ततः 13-6-2018 को कलैक्टर नगर निगम ने प्रतिवादियों के खिलाफ फैसला सुना दिया। फैसले में इस निर्माण को गैर कानूनी/अवैध कारार देकर इसे गिराने और इस जमीन को नगर निगम को सौंपने के आदेश किये हैं। इन आदेशों की अनुपालना सुनिश्चित करने के लिये नगर के अधीक्षक एस्टेट, लीज़ निरीक्षक और इन्सपैक्टर तहबाज़ारी की जिम्मेदारी लगाई गयी है।
निगम के कलैक्टर कोर्ट से यह फैसला आये आठ माह का समय हो गया है। कलैक्टर के फैसले पर किसी ऊपरी अदालत का कोई स्टे नहीं है। लेकिन इसके बावजूद इस फैसले पर अब तक अमल नहीं हो पाया है। जब यह मामला 2010 में निशानदेही के बाद कलैक्टर के कोर्ट में दायर हुआ था तब इस मन्दिर का निर्माण चल रहा था और आज तक इसमें कुछ न कुछ काम चला ही रहता है। निशानदेही में ही स्पष्ट हो गया था कि यह जमीन सरकार/नगर निगम की है। इसमें नगर निगम प्रशासन इस निर्माण को कभी भी बलपूर्वक बन्द करवा सकता था जैसा कि अन्य मामलों में अक्सर होता है। लेकिन इस मामले में आज तक ऐसा कुछ भी नही हुआ है। अब भी जून 2018 में आये फैसले पर आजतक अमल न हो पाने से यही सन्देश उभर रहा है कि आस्था कानून पर भारी पड़ती जा रही है।