जब आऊटसोर्स, आर.के.एस. और पीटीए में नियमितिकरण का प्रावधान ही नही तो क्यों चल रही हैं यह योजनाएं सरकार की नीयत और नीति पर उठे सवाल

Created on Tuesday, 19 March 2019 10:41
Written by Shail Samachar

शिमला/शैल। प्रदेश में जनवरी 2018 तक पिछले तीन वर्षों में कितने कर्मचारियों/अधिकारियों को सेवा विस्तार दिया गया है यह सवाल इस बार बजट में 18 फरवरी को रमेश धवाला ने पूछा था। इसके जवाब में सरकार ने कहा है कि सूचना एकत्रित की जा रही है। यह सवाल वीरभद्र सरकार के कार्यकाल को लेकर था और इस सरकार पर भाजपा का यह आरोप रहता था कि इसे रिटायर्ड और टायर्ड लोग चला रहे हैं। लेकिन आज यह सूचना सरकार के पास उपलब्ध न होने से यही उभरता है कि या तो भाजपा का यह आरोप ही गलत था या फिर यह सरकार भी उसी नक्शे कदम पर चल रही है। इसी तरह मोहन लाल ब्राक्टा, मुकेश अग्निहोत्री और विक्रमादित्य सिंह का सवाल आऊट सोर्स कर्मचारियों को लेकर था। सरकार से पूछा गया था कि सरकारी विभागों/उपक्रमों में कितने कर्मचारी आऊट सोर्स पर काम कर रहे हैं। इन पर कितना खर्च हो रहा है कौन सी कंपनीयों के माध्यम से इन्हें रखा गया है। इन्हें पक्का करने की कोई नीति है या नहीं। सरकार ने एक वर्ष में आऊट सोर्स पर कितने कर्मचारी रखे हैं इस सवाल के जवाब में भी सरकार ने यह कहा कि सूचना एकत्रित की जा रही है। स्मरणीय है कि वीरभद्र सरकार के कार्यकाल में आऊट सोर्स कर्मचारियों ने आन्दोलन तक किया था उनकी मांग थी कि उन्हें पक्का करने की योजना बनायी जाये। 35000 कर्मचारी आऊट सोर्स पर रखे होने का आंकड़ा आया था। जयराम सरकार ने इन कर्मचारियों को हटाया नही हैं बल्कि बिजली बोर्ड में जो नया ठेका दिया जा रहा था उसमें फिर से टैंडर बुलाने का फैसला लिया गया है। जब तक नये टैण्डर पर फैसला नही हो जाता है तब तक पुरानी ही कंपनी को विस्तार दिया गया है।
स्वास्थ्य विभाग में अब नर्सों की भर्ती भी आऊट सोर्स के माध्यम से की जा रही है। इससे पहले स्वास्थ्य विभाग में राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन में 1061 स्टेट एडस कन्ट्रोल सोसायटी में 173, आर के एस में 94, और ईएसआई सोसायटी में 6 लोगों को रखा गया है। स्वास्थ्य विभाग में कार्यरत इन सोसायटीयों के माध्यम से काम कर रहे कर्मचारियों को नियमित करने का नियमों में कोई प्रावधान नही है। सोसायटीयों के माध्यम से रखे गये कर्मचारियों को कभी भी नियमित नहीं किया जा सकेगा। कल को यह लोग भी सरकार के खिलाफ आन्दोलन करने वालों में शामिल हो जायेंगे यह तय है।
इसी तरह शिक्षा विभाग की स्थिति तो और भी दयनीय है। इस समय प्रदेश स्कूल प्रबन्धन कमेटीयों के माध्यम से 2700 अध्यापक काम कर रहे हैं। इसके अतिरिक्त पैट, पीटीए, पीटीए-जी आईए और गवर्नमैन्ट कान्ट्रैक्ट पर सहायक प्रोफैसर 819, पीजीटी 2121, टीजीटी 2941 डीपीई 190, सी एण्ड वी 3757 और जेबीटी 1207 काम कर रहे हैं। लेकिन इन 11035 लोगों का भविष्य क्या होगा? क्या यह नियमित हो पायेंगे? इसको लेकर सन्देह बना हुआ है। इस संद्धर्भ में सर्वोच्च न्यायालय में 2017 में तीन याचिकाएं दायर हुई थी जो अब तक लंबित चल रही है। इन 11035 लोगों के अतिरिक्त प्रदेश में 27000 लोग एसएमसी के माध्यम से काम कर रहे हैं। इस तरह करीब 14000 लोगों का भविष्य अकेले शिक्षा विभाग में ही अनिश्चिता में चल रहा है। क्योंकि इन्हें नियमित करने का नियुक्ति एवम् पदोन्नत्ति नियमों में कोई प्रावधान है ही नहीं। और न ही राज्य सरकार यह प्रावधन करने में सक्षम है।
इस परिदृश्य में यह सवाल पैदा होता है कि जब इन्हें अध्यापकों की स्कूलों में आवश्यकता है तो फिर इन्हें नियमित प्रक्रिया के तहत ही क्यों नही भरा जा रहा है। क्या इस तरह से भर्ती करने में मैरिट और आरक्षण आदि के रोस्टर को नजरअन्दाज करने में आसानी होती है। इसलिये ऐसी प्रक्रिया का सहारा लिया जा रहा है। प्रदेश में पीटीए के तहत शिक्षकों की भर्ती करने की योजना 2006 में बनाई गयी थी। इस योजना के तहत पी टीए को ग्रान्ट-इन-ऐड का प्रावधान किया गया था। 29-9-2006 को अधिसूचित हुई इस योजना के तहत हुई भर्तीयांे पर 28 जनवरी 2008 को एक जांच बिठाई गयी थी। इस पर 7-3-2008 को 16 पन्नों की एक जांच रिपोर्ट सरकार को सौंपी गयी थी। इस रिपोर्ट में कहा गया है कि ग्रान्ट- इन-ऐड नियमों में इन बिन्दुओं पर कुछ नहीं कहा गया है।

1. The GIA Rules specify the maximum amount of grant-in-aid admissible for each post filled but do not lay down any specific emoluments to be paid to the appointees.
2. Period of employment : GIA Rules are silent on the subject. It may please be clarified if there are any other instructions in this regard. The actual process followed by PTAs in this matter may be elucidated.
3. Terms and conditions of employment by PTA: GIA Rules are silent on the subject.
4. Selection process: GIA Rules are silent on the process to be followed by PTAs.
5. Administrative and financial arrangements by PTAs for the scheme: GiA Rules are silent on the subject.
6. There is nothing in the GiA Rules about the leave admissible to the PTA appointees.
GiA Rules are silent on the social security of the PTA appointees. There is nothing about PF contributions and /or insurance for them.
There is nothing on evaluation and appraisal of the work and conduct of the PTA appointees except that the PTA appointees will work under overall supervision of the head of the institution. The GiA Rules are silent on the role of PTAs after the selection.
There is no right to appeal in the GiA Rules and there is no mechanism to addresss the grievances of PTA appointees.
7. PTAs accountability and procedural requirements: The GiA Rules are silent on the role, responsibility, accountability of the PTAs in relation to the teachers appointed by them.

इस जांच रिपोर्ट में आये इन बिन्दुओं पर आज तक वैसी ही स्थिति बनी हुई है। जबकि इसके तहत आज भी स्कूलों में शिक्षक भर्ती किये जा रहे हैं। इन्ही बिन्दुओं पर 2017 में सर्वोच्च न्यायालय में तीन याचिकाएं दायर हुई हैं। इस परिदृश्य में यह सवाल उठना स्वभाविक है कि जब पीटीए के नियम इन बिन्दुओं पर खामोश हैं और 2006 से लेकर आज तक सरकार इसमें कोई संशोधन भी नही कर पायी है तो क्या जानबूझकर सरकार हजारों लोगों के भविष्य से खिलवाड़ कर रही है। आऊट सोर्स के माध्यम से रखे गये लोगों को नियमित करने का प्रावधान नही है। पीटीए और आर के एस आदि के तहत रखे कर्मचारी नियमित नही किये जा सकते तो फिर क्या यह योजनाएं लोगों की मजबूरी का फायदा उठाने के लिये है।