आसान नही होगी भाजपा की चुनावी डगर, जयराम की प्रतिष्ठा आयी दाव पर

Created on Monday, 25 March 2019 11:28
Written by Shail Samachar

शिमला/शैल। भाजपा ने प्रदेश की चारों लोकसभा सीटों के लिये उम्मीदवारों का ऐलान कर दिया है। इस ऐलान के तुमाबिक कांगड़ा से शान्ता कुमार की जगह अब जयराम के मन्त्री किश्न कपूर को उम्मीदवार बनाया गया है। शिमला आरक्षित सीट से ‘‘ कैश आन कैमरा’’ का मामला झेल रहे वीरेन्द्र कश्यप का टिकट काट कर उनकी जगह पच्छाद के विधायक सुरेश कश्यप को टिकट दिया गया है। हमीरपुर और मण्डी से पुराने ही चेहरों को चुनाव में उतारा गया है। भाजपा की इस सूची के बाहर आते ही यह चर्चा शुरू हो गयी है कि क्या इन चेहरों के सहारे भाजपा 2014 की तरह फिर से चारों सीटों पर कब्जा कर पायेगी या नही। इसका सही आकलन तो प्रतिद्वन्दी कांगे्रस की टीम की घोषणा के बाद ही किया जा सकेगा। लेकिन इससे हटकर भी यह सवाल अपनी जगह खड़ा रहता है कि भाजपा के इन उम्मीदवारों की अपनी-अपनी मैरिट क्या है। क्योंकि ऐसा नही है कि बदले गये उम्मीदवारों के स्थान पर लाये गये लोग पहली बार चुनाव का समाना कर रहे हों। किश्न कपूर वरिष्ठ मन्त्री हैं और लम्बे समय से विधायक चुनकर आ रहे हैं। बतौर मन्त्री भी उनके विभाग को लेकर लोगों में कोई बहुत ज्यादा शिकायतें नही हैं। सुरेश कश्यप भी इस समय विधायक हैं। हां, वह विधायक के नाते कोई बहुत ज्यादा अनुभवी नही हैं। अभी संपन्न हुए बजट सत्र में उनके नाम से केवल आठ प्रश्न सदन में आये हैं और इन प्रश्नों में भी उनका फोकस अपने विधानसभा क्षेत्र तक ही सीमित रहा है। इससे स्पष्ट हो जाता है कि उन्हें पूरे शिमला संसदीय क्षेत्र की भी अपने स्तर पर सीधी जानकारी नही रही होगी। जबकि मण्डी के रामस्वरूप शर्मा मौजूदा सांसद भी हैं और इससे पहले पार्टी के प्रदेश संगठन मन्त्री भी रह चुके हैं इस नाते उन्हें अपने चुनाव क्षेत्र में परिचय की आश्वयकता नही है। इसी तरह हमीरपुर से अनुराग ठाकुर की स्थिति है वह चैथी बार सांसद बनने जा रहे हैं। क्रिकेट में जितना काम उन्होने पूरे प्रदेश में किया है उसकी राष्ट्रीय स्तर पर अपनी एक अलग ही पहचान है। फिर धूमल की विरासत उनकी एक बहुत बड़ी धरोहर है। इस नाते अनुराग ठाकुर सबसे सशक्त उम्मीदवार माने जा रहे हैं।
लेकिन इस सबके बावजूद आज यह दावे से नही कहा जा सकता कि भाजपा को चारों सीटों पर सफलता मिल ही जायेगी। क्योंकि यह जग जाहिर है कि कांगड़ा से शान्ता कुमार का टिकट अन्तिम क्षणों में काटा गया। मुख्यमन्त्री जयराम की मुलाकात के बाद वह यह ब्यान देने पर राज़ी हुए कि वह चुनाव नही लड़ना चाहते। सब जानते है कि वह पूरी तरह से चुनावी काम में जुट गये थे कार्यकर्ताओं/पन्ना प्रमुखों की बैठके ले रहे थे। बल्कि जब उनकी इस सक्रियता पर यह सवाल आया कि इस बार किसी गद्दी नेता को टिकट दिया जाना चाहिये तब उनकी तुरन्त यह प्रतिक्रिया आयी कि यह कोई गद्दी युनियन का चुनाव नही हो रहा है। हांलाकि इस प्रतिक्रिया के लिये उन्हे गद्दी समुदाय को स्पष्टीकरण तक देना पड़ा। इस परिदृश्य में जब उनका टिकट कटा तब कुछ हल्कों में तो यहां तक चर्चा उठ गयी कि शान्ता कुमार को चुनावी राजनीति से जिस चुतराई के साथ जयराम ने बाहर कर दिया ऐसा तो धूमल भी नही कर पाये थे। अब जब उनके स्थान पर किश्न कपूर आ गये हैं तब उनका यह कहना कि वह अब केवल विवेकानन्द ट्रस्ट का ही काम देखेंगे अपने में बहुत कुछ कह जाता है। फिर चुनाव प्रचार अभियान में यह खुलकर सामने आ जायेगा कि उनकी सक्रियता का स्तर क्या रहता है।
इसी तरह मण्डी संसदीय क्षेत्र में पंडित सुखराम अपने पौत्र आश्रय शर्मा के लिये इस हद तक जा पंहुचे है कि वह कांग्रेस में भी अपने पुराने रिश्तों के सहारे टिकट का जुगाड़ बिठा रहे थे। कांग्रेस नेताओं के साथ उनकी मुलाकातें जग जाहिर हो चुकी हैं। पौत्र आश्रय को बहुत अरसे से उन्होने प्रचार अभियान में उतार रखा था। अब जब भाजपा का टिकट अन्तिम रूप से घोषित हो चुका है तब पंडित सुखराम क्या इस स्थिति से समझौता करके चुपचाप भाजपा के प्रचार अभियान में जुट पायेंगे? क्योंकि यदि सुखराम आज आश्रय के लिये कांग्रेस टिकट का भी प्रबन्धन न कर पाये और न ही उसे निर्दलीय के रूप में चुनाव में उतार पाये तो इसका सीधा नुकसान मण्डी में उनकी चाणक्य होने की छवि को लगेगा। क्योंकि भाजपा में सुखराम परिवार की वरियता अन्त में ही रेहेगी और फिर वह आरएसएस के सदस्य भी नही हैं तथा यह बहुत अच्छी तरह जानते है कि भाजपा में गैर आरएसएस होने का अर्थ क्या होता है। सुखराम और अनिल शर्मा को इसका अहसास तो मेहश्वर सिंह की स्थिति से भी हो जाना चाहिये। जो मेहश्वर भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष और सांसद तक रह चुके हैं। अपनी पार्टी का भाजपा में विलय तक कर चुके हैं। वह आज कहां खड़े हैं। इसको ध्यान में रखने से बहुत कुछ स्पष्ट हो जाता है इस परिदृश्य में सुखराम परिवार का अगला कदम परोक्ष/अपरोक्ष में क्या होता है। इसका प्रभाव मण्डी क्षेत्र पर पड़ेगा ही यह तय है। इसी तरह की स्थिति संयोगवश हमीरपुर संसदीय क्षेत्र में भी सुरेश चन्देल की सक्रियता से बढ़ गयी है। सुरेश चन्देल कांग्रेस में जाने का प्रयास कर रहे थे यह सामने आ चुका है। उन्हे रोकने के लिये खुद मुख्यमन्त्री जयराम और पार्टी अध्यक्ष सत्ती को मोर्चा संभालना पड़ा है। इस प्रक्रिया में चन्देल उनको मिले आश्वासनों पर कितना भरोसा कर पाते हैं या फिर कांग्रेस में जाने की जुगत बिठा ही लेते हैं इसका पता तो आने वाले दिनों में लगेगा। लेकिन इसी के साथ यह भी जाहिर है कि बिलासपुर के ही वरिष्ठ नेता रिखी राम कौण्डल भी कोई बहुत ज्यादा सन्तुष्ट नही चल रहे हैं। उनका टिकट काट कर जीत राम कटवाल को लाया गया था और इसके लिये वह धूमल परिवार को जिम्मेदार ठहराते हैं। फिर जंजैहली प्रकरण पर धूमल और जयराम के रिश्तों में भी काफी कड़वाहट आ गयी थी यह भी जग जाहिर है।
इस परिदृश्य में यह देखना दिलचस्प होगा कि भाजपा के यह भीतरी समीकरण आने वाले दिनों में क्या शक्ल लेते हैं और प्रचार अभियान में कौन कितना सक्रिय भूमिका में रहता है। यह स्पष्ट है कि इस चुनाव में जयराम सरकार की परफारमैन्स पर ही सब कुछ केन्द्रित रहेगा। कांग्रेस इस सरकार के खिलाफ कितनी आक्रामक हो पाती है और कौन से मुद्दों पर सरकार को घेर पाती है। इसी सबसे चुनाव का रूख तय होगा। इस समय दोनों दल एक बराबर धरातल पर खड़े हैं। लेकिन इसमें जयराम की अपनी साख दाव पर रहेगी यह भी स्पष्ट है।