हमीरपुर का फैसला बना कांग्रेस रणनीति की परीक्षा आश्रय, शांडिल और काजल के नामों की हुई घोषणा

Created on Monday, 01 April 2019 12:36
Written by Shail Samachar

शिमला/शैल। कांगे्रस के मण्डी और शिमला से उम्मीदवारों की हाईकमान द्वारा घोषणा के बाद अब प्रदेश अध्यक्ष कुलदीप राठौर ने शिमला में आयोजित एक प्रेस वार्ता में कांगड़ा से पवन काजल की उम्मीदवारी का भी ऐलान कर दिया है। राठौर के इस ऐलान के बाद अब केवल हमीरपुर से उम्मीदवार की घोषणा होना बाकी है। हमीरपुर से भाजपा ने वर्तमान सांसद पूर्व मुख्यमन्त्री के बेटे अनुराग ठाुकर को फिर से उम्मीदवार बनाया है। भाजपा ने कांगड़ा और शिमला से उम्मीदवार बदले हैं जबकि प्रदेश चुनाव कमेटी ने सभी वर्तमान चारो सांसदों के फिर से उम्मीदवार बनाने की संस्तुति की थी। प्रदेश कमेटी की इस संस्तुति के बावजूद दो उम्मीदवारों का बदलना जिनमें शान्ता जैसा बड़ा नाम भी शमिल है यह स्पष्ट करता है कि भाजपा हाईकमान की प्रदेश को लेकर मिली सर्वे रिपोर्टाें के अनुसार हिमाचल 2019 में 2014 की तरह सुरक्षित नही रह गया है। इन्ही रिपोर्टों के कारण भाजपा ने प्रदेश के चुनाव प्रचार की कमान पूर्व मुख्यमन्त्री प्रेम कुमार धूमल को सौंपी है। क्योंकि जब शान्ता कुमार को टिकट नही दिया गया है तो यह स्वभाविक है कि इस चुनाव में उनकी पहले जैसी सक्रीयता नही रह जायेगी। शान्ता ने टिकट कटने को गंभीरता से लिया है। सभी जानते हैं कि इस फैसले से पहले उनकी राय नही ली गयी थी। इस तरह इस चुनाव में भाजपा में धूमल की भूमिका बहुत महत्वपूर्ण हो जाती है।
ऐसे में जब हमीरपुर से धूमल का अपना बेटा उम्मीदवार है तब स्वभाविक है कि कांग्रेस उन्हें हमीरपुर में ही बांध कर रखना चाहेगी। क्योंकि प्रदेश भाजपा के पास आज भी धूमल से बड़ा कोई नाम नही है। क्योंकि यह धूमल ही थे जिन्होंने अपनी रणनीति से वीरभद्र को अपने दोनों शासनकालों मे ऐसे बांध कर रखा कि आज तक वीरभद्र उस दंश को नही भूल पाये हैं। संभवतः यही कारण है कि हमीरपुर से कांग्रेस के सारे बड़े नेता उम्मीदवार बनने से बचना चाहते रहे हैं। कांग्रेस के इस क्षेत्र के बडे़ नेताओं के साथ धूमल के अपरोक्ष में कैसे रिश्ते रहे हैं यह पूर्व में उस समय सामने आ चुका है जब कांग्रेस ने यहां से एक बार क्रिकेटर मदन लाल को प्रत्याशी बनाने का प्रयास किया था। संभवतः यह रिश्ते एक बार फिर सक्रिय भूमिका में आ चुक हैं और इन्ही के कारण हमीरपुर के टिकट का फैसला अभी तक नही हो पाया है। इस समय हमीरपुर से भाजपा के तीन बार सांसद रह चुके सुरेश चन्देल ने कांग्रेस में जाने और फिर कांग्रेस उम्मीदवार के रूप में चुनाव लड़ने के संकेत दिये हैं। इन संकेतो के बाद भाजपा ने चन्देल को रोकने के पूरे प्रयास किये हैं। सत्तपाल सत्ती और जयराम ने चन्देल से बैठक की है। इनके बाद अमितशाह से भी चन्देल की बैठक करवाई गयी लेकिन इन सारे प्रयासों का कोई सार्थक परिणाम नही निकल पाया। परन्तु इस सबसे यह तो स्पष्ट हो जाता है कि यदि कांग्रेस चन्देल को उम्मीदवार बना लेेती है तो वह धूमल को हमीरपुर में ही बांधे रखने में बहुत हद तक सफल हो जाती है।
इस परिदृश्य में यह माना जा रहा है कि कांग्रेस हाईकमान ने अभी तक चन्देल का विकल्प खुला रखा है। क्योंकि आज जब सुक्खु ने एक साक्षात्कार के माध्यम से हमीरपुर से उम्मीदवार बनने की हामी भरी है उससे यह स्वभाविक सवाल उठता है कि प्रदेश के पूर्व अध्यक्ष को एक अखबार में साक्षात्कार के माध्यम से उम्मीदवार होने की बात क्यों करनी पड़ रही है। क्या वह कांगे्रस के कार्यकर्ताओं को यह बताना चाह रहे हैं कि उनकी नीयत पर शक न किया जाये। यदि सुक्खु सही में उम्मीदवार होने के लिये तैयार थे तो उन्हें यह सब चन्देल के नाम की चर्चा उठने से पहले ही कर देना चाहिये था आज जिस हद तक चन्देल का कांग्रेस में आना चर्चित हो चुका है। उसके बाद इसका रूकना चन्देल से ज्यादा कांग्रेस की सेहत के लिये ठीक नही रहेगा। क्योंकि जब कांगे्रस सुखराम को लेने के बाद उनके पौत्र को इसलिये टिकट दे सकती है कि इससे जयराम को उसी के जिले में झटका दिया जा सकता है। तब उसी गणित से चन्देल को शामिल करके हमीरपुर से उम्मीदवार बनना एक कारगर रणनीति की मांग हो जाती है। इस तरह आज कांग्रेस की पूरी रणनीति की परीक्षा हमीरपुर का फैसला बन गयी है और यह तय है कि इस फैसले का असर प्रदेश की चारों सीटों पर पड़ेगा।