सरकार के खिलाफ पार्टी का आरोप पत्र और वीरभद्र का जयराम को ईमानदारी का प्रमाणपत्र

Created on Tuesday, 09 April 2019 05:48
Written by Shail Samachar

शिमला/शैल। कांग्रेस ने हमीरपुर संसदीय क्षेत्र से अन्ततः पूर्व मन्त्री और श्री नयना देवी के विधायक रामलाल ठाकुर को अपना उम्मीदवार घोषित किया है। इस घोषणा के साथ प्रदेश की चारों सीटों के लिये उम्मीदवारों के चयन की क्रिया पूरी हो गयी है। जिन चार लोगों को उम्मीदवार बनाया गया है उनमें से तीन रामलाल ठाकुर, पवन काजल और धनी राम शांडिल मौजूदा विधायक हैं। केवल मण्डी से ही युवा और नये चेहरे आश्रय शर्मा को चुनाव मैदान में उतारा गया है। लेकिन आश्रय की राजनीतिक पृष्ठभूमि बाकी तीनों से कहीं ज्यादा भारी है। क्योंकि उनके दादा पंडित सुखराम प्रदेश और केन्द्र सरकार में मन्त्री रहे हैं तथा पिता अनिल शर्मा अभी तक जयराम सरकार में मन्त्रिमण्डल में ऊर्जा मंत्री हैं।
इस तरह कांग्रेस द्वारा तीन विधायकों को लोकसभा चुनावों में उतारने से संगठन की स्थिति सामने आ जाती है कि कांग्रेस का संगठन कितना मज़बूत है। जब संगठन किन्ही कारणों से कमजोर से हो तो रणनीति ही रह जाती है जिससे प्रतिद्वन्दी को मात दी जा सकती है। इस रणनीति के तहत ही पंडित सुखराम और उनके पौत्र को भाजपा से तोड़कर कांग्रेस में शामिल किया गया तथा चुनाव का टिकट भी दे दिया गया। इसी गणित में हमीरपुर से भाजपा के तीन बार सांसद रह चुके और पूर्व प्रदेश अध्यक्ष सुरेश चन्देल को कांग्रेस में शमिल करके उन्हें उम्मीदवार बनाने की चर्चा उठी थी। इसी चर्चा के कारण हमीरपुर के टिकट का फैसला इतनी देर से हुआ और चन्देल की चर्चा सिरे नहीं चढ़ी तथा रामलाल ठाकुर को टिकट दिया गया। राजनीतिक और प्रशासनिक हल्कों में चन्देल का शामिल न हो पाना कांग्रेस की बड़ी रणनीतिक असफलता मानी जा रही है क्योंकि यदि चन्देल पार्टी में शामिल हो जाते तो यह भाजपा के लिये मनोवैज्ञानिक तौर पर एक बड़ा झटका होता है। अब रामलाल के उम्मीदवार होने के बाद यहां कांग्रेस किस तरह से अपनी ईमानदार एकजुटता का परिचय देती है यह आने वाले दिनों में ही पता चलेगा। हमीरपुर संसदीय क्षेत्र के सत्रह विधानसभा क्षेत्रों में से पांच पर कांग्रेस का कब्जा है और एक पर निर्दलीय का है। यहीं से नेता प्रतिपक्ष मुकेश अग्निहोत्री, पूर्व प्रदेश अध्यक्ष सुखविन्दर सिंह सुक्खु ताल्लुक रखते हैं। इन्हीं के साथ सुजानपुर के राजेन्द्र राणा जिन्होंने विधानसभा में प्रेम कुमार धूमल को हराकर प्रदेश की राजनीति को ही एक नयी करवट पर ला दिया उन्हें भी अपने को पुनः प्रमाणित करने की चुनौती होगी। क्योंकि वीरभद्र सिंह ने बहुत अरसा पहले ही राजेन्द्र राणा के बेटे अभिषेक राणा को हमीरपुर से भावी प्रत्याशी घोषित कर दिया था और अन्त तक अपने स्टैण्ड पर टिके रहे हैं। ऐसे में सुजानपुर में कांग्रेस का प्रदर्शन राणा और वीरभद्र सिंह दोनो की ही नीयत और नीति की कसौटी भी बन जाता है।
इस समय प्रदेश कांग्रेस में सबसे बड़ा नाम वीरभद्र सिंह का ही है इसमें कोई दो राय नही है। भले ही वह ईडी और सीबीआई के मनीलाॅडिंªग तथा आय से अधिक संपत्ति के मामले झेल रहे हैं। वीरभद्र एक प्रमाणित राजनीतिक प्रबन्धक हैं यह सभी मानते हैं। उनके इसी प्रबन्धन का कमाल है कि इन मामलो में सहअभियुक्त बने आनन्द चौहान और वक्कामुल्ला चन्द्रशेखर की तो गिरफ्तारी हो गयी लेकिन वीरभद्र पर हाथ नही डाला जा सका। बल्कि जब ऐजैन्सी ने वक्कामुल्ला की जमानत रद्द करवाने के लिये दिल्ली उच्च न्यायालय में दस्तक दी तब न्यायालय ने इसी बिन्दु पर ऐजैन्सी को लताड़ लगायी कि मुख्य अभियुक्त को छोड़कर सहअभियुक्तों के खिलाफ कारवाई क्यों। आज वीरभद्र के खिलाफ चाहे दोनों मामलों में प्रतिकूल फैसला आ जाए लेकिन अब उनकी गिरफ्तारी का वक्त निकल गया है और सर्वोच्च न्यायालय तक अपीलों का रास्ता खुला है। आज मोदी सरकार भ्रष्टाचार के प्रति कितनी गंभीर और ईमानदार है उसका इसी से अन्दाजा लग जाता है। वीरभद्र के बाद दूसरे बड़े नाम हैं कौल सिंह ठाकुर, जी एस बाली, सुक्खु, अग्निहोत्री, आशा कुमारी और सुधीर शर्मा। कांग्रेस के बाकी नेताओं की गिनती इनके बाद आती है। अग्निहोत्री, आशा कुमारी और सुधीर शर्मा वीरभद्र कैंप माना जाता है। कौल सिंह और सुक्खु इकट्ठे माने जाते हैं और जी एस बाली को कभी दोनों के साथ तो कभी अलग गिना जाता है। इस तरह प्रदेश कांग्रेस दो हिस्सों में बंटी हुई है। दिल्ली में बैठे आनन्द शर्मा दोनो धड़ों को बराबर अपनी सुविधानुसार समर्थन देते रहते हैं। उनका इतना ही तय है कि वह वीरभद्र सिंह का कभी भी मन से विरोध नही करते हैं बल्कि यह कहना ज्यादा सही होगा कि आज आनन्द शर्मा जिस मुकाम पर हैं उसमें सबसे ज्यादा योगदान और समर्थन वीरभद्र सिंह का ही रहा है
आज लोकसभा चुनावों के परिदृश्य में कांग्रेस के इस गणित को नजऱअन्दाज करके कोई आकलन नहीं किया जा सकता। यह एक जमीनी सच है कि आज यदि वीरभद्र सिंह ईडी और सीबीआई के हाथों बड़ी कारवाई से बचे रहे हैं तो इसके लिये उनके मोदी सरकार के साथ भी कहीं न कहीं अच्छे रिश्तों की भूमिका अवश्य रही है। यह भी स्वभाविक है कि जब आप किसी से सहयोग लेते हैं तो कभी उसे ब्याज समेत लौटाना भी पड़ता है। फिर राजनीति मे इस लेनदेन का सबसे सही वक्त चुनाव ही होता है। यदि इस गणित से पिछले करीब चार महीनों की प्रदेश की राजनीति का आकलन किया जाये तो सबसे पहले यह आता है कि जब वीरभद्र सिंह ने जयराम सरकार को यह अभय दान दिया था कि उनके खिलाफ सत्र में बड़ी आक्रामकता नही अपनाई जायेगी। इसके बाद वीरभद्र सिंह ने खुलेआम कहा कि मण्डी से कोई भी मकरझण्डू चुनाव लड़ लेगा। मण्डी के बाद हमीरपुर और कांगड़ा से उम्मीदवारों का ऐलान कर दिया। अभिषेक राणा और सुधीर शर्मा की उम्मीदवारी घोषित कर दी। इस उम्मीदवारी की घोषणा के बाद सुक्खु को अध्यक्ष पद से हटाने के लिये कुलदीप राठौर के नाम पर अपनी मोहर लगा दी। जब हमीरपुर से एक समय प्रैस ने सुक्खु के संभावित उम्मीदवार होने पर प्रश्न प्रश्न पूछा तो सीधे कह दिया कि हाईकमान में ऐसा कोई मूर्ख नही है जो सुक्खु का उम्मीदवार बनायेगा। अब सुखराम को लेकर जिस तरह की प्रतिक्रिया वीरभद्र दे रहे हैं उससेे और स्पष्ट हो जाता है कि वह किसी बड़े दवाब में चल रहे हैं। क्योंकि जो कुछ पिछले चार-पांच महीनों में घटा है उससे यह स्पष्ट हो जाता है कि वीरभद्र की प्राथमिकता भाजपा को हराने की तो बिल्कुल भी नही रही है। आज राष्ट्रीय स्तर पर पूरा देश भाजपा और गैर भाजपा में बंटा खड़ा है और वीरभद्र जयराम सरकार को ईमानदारी का प्रमाणपत्र बांट रहे हैं जबकि अभी कुछ समय पहले ही कांग्रेस ने इसी सरकार के खिलारफ राज्यपाल को एक आरोपपत्र सौंपा है। इस परिप्रेक्ष्य में कांग्रेस और वीरभद्र दो अलग- अलग ध्रुवों के रूप में सामने आते हैं और यही सबकुछ इस पर गंभीर सवाल भी खड़े कर जाता है।
क्योंकि जब वीरभद्र जैसा बड़ा नेता भाजपा की प्रदेश सरकार को ईमानदारी का प्रमाणपत्र बांटेगा तो फिर चुनाव प्रचार अभियान में किस आधार पर उस सरकार के खिलाफ वोट मांगेगा। जब सुखराम को आया राम गया राम की संज्ञा देंगे तो फिर कैसे उसके साथ स्टेज शेयर करेंगे।
इस तरह के कई सवाल एक साथ उठ खड़े हुए हैं। इन सवालों से कांग्रेस का पक्ष निश्चित रूप से कमजोर होता है। फिर इसी के साथ चारों क्षेत्रों में कांग्रेस के वरिष्ठ नेताओं की एक दूसरे से नाराज़गी की खबरें भी आये दिन प्रमुखता से सामने आ रही हैं। ऐसे में कांग्रेस अध्यक्ष कुलदीप राठौर के लिये संगठन के भीतर की इस खेमेबाजी को नियन्त्रण में रख पाना बहुत आसान नही होगा। क्योंकि वीरभद्र जैसे बड़े नेताओं को इस ऐज-स्टेज पर पार्टी अनुशासन में बांध कर रखना बहुत आसान नही होगा। आने वाले दिनों में यह देखना दिलचस्प होगा कि पार्टी भाजपा का मुकाबला करने से पहले अपने ही घर को अनुशासन में कैसे रख पाती है।

                                            यह हैं कांग्रेस प्रत्याशी

       आश्रय शर्मा (मण्डी)                        रामलाल ठाकुर  (हमीरपुर)
















 

         डाॅ. धनीराम शांडिल                                     पवन काजल

              शिमला                                                  कांगड़ा