क्या छात्रवृति घोटाला भी राजनीति का शिकार हो रहा है केवल 3 दर्जन सस्थानों की ही जांच क्यों?

Created on Wednesday, 22 May 2019 05:14
Written by Shail Samachar

शिमला/शैल। प्रदेश में इन दिनों छात्रवृति घोटाला चर्चा का विषय बना हुआ है। राज्य सरकार ने इस घोटाले की जानकारी मिलने के बाद इसकी प्रारम्भिक जांच राज्य परियोजना अधिकारी शक्ति भूषण से करवाई थी। शक्ति भूषण ने पांच पन्नों की जांच रिपोर्ट 21 अगस्त 2018 को शिक्षा सचिव को सौंप दी थी। उसके बाद सरकार द्वारा इस रिपोर्ट का अवलोकन करने के बाद इसके आधार पर 16-11-2018 को शक्ति भूषण की शिकायत पर पुलिस थाना छोटा शिमला में इस बारे में एफआईआर दर्ज कर ली गयी थी। अब यह मामला राज्य सरकार ने जांच के लिये सीबीआई को सौंप दिया है। सीबीआई इस मामले की जांच में जुट गयी है उसने कई शैक्षिणिक संस्थानों में दबिश देकर काफी रिकार्ड अपने कब्जे में लेकर कुछ अधिकारियों से पूछताछ भी कर ली है। यह घोटाला 250 करोड़ का कहा जा रहा है। लेकिन यह घोटाला है क्या और परियोजना अधिकारी शक्ति भूषण की प्रारम्भिक जांच कितनी पुख्ता है इसको लेकर विभाग के अधिकारी कुछ भी कहने को तैयार नही है। आम आदमी को तो यह भी पूरी जानकारी नही है कि विभाग में कितनी छात्रवृति योजनाएं चल रही हैं और उनके लिये पात्रता मानदण्ड क्या हैं और इसका लाभ लेने के लिये उन्हे आवदेन करना कैसे है।
स्मरणीय है कि राज्य सरकार ने अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति, अन्य पिछड़ा वर्ग और गरीब बच्चांे की शिक्षा का प्रबन्ध करने के लिये कई छात्रवृति योजनाएं लागू कर रखी हैं ऐसी करीब 34 योजनाएं स्कूलों में चलाई जा रही है। इनमें प्रमुख योजनाएं हंै मैट्रिकोत्तर छात्रवृति योजना, मेधावी छात्रवृति योजना, कल्पना चावला छात्रवृति योजना, डा. अम्बेडकर छात्रवृति योजना तथा ठाकुर सेन नेगी छात्रवृति योजना शामिल हैं। यह योजनाएं सरकारी और गैर सरकारी स्कूलों में पढ़ने वाले छात्रांे पर एक समान लागू हैं। कुछ समय से जब सरकारी स्कूलों में बच्चों को छात्रवृतियां न मिल पाने की शिकायतें आने लगी तब विभाग इस बारे में गंभीर हुआ और इसमें जांच करवाने का फैसला लिया गया। इस जांच के लिये जो बिन्दु तय किये गये थे उनमें पहला बिन्दु था क्या छात्रवृति योजनाओं का उचित प्रकार से प्रचार-प्रसार किया गया है तथा लाभार्थियों को इन योजनाओं से भलीभांती परिचित करवाया गया? दूसरा था कि क्या जिन विद्यार्थीयों को छात्रवृति प्राप्त हुई है वह ही नियमानुसार इसके सही पात्र थे। तीसरा बिन्दु था विभिन्न स्तरों पर छात्रवृति का दैनिक अवलोकन तथा अन्य किसी भी प्रकार के छात्रवृति से संबंधित मुद्दे।
इन बिन्दुआंे पर जांच करने के लिये जांच अधिकारी ने शिक्षा निदेशक के संपर्क किया और निदेशक ने शाखा के अधीक्षक सुरेन्द्र कंवर को इस जांच में सहयोग करने के निर्देश दे दिये। इन निर्देशों के बाद जब जांच आगे चलाई गयी तो इसमें पाया गया कि विभिन्न छात्रों और उनके अभिभावकों की छात्रवृति न मिलने की शिकायतें विभाग के पास आयी हैं पर उन पर कोई सन्तोषजनक कारवाई नही हुई है। फिर विभाग के पास एक लिखित शिकायत आयी जिस पर 29-7-2018 को कारवाई करते हुए शिकायतकर्ता के घर कांगड़ा के नूरपुर के गांव देहरी जाकर संपर्क किया गया। उसके ब्यान कमलबद्ध किये गये। इस तरह जांच अधिकारी ने कांगड़ा के चार और सिरमौर के दो लोगांे की शिकायतों पर इन लोगों के ब्यान लिये।
जांचकर्ता के संज्ञान में यह भी जांच के दौरान आया कि सरकार ने आंध्रप्रदेश सरकार के सूचना प्रौद्योगिकी विभाग की पंजीकृत सोसायटी से 90 लाख खर्च कर एक आनलाईन पोर्टल बनवाया लेकिन इसमें गंभीर कमीयां पायी गयी। यहां यह भी उल्लेखनीय है कि भारत सरकार ने भी 2018 में एक आनलाईन पोर्टल तैयार करवाया था और राज्य सरकारों को इसके माध्यम से छात्रवृति वितरण के निर्देश दिये गये थे। बाद में यह निर्देश वापिस ले लिये गये लेकिन आज भी विभाग में दोनांे पोर्टल के माध्यम से छात्रवृतियों का वितरण किया जा रहा है। लेकिन इन छात्रवृति योजनाओं का उचित प्रचार-प्रसार किया है या नही रिपोर्ट में इसका कोई जिक्र नही है। लाभार्थी ही सही में इसके पात्रा थे या नही रिपोर्ट में इसका कोई जिक्र नही है। जबकि यह दोनो बिन्दु प्रारम्भिक जांच के मुख्य बिन्दु थे। जांच रिपोर्ट में यह कहा गया है कि विभाग में छात्रों और अभिभावकों की कई शिकायतें थी। यह शिकायतें लिखित थी या मौखिक इसका रिपोर्ट में कोई उल्लेख नही है। जबकि रिपोर्ट में यह कहा गया है कि इन शिकायतों पर उचित कारवाई नही हुई है। रिपोर्ट में 90 लाख का पोर्टल तैयार करवाने और उसमें कमियां पायी जाने का तो जिक्र है लेकिन इसके लिये न तो जांच अधिकारी और न ही विभाग ने इस सबके लिये किसी को जिम्मेदार ठहराते हुए उनके खिलाफ कारवाई करने की संस्तुति की है।
यह छात्रवृति योजनाएं सरकारी और गैर सरकारी सभी स्कूलों के बच्चों पर एक समान लागू है। इस समय इन योजनाओं से 2772 सरकारी और 266 गैर सरकारी स्कूल एक बराबर लाभार्थी हैं। लेकिन यह जांच केवल करीब तीन दर्जन प्राईवेट स्कूलों को लेकर ही हो रही हैं। जबकि प्रारम्भिक जांच के मुताबिक सरकारी स्कूलों में भी इसमें गड़बड़ होने की पूरी-पूरी संभवना हैं। इसलिये आने वाले दिनों में इस जांच को लेकर यह आरोप लगना स्वभाविक है कि इसका दायरा कुछ ही प्राईवेट संस्थानों तक क्यों रखा गया हैं। जबकि 266 प्राईवेट संस्थानों को यह छात्रवृतियां मिल रही हैं। यहां पर यह सवाल भी उठाता है कि क्या सरकार ने अन्य स्कूलों को बिना जांच के ही क्लीनचिट दे दिया है। या फिर सरकार ने सभी सरकारी और गैर सरकारी स्कूलों की जांच का जिम्मा सीबीआई के सिर डाल दिया है। बहरहाल अभी से इस घोटाले और इसकी जांच में राजनीति होने के आरोप आने शुरू हो गये हैं।

 










छात्रवृति घोटाले में दर्ज एफ आई आर