क्या विद्युत परियोजनाएं प्रदेश की आर्थिक सेहत के लिये खतरा होने जा रही हैं

Created on Monday, 24 June 2019 12:09
Written by Shail Samachar

शिमला/शैल। मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर जर्मनी, नीदरलैण्ड के बाद दुबई गये हैं। मुख्यमन्त्री इन यात्राओं के माध्यम से विदेशों से प्रदेश में पूंजी निवेश लाने का प्रयास कर रहे हैं। इन विदेश यात्राओं के साथ ही देश के विभिन्न भागों में भी निवेशकों को आमन्त्रित करने का प्रयास किया जा रहा है। मुख्यमन्त्री के यह प्रयास कितने सफल होते हैं प्रदेश में कितना निवेश आता है यह तो आने वाला समय ही बतायेगा। निवेश लाने के ऐसे ही प्रयास पूर्व मुख्यमन्त्रीयों के कार्यकाल में भी हुए हैं। लेकिन इन प्रयासों से प्रदेश की आर्थिक स्थिति में सुधार आने की बजाये कर्ज का चक्रव्यूह ही ज्यादा बढ़ता गया है। आज प्रदेश 52000 करोड़ के बड़े कर्जभार के नीचे है। इस कर्ज का निवेश कब कहां और कैसे किया गया इससे प्रदेश की आय में कितनी बढ़ौत्तरी सुनिश्चित हुई है इसका कभी भी किसी भी मुख्यमन्त्री ने विधानसभा के अन्दर या बाहर कभी कोई खुलासा नही रखा है। जयराम ठाकुर ने भी अपने पहले बजट भाषण में यह आंकड़ा तो रखा कि वीरभद्र सिंह ने पांच वर्षों में 18,787 करोड़ का कर्ज लिया लेकिन यह नही बताया कि यह कर्ज कहां खर्च हुआ। इस इतने भारी भरकम कर्ज से राजस्व के लिये स्थायी अदारे क्या खड़े किये गये यह कोई जानकारी प्रदेश की जनता के पास नही है। शायद प्रदेश की अफसरशाही नही चाहती है कि यह सच्च कभी सामने आये। मुख्यमन्त्री जयराम ने अपने पहले बजट भाषण में प्रदेश की वित्तिय स्थिति को लेकर जो गंभीर टिप्पणी की हुई है यदि उसी की गहराई से जांच की होती तो शायद स्थिति में कुछ बदलाव आ जाता। प्रदेश में उद्योगों की सहायता के लिये जो निगम/बोर्ड स्थापित किये गये हैं निवेश लाने के प्रयास करने से पहले उन अदारों की हकीकत का आकलन करके कुछ सख्त कदम उठाये जाने चाहिये थे लेकिन ऐसा नही हुआ है।
किसी भी उद्योग की सफलता के लिये यह आवश्यक है कि उसके लिये वहीं पर कच्चा माल उपलब्ध है तैयार माल की खपत के लिये कितना उपभोक्ता उपलब्ध है और उसकी क्रय शक्ति कितनी है। इन बुनियादी संसाधनों के बाद श्रम, पूंजी और ऊर्जा की उपलब्धता उद्योग के लिये दूसरा बड़ा फैक्टर होता है। लेकिन शायद प्रदेश में इन महत्वपूर्ण पक्षों का आज तक कोई विस्तृत अध्ययन ही नही किया गया हैं केवल भूमि की उपलब्धता सुनिश्चित करने के लिये भू-राजस्व अधिनियम की धारा 118 के नियमों में संशोधन करने तथा उद्योगों को विभिन्न करो में रियायतें/छूट देने के अतिरिक्त और कुछ सोचा ही नही गया है। इसलिये प्रदेश के कर और गैर कर राजस्व में कोई बड़ी बढ़ौत्तरी नही हो पायी है। हिमाचल में 21000 मैगावाट की जल वि़द्युत उत्पादन की क्षमता चिन्हित करने के बाद प्रदेश को विद्युत राज्य के रूप में प्रचारित और प्रसारित करके उद्योगों को यहां आने के लिये आकर्षित एवं आमन्त्रित किया गया। विद्युत के क्षेत्र में ही 500 से अधिक छोटी बड़ी परियोजनाएं चिन्हित की गयी है। अकेले ऊर्जा क्षेत्र में कैग के मुताबिक सारे सार्वजनिक क्षेत्र के निवेश का 85% हिस्सा इसमें निवेशित किया गया है। बहुत सारी परियोजनाएं प्रदेश में उत्पादन दे रही है। लेकिन बजट दस्तावेजों के मुताबिक विद्युत उत्पादन से मिलने वाला राजस्व लगातार कम होता जा रहा है। यह राजस्व कम होने का अर्थ है कि ऊर्चा क्षेत्र को लेकर सरकार की नीति और आकलन दोनों में भारी कमी है।
नीति और आकलन की इस कमी के सबसे बड़े उदाहरण प्रदेश उच्च न्यायालय की कुछ टिप्पणीयां है। उच्च न्यायालय ने जे पी ऐसोसियेटस द्वारा बघेरी में थर्मल प्लांट स्थापित करने को लेकर दो जनहित याचिकायें CWP of 2009 तथा CWP 586 of 2010 आयी थी। जेपी के खिलाफ उच्च न्यायालय की ग्रीन पीठ ने 100 करोड़ का जुर्माना लगाया था। इसमें संबद्ध अधिकारियों की भूमिका को जांचने और उनके खिलाफ कारवाई करने के लिये एडीजीपी पुलिस के सी सडयाल की अध्यक्षता में एक एसआईटी का गठन किया था। इस एसआईटी की रिपोर्ट अदालत में आ चुकी है लेकिन यह रिपोर्ट क्या है और इस पर क्या कारवाई हुई यह कभी सामने नही आया है। जबकि उसी दौरान जब यह प्रकरण मुख्यमन्त्री वीरभद्र सिंह के सामने आया तब उन्होंने इसका कड़ा संज्ञान लेते हुए फाईल पर यह दर्ज किया कि  "1. It is a serious matter. Particularly NOC for thermal Power which is on negative list and against power policy of the State.
2. This officer may be  suspended with immediate effect and chargesheeted.
3. File also shows that the Electricity Board was also involved in issuing NOC for Thermal Power stations, the Board very well knew that Thermal Power is against the Power Policy and also it had no powers to decide allocation of   thermal Power stations J.P. Associates (25 MW) for plant at Bagheri; Mahabir Spinning Ltd. (8.5 MW), M/s. Deepak Spinners Baddi (5 MW), and Tanu Alloys Una 6 MW. All officers for this may be identified within one week and case put up.
4. All the permissions and NOC's granted for setting up of Thermal Power Stations for above Companies and any other may be withdrawn forthwith. लेकिन इस पर आगे चलकर व्यवहारिक रूप से क्या कारवाई हुई कोई नही जानता।

इसी तर्ज पर इन जलविद्युत परियोनाओं को लेकर डीजीपी आई वी नेगी ने एक पत्रा राज्यपाल को लिखा था। उन्होंने इन परियोजनाओं के निर्माताओं द्वारा पर्यावरण नियमों के साथ खिलवाड़ करने को लेकर गंभीर चिन्ता व्यक्त की थी। यह प्रसंग भी प्रदेश उच्च न्यायालय में  पहुंचा था और अदालत ने इसके लिये अतिरिक्त मुख्य सचिव वन अभय शुक्ला की अध्यक्षता में कमेटी गठित की थी। क्योंकि उस समय उच्च न्यायालय के सामने यह तथ्य आ गया था कि चम्बा से भरमौर तक रावी नदी पर बन रही चार परियोजनाओं में यह नदी अपने मूल बहाव से 65 किलो मीटर तक लोप हो जायेगी। चम्बा से भरमौर की कुल दूरी ही 70 किलोमीटर है और इसमें यह नदी केवल पांच किलोमीटर ही मूल बहाव में रहेगी। इस संबंध में शुक्ला कमेटी की रिपोर्ट में कहा गया है कि  This  Committee is strongly of the view that the govt's present practice of indiscriminately allotting hydel projects all over the state without any consideration to their impact on the larger environment-which mere EIAs and EMPs can not address- is short-sighted, unplanned and could result in serious depletion of the state's natural resources in the long run. This is not, however, an issue of altitude alone as vulnerable areas in dire need of protection exist at even lower altitudes. Protection has to be  provided, for example, to dense forests (which,  according to successive reports of the Forest Survey of India itself, have been declining  in HP year after year), protected wild-life areas, critical catchments of river systems, critical wild-life habitats outside Protected Areas, permanent glaciers, alpine  pastures and so on by declaring them as eco-sensitive zones under the Environment Protection Act. Only this would ensure that these vulnerable but vital natural buffers remain inviolate. Currently no area in the state- not even National Parks and Sanctuaries- are exempt from hydel exploitation, but this has to change, and change fast given the speed at which the hydel tentacles are crawling up the valleys and side  valleys of the state. This requires the setting up of an  interdisciplinary body of experts which the MOEF- which accords the  final clearances-should also be associated. However, pending that, there are some recommendations which this Committee would like to make which need to be adopted.
अभय शुक्ला और के सी सडयाल कमेटीयों की रिपोर्टें उच्च न्यायालय और सरकार दोनो के पास मौजूद हैं। लेकिन इन रिपोर्टों पर आज तक कहीं से कोई कारवाई सामने नही आयी है। आज आलम यह है कि बोर्ड के स्वामित्व में चलने वाली परियोजनाओं में हजारों घन्टो का शट डाऊ प्रतिवर्ष हो रहा है और इससे सरकार को प्रतिदिन करोड़ों का नुकसान हो रहा है। विजिलैन्स भी इस संद्धर्भ में आयी शिकायतों पर चुप्पी साधे बैठा है क्योंकि जांच से शीर्ष प्रशासन की करनी/कथनी सामने आयेगी। इस परिदृश्य में यह स्पष्ट है कि जब तक प्रशासन में फैली इस अराजकता पर कारवाई नही की जाती है तब तक मुख्यमन्त्री के प्रयासों से कोई लाभ नही मिलेगा।
मुख्यमन्त्री के प्रयासों पर यह प्रश्नचिन्ह इसलिये लग रहे हैं क्योंकि हर उद्योग के लिये बिजली एक मूल आवश्यकता है। लेकिन हिमाचल जहां विद्युत राज्य है वहीं पर इसकी विद्युत परियोजनाओं का अपना अस्तित्व सवालों में आ खड़ा हुआ है। क्योंकि 67 परियोजनाएं गंभीर भूस्खलन के खतरे में हैं जबकि दस मैगा पावर परियोजनाएं मध्यम और उच्च भूस्खलन जोन में हैं। पिछले पांच वर्षों में इन परियोजनाओं में इस संद्धर्भ में कहां क्या घटा है वह पाठकों के सामने रखा जा रहा है ताकि आम आदमी इन खतरों के प्रति अपने तौर पर सजग हो जाये। क्योंकि प्रशासन और राजनीतिक नेतृत्व की नजर में यह कोई गंभीरता नही है।