शिमला/शैल। लोकसेवा आयोग की सदस्य डा. रचना गुप्ता ने एक नोयडा निवासी देवाशीष भट्टाचार्य के खिलाफ एक करोड़ की मानहानि का मामला दायर किया है। अभी 14 जून को प्रदेश उच्च न्यायालय में दायर हुए मामले में 22 अगस्त को पेशी लगी है। इस हाई प्रोफाईल मामले ने सबका ध्यान आकर्षित किया हुआ है। स्मरणीय है कि यह मामला दायर करने से पहले डा. रचना गुप्ता ने देवाशीष को 12-12-2018 को एक लीगल नोटिस भेजा था। इस नोटिस में देवाशीष द्वारा सोशल मीडिया में पोस्ट की गयी छः पोस्टों का जिक्र उठाते हुए इनसे मानहानि होने का आरोप लगाते हुए एक करोड़ के हर्जाने की मांग की गयी थी। यह पोस्टें किन-किन तारीखों को पोस्ट की गयी इसका कोई जिक्र नोटिस में नही था।
यह नोटिस मिलने के बाद देवाशीष ने रचना गुप्ता के वकील को 16-1-2019 को एक पत्र भेजकर उनसे यह जानकारी मांगी की संद्धर्भित पोस्टें किन तारीखों की हैं ताकि वह नोटिस का समुचित जवाब दे सके। वकील के इस पत्र से पहले देवाशीष ने स्वयं एक ऐसा ही पत्र रचना गुप्ता के वकील को भेजा था। लेकिन इन पत्रों का कोई जवाब नही आया। इसमें उल्लेखनीय यह है कि देवाशीष की इन सारी कथित पोस्टों में प्रश्नवाचक चिन्ह का प्रयोग किया गया है। प्रश्नवाचक चिन्ह से यह पोस्टें अपने में एक सीधा ब्यान न होकर एक सवाल बन जाती हैं। इस प्रश्नवाचक चिन्ह से यह देखना रोचक होगा कि क्या यह पोस्टें ब्यान के दायरे में आकर मानहानि का कारक हो सकती हैं या नहीं। लीगल नोटिस 12-12-2018 को भेजने के बाद अब जून में मानहानि का दावा दायर किया गया है। दावे के साथ दायर हुए शपथ पत्र के अनुसार यह याचिका संलग्नों सहित 35 पन्नों की है लेकिन उच्च न्यायालय द्वारा देवाशीष को भेजे गये नोटिस के साथ याचिका के केवल 12 ही पन्ने उन्हें मिले है। यह 12 पन्ने मिलने पर देवाशीष ने उच्च न्यायालय के रजिस्टार ज्यूडिश्यिल को 26-7-2019 को एक पत्र लिखकर याचिका के अन्य पन्ने उन्हें उपलब्ध करवाने का आग्रह किया ताकि वह सारे दस्तावेजों का अवलोकन करके इसका समुचित जवाब तैयार कर सके।
प्रदेश के राजनीतिक और प्रशासनिक हल्कों में यह मानहानि मामला विशेष चर्चा का विषय बना हुआ है। क्योंकि प्रदेश में शायद ऐसा पहली बार हुआ है कि लोक सेवा आयोग के सदस्य को इस तरह का मामला दायर करने की नौबत आयी हो। वैसे तो लोकसेवा आयोग के एक अन्य सदस्य की नियुक्ति को भी प्रदेश उच्च न्यायालय में चुनौती मिली हुई है और यह मामला अभी तक लंबित चल रहा है। इसमें यह रोचक हो गया है कि जब पंजाब लोक सेवा आयोग का एक मामला सर्वोच्च न्यायालय में पहुंचा था तब शीर्ष अदालत ने लोक सेवा आयोगों के सदस्यों की नियुक्तियों को लेकर एक सुनिश्चित मानदण्ड निर्धारित करने और अपनाने के निर्देश केन्द्र सरकार से लेकर सभी राज्य सरकारों को कर रखे हैं। लेकिन शीर्ष अदालत के इन निर्देशों की अनुपालना आज तक नही हो पायी है और संयोगवश प्रदेश लोक सेवा आयोग के सभी सदस्यों की नियुक्तियां इन निर्देशों के बाद ही हुई है। ऐसे में यह मामला भी रोचक हो गया है और सबकी निगाहें इस पर लगी हुई हैं।