शिमला/शैल। जयराम सरकार प्रदेश में निवेश जुटाने के प्रयासों में लगी हुई है। इसमें सबसे पहले इसी वर्ष के शुरू में ही पीटरहाॅफ में एक इन्वैस्टर मीट आयोजित की गयी थी। इस मीट में 159 एमओयू साईन करके 17365 करोड़ का निवेश आने का दावा किया गया था। इसके बाद जून- जुलाई में 228 उद्योगों के साथ एमओयू साईन करके 27515 करोड़ के निवेश का दावा सामने आया। फिर तीन मंत्रीयों ने एक पत्रकार वार्ता करके इस दावे को और बड़ा करते हुए कहा कि 263 एमओयू साईन करके 29500 करोड़ का निवेश लाया गया है। मन्त्रीयों ने यह भी दावा किया कि 6103 करोड़ के निवेश के 103 प्रौजैक्टों पर काम भी शुरू हो गया है।
यह सारे दावे विधानसभा का मानसून सत्र शुरू होने से पहले किये गये हैं। लेकिन अब मानसून सत्र में कांग्रेस विधायक सुक्खु के प्रश्न के उत्तर में यह कहा गया है कि ‘‘मुख्यमन्त्री द्वारा अपने विदेश व देश के दौरों के दौरान 31-7-2019 तक कोई भी समझौता (MOU) हस्ताक्षरित नहीं किया गया है। भाजपा विधायक रमेश धवाला के एक प्रश्न के उत्तर में कहा गया है कि गत तीन वर्षों में दिनांक 31-7-19 तक उद्योग स्थापित/विस्तार करने हेतु कुल 17 औद्यौगिक इकाईयों के मामले राज्य एकल खिड़की समाधान एवम् अनुश्रवण प्राधिकरण के अनुमोदनार्थ लंबित पड़े हैं। यह सभी 17 प्रकरण नये मामले हैं। इनके अतिरिक्त सीमेन्ट और जल विद्युत परियोजनाओं को लेकर आये सवालों में भी यही सामने आया है कि निवेशक इसमें रूचि नही दिखा रहे हैं। सदन में आयी इन सूचनाओं से यह स्पष्ट हो जाता है कि निवेश को लेकर जो भी दावे किये जा रहे हैं उन्हें अमली शक्ल लेने में समय लग जायेगा। सुन्दरनगर, चम्बा और शिमला मे जो सीमेन्ट प्लांट दशकों से प्रस्तावना में चल रहे हैं वह अभी तक शक्ल नही ले पाये हैं। इसी तरह जल विद्युत परियोजनाओं के क्षेत्र में अब निवेशक सामने नही आ रहे हैं। जंगी थोपन पवारी परियोजना को लेकर अब ब्रेकल के खिलाफ अब आपराधिक मामला दर्ज करने की नौबत आ गयी है।
इससे यह सवाल उठता है कि मुख्यमन्त्री के साथ अधिकारियों और मन्त्रीयों का जो काफिला विदेश और देश में जाकर रोड़ शो करके निवेशकों को आमन्त्रित करने का प्रयास कर रहा था। उन यात्राओं का आधार क्या था? यह यात्राओं के बाद जो हजारों करोड़ों का निवेश आने के वायदे प्रदेश की जनता को दिखाये गये हैं उनका आधार क्या था। क्यों अब सदन में उत्तर देते हुए यह कहा गया है कि कोई भी एमओयू साईन नही हुआ है। पीटरहाॅफ से लेकर विदेशों तक जो मीट किये गये हैं उन सबमें मुख्यमन्त्री शामिल थे उन्हीं के नेतृत्व में यह सब हो रहा था। पीटरहाॅफ की मीट के बाद ही इसमें 159 एमओयू साईन होने का दावा किया गया था। निवेशकों को आमन्त्रित करने के लिये एक वैन पोर्टल जारी किया गया है। इस पोर्टल में कृषि, बागवानी, पर्यटन उद्योग, जल विद्युत, स्वास्थ्य और आयुर्वेद आदि विभागों की कई महत्वकांक्षी प्रोपोजल डाले गये हैं।
पर्यटन के 13 होटलों को लीज़ पर देने की प्रोपोजल इस पोर्टल पर डाली गयी थी। इस प्रोपोजल को अब इस पोर्टल से हटाया गया जब इस पर विपक्ष की ओर से सवाल आने शुरू हुए। इस प्रोपोजल का खुलासा प्रैस के माध्यम से सार्वजनिक होने के बाद मुख्यमन्त्री का यह ब्यान आना कि उन्हें इस सबकी जानकारी ही नहीं है। मुख्यमन्त्री स्वयं पर्यटन विभाग के मंत्री हैं ऐसे में यह एक बहुत ही गंभीर मुद्दा बन जाता है कि मुख्यमन्त्री की जानकारी के बिना ही अधिकारी इतना बड़ा फैसला अपने स्तर पर ले लें जिसका प्रदेश पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ेगा। यही स्थिति नियम 61 में नरेन्द्र ठाकुर, रामलाल ठाकुर और राजेन्द्र राणा के सवालों की चर्चा में आयी हैं नियम 61 में विधायक चर्चा तब मांगते हैं जब उनके सवाल पर सदन में सही जानकारी न दी गयी हो। इन विधायकों ने सदन में यह स्पष्ट कहा कि अधिकारियों द्वारा सरकार को सही जानकारी नही दी जा रही है। ऐसे में यह बड़़ा सवाल हो जाता है कि क्या अधिकारी वास्तव में ही मुख्यमन्त्री और सरकार को सही जानकारी नही दे रहे हैं। क्योंकि जिस निवेश को लेकर इतने बड़े -बडे़ दावे किये गये हों उसमेे लिखित उत्तर मे यह कह दिया जाये कि कोई एमओयू साईन ही नही हुआ है तो स्थिति बहुत ही हास्यस्पद हो जाती है।