साडा के पक्ष में प्रदूषण नियन्त्रण बोर्ड का पत्र सवालों में

Created on Monday, 02 December 2019 12:50
Written by Shail Samachar

शिमला/शैल। पिछले वर्ष ग्रेट खली के रेसलिंग शो के लिये सरकारी तन्त्र द्वारा पैसा जुटाने के प्रयासों के लिये फजीहत झेल चुकी जयराम सरकार की अफसरशाही ने इस बार स्पोर्ट एवम् एण्टी ड्रग ऐसोसियेशन (साडा) द्वारा आयोजित किये गये क्रिकेट मैच के लिये पैसा जुटाने का जिस तरह से प्रयास किया है उससे सरकार की परिपक्वता पर फिर से सवाल उठने शुरू हो गये हैं। खली प्रकरण में यह सरकार के संज्ञान में ला दिया गया था कि रेसलिंग शो सरकार की खेलों की अधिकारिक सूची में नही आता है इसलिये सरकार के नियमों के मुताबिक इस शो के लिये सरकारी धन उपलब्ध नही करवाया जा सकता है। लेकिन इस संज्ञान के बावजूद यह मामला मन्त्रीमण्डल में लाया गया। मन्त्रीमण्डल में इस पर कोई फैसला नही हो पाया और तब यह पैसा जुटाने की जिम्मेदारी मुख्य सचिव और मुख्यमन्त्री के प्रधान सचिव ने ली थी और अन्त में इसमें काफी किरकरी हुई थी।
इस बार कुछ लोगों ने स्पोर्ट एवम् एण्टीड्रग ऐसोसियेशन साडा के नाम से एक एनजीओ का गठन कर लिया। मुख्यमन्त्री को इसका मुख्य संरक्षक बना दिया। एनजीओ बनाने के बाद एक क्रिकेट मैच का आयोजन कर दिया। इस आयोजन में खिलाड़ियों को स्पोर्ट ड्रैस और प्ले किट देनी थी और इसके लिये पैसा चाहिये था। यह पैसा इकट्ठा करने के लिये प्रदूषण नियन्त्रण बोर्ड की सेवाएं ली गयी। बोर्ड के सदस्य सचिव ने इसके लिये एक पत्र जारी कर दिया। नियमों के अनुसार किसी भी एनजीओ को इस तरह का आर्थिक सहयोग लेने का पात्र होने के लिये कम से कम तीन वर्ष का समय लग जाता है। समय की पात्रता के बाद भी कोई भी विभाग या उपक्रम अपने स्तर पर तो सहयोग दे सकता है लेकिन अन्य को इसके लिये निर्देश नही दे सकता। इस तरह का निर्देश देना गंभीर अपराध माना जाता है। सर्वोच्च न्यायालय ऐसे ही एक मामले में सज़ा दे चुका है उसमें तो रैडक्रास के लिये योगदान लिया गया था।
इस प्रकरण से यह सवाल उभरता है कि क्या मुख्यमन्त्री को अपना नाम इस तरह प्रयोग किये जाने की अनुमति दी जानी चाहिये? जिन लोगों ने एनजीओ का गठन किया क्या उन्हें इससे जुड़े नियमों/कानूनों की जानकारी नही होनी चाहिये थी? क्या मुख्यमन्त्री के कार्यालय को इस तरह की गतिविधियों पर नजर नही रखनी चाहिये? क्योंकि यह स्वभाविक है कि इस तरह के निर्देश जारी करते हुए पत्र लिखना किन्हीं बड़े आदेशों से ही संभव हुआ होगा। इन दिनों वैसे ही भ्रष्टाचार के आरोपों वाले वायरल पत्र एक बड़ा मुद्दा बने हुए हैं। ऐसे में किसी सरकारी उपक्रम द्वारा किसी एनजीओ के पक्ष में इस तरह का पत्र लिखना जिसमें राजनेता और पत्रकार पदाधिकारियों में शामिल हों एक बड़ा विवाद बन जाता है।