शिमला/शैल। पूर्व विधानसभा अध्यक्ष डाॅ. बिन्दल के पार्टी अध्यक्ष बनने के बाद खाली हुये स्पीकर के पद को सत्र के शुरू में ही भरा जाना आवश्यक था और इसके लिये स्वास्थ्य मंत्री विपिन सिंह परमार का नाम आ गया है। स्पीकर के लिये जो नाम चर्चा में आये थे उनमें परमार का नाम ज्यादा नही था। लेकिन शैल का आकलन था कि स्पीकर के लिये अन्ततः किसी मंत्री का ही नाम आयेगा। इस कड़ी में शैल ने विक्रम ठाकुर, विपिन परमार और गोबिन्द ठाकुर के नामों की चर्चा की थी। इस चर्चा का आधार था कि जयराम के ये तीनों मंत्री किसी न किसी कारण से पत्र बम्बों की चर्चा का विषय बन गये थे। प्रशासन और राजनितिके विश्लेषक जानते हैं कि जब भी कोई मंत्री या दूसरा नेता ऐसी चर्चा का केन्द्र बन जाता है तो राज्य और केन्द्र की सारी ऐजैन्सीयां इसकी पड़ताल में लग जाती हैं। क्योंकि विपक्ष सरकार को इन्ही हथियारों के माध्यम से घेरता है।
विपिन परमार को लेकर जो विवाद उठा था उसमें जब सरकार ने उस पत्र बम्ब की जांच करवाने के लिये एक माध्यम से एफ आई आर करवा दी और उसमें पूर्व मंत्री रविन्द्र रवि का फोन जब्त कर लिया गया और डी एस पी चम्बा ने अखबारों से यह पूछना शुरू कर दिया कि उन्होने वायरल हुए पत्र को किसके कहने से छाप दिया तब यह अपने आप की स्पष्ट हो गया था कि पत्र में लगे आरोपों का कोई बड़ा आधार है। डी एस पी ने शैल से भी यह जानकारी मांगी थी क्योंकि शैल में यह वायरल पत्र छपा था। राजनीति के विश्लेषक जानते हैं कि जब प्रशासनिक स्तर पर इस तरह के फैसले ले लिये जाते हैं तो उनका परिणाम राजनीतिक फैसलों के माध्यम से ही सामने आता है। शायद इस बार विपक्ष और भाजपा के भी कुछ विधायकों ने इन विषयों पर सवाल उठाये हैं। माना जा रहा है कि जब यह सारी जानकारी केन्द्र सरकार और हाईकमान तक पहुंची तब यह राजनीतिक फैसला लिया गया।
स्पीकर के लिये मुख्यमंत्री कर्नल इन्द्र सिंह के पक्ष में थे और बिन्दल के नाम से राजीव सैजल का नाम चर्चा में आया था। इससे स्पष्ट हो जाता है कि स्पीकर के लिये विपिन परमार के नाम का कोई भी आभास मुख्यमंत्री और पार्टी अध्यक्ष बिन्दल तक को नही था। अब परमार के स्पीकर बन जाने पर मंत्री का एक और पद खाली हो जाता है। मंत्री के दो पद कांगड़ा से खाली हो गये हैं और एक मण्डी से। लेकिन पदों को कब भरा जायेगा और कौन होंगे मंत्री बनने वाले विधायक इस पर अभी फैसला नही हो पाया है। इस समय हमीरपुर, बिलासपुर और सिरमौर से कोई मंत्री नही है। कांगड़ा से भी अकेली सरवीण चौधरी ही मंत्री रह गयी है। क्योंकि विक्रम ठाकुर कांगड़ा के साथ ही हमीरपुर संसदीय क्षेत्र में गिने जाते हैं। इस क्षेत्र से ही विरेन्द्र कंवर और महेन्द्र सिंह ठाकुर आते हैं। ऐसे में माना जा रहा है कि शायद हमीरपुर और बिलासपुर को प्रतिनिधित्व न मिल सके। इस समय कांगड़ा संसदीय क्षेत्र से एक, मण्डी से दो और शिमला से भी दो ही मंत्री हैं। ऐसे में कुल 12 मन्त्रियों में क्या हर के संसदीय क्षेत्र से तीन तीन ऐसे मंत्री हो पाते है या नही । सरकार और संगठन यह तालमेल कैसे बिठा पाते हैं यह देखना महत्वपूर्ण होगा। माना जा रहा है कि अभी राकेश पठानिया के अतिरिक्त और कोई भी नाम मंत्री पद के लिये फाईनल नही हो पाया है। रमेश धवाला, नरेन्द्र बरागटा और सुखराम चौधरी आदि के नाम अभी चर्चा से बाहर ही माने जा रहे हैं। संभव है कि अभी एक ही मंत्री पद भरकर काम चला लिया जाये।