शिमला/शैल। हिमाचल प्रदेश कांग्रेस की 197 सदस्यों की कार्यकारिणी अन्ततः घोषित हो गयी है। यह कार्यकारिणी घोषित करने में जितना लम्बा समय लिया गया और फिर जिस बड़े आकार में यह सामने आयी है उससे पार्टी के भीतर चल रही खींचतान का आसानी से अनुमान लगाया जा सकता है। क्योंकि इसमें जहां सभी विधायकों को स्थान देने का प्रयास किया गया है वहीं पर सभी बड़े नेताओं के परिजनों को भी पद दिये गये हैं। 197 सदस्यों की कार्यकारिणी में 153 पदाधिकारी हैं। स्मरणीय है कि 2019 के शुरू में ही सुखविन्दर सुक्खु को हटाकर कुलदीप राठौर को प्रदेश अध्यक्ष बनाया गया था। लेकिन इस बदलाव के बाद भी पार्टी लोकसभा की चारों सीटें हार गयी। इस हार के कारणों पर हुए मंथन का निष्कर्ष क्या रहा इस पर कोई खुली बहस करने की बजाये थोड़े समय बाद कार्यकारिणी को ही भंगकर दिया गया। कार्यकारिणी भंग होने के बाद हुए दोनों विधानसभा उपचुनावों मंे फिर पार्टी को शर्मनाक हार का सामना करना पड़ा क्योंकि धर्मशाला में पार्टी जमानत तक नही बचा पायी। इसी सबके कारण यहां तक अटकलें चल निकली थी कि अध्यक्ष को भी बदला जा रहा है। अब राठौर तो अपना पद बचाने में सफल हो गये हैं लेकिन यह सवाल उठ गया है कि क्या इतनी बड़ी कार्यकारिणी के साथ अगले विधानसभा चुनावों में कांग्रेस आसानी से भाजपा से सत्ता छीन पायेगी।
अभी जयराम सरकार का तीसरा बजट आया है और इस कार्यकाल के दो और बजट आने शेष हैं। कार्यकाल का अन्तिमवर्ष तो चुनाव का वर्ष होता है। इस परिप्रेक्ष में अभी जो एक डेढ़ वर्ष का कार्यकाल होगा उसी में विपक्ष सरकार को घेरने और सरकार विपक्ष को कमजोर करने का प्रयास करेगा। सरकार को घेरने के लिये उसकी नीतियों और उनके सहारे किये जाने वाले उपलब्धियों के दावों की सत्यता जनता के सामने लानी होती है। इसी के साथ दूसरा बड़ा हथियार भ्रष्टाचार होता है। सरकार में कहां-कहां भष्टाचार हुआ है विपक्ष उसको हथियार बनाता है इसके लिये सरकार के खिलाफ आरोप पत्र लाये जाते हैं। लेकिन अभी तक के कार्याकाल में कांग्रेस ऐसा कोई प्रयास नही कर पायी है। आने वाले दिनों में इस दिशा में क्या होगा यह तो आने वाला समय ही बतायेगा। लेकिन पूर्व में दोनांे पार्टीयां बतौर विपक्ष एक दूसरे के खिलाफ कई आरोप पत्र लायी हुई हैं जिन पर आज तक कोई जांच नही हो पायी है। ऐसे में यह देखना बेहद दिलचस्प होगा कि कांग्रेस जयराम सरकार के खिलाफ ठोस आरोप लेकर आती है या जयराम सरकार वीरभद्र शासन के खिलाफ लाये अपने ही आरोप पत्रांे पर जांच और कारवाई का साहस जुटा पाती है। क्योंकि इस समय जिस तरह से नेता प्रतिपक्ष मुकेश अन्गिहोत्री , पूर्व अध्यक्ष सुक्खु, जगत सिंह नेगी , हर्षवर्धन चैहान और रामलाल सदन में सरकार पर आक्रमकता बनाये हुए हैं क्या उसको सदन के बाहर पार्टी और प्रभावी ढंग से बढ़ा पाती है या नही। यह राठौर के लिये भी परीक्षा का समय होगा।
इस समय कार्यकारिणी में बारह प्रवक्ता और 69 सचिव हैं। यदि यह लोग ईमानदारी से पूरे अध्ययन के साथ प्रदेश और राष्ट्रीय मुद्दों को जनता तक ले जाते हैं तो निश्चित रूप से एक बदलाव का वातावरण तैयार करना कठिन नही होगा। लेकिन इतने बडे़ आकार की कार्यकारिणी में जिस तरह से परिवारवाद भारी रहा है उससे यह आशंका अभी से खड़ी हो गयी है कि क्या पार्टी बड़े नेताओं के साये से बाहर आ पायेगी। क्योंकि 2014 से लगातार हर चुनाव हारती आ रही है। संगठन और सरकार में लगातार अन्ततः विरोध रहे हैं। एक व्यक्ति एक पद के सिन्द्धात को सीधे-सीधे अंगूठा दिखाया गया। पार्टी के समानान्तर एनजीओ के नाम से संगठन खड़ा करने के प्रयास किये गये। एनजीओ के अध्यक्ष ने पार्टी अध्यक्ष के खिलाफ अदालत का दरवाजा तक खटखटाया। आज उस एनजीओ के लगभग सारे पदाधिकारी राठौर की कार्यकारिणी में शामिल हैैं। लेकिन इस कार्यकारिणी में धर्मशाला उपचुनाव के पार्टी उम्मीदवार या उसके समर्थकों को जगह नही मिल पायी है। दूसरी ओर धर्मशाला में सुधीर शर्मा के अन्तिम क्षणों में उपचुनाव से किनारा करने के कारणों को लेकर कुछ भी सामने नही आया है। पार्टी में नये लोगों को जोड़ने के कोई प्रयास नही किये गये हंै। बल्कि भाजपा से कांग्रेस में सुरेश चन्देल भी लगभग हाशिये पर ही चल रहे हैं।
इस परिदृश्य में यह देखना दिलचस्प होगा कि राठौर की यह कार्यकारिणी सही अर्थों में कांग्रेस के लिये चुनौती पेश कर पायेगी या फिर अपने ही भार तले दम तोड़ देगी। क्योंकि जिस तरह से कर्नाटक, गुजरात, मध्यप्रदेश और राजस्थान में भाजपा कांग्रेस के अन्दर तोड़फोड के प्रत्यक्ष/अप्रत्यक्ष प्रयास करने में लगी है उसका असर सभी प्रदेशों पर होगा यह तय है।