क्या कांग्रेस भी राजधर्म भूल रही है

Created on Monday, 06 July 2020 13:00
Written by Shail Samachar

शिमला/शैल। हिमाचल प्रदेश में भी प्रतिदिन कोरोना के मामले बढ़ रहे हैं। हिमाचल सरकार ने इस बढ़ौत्तरी के कारण बाहर से प्रदेश में आने वालों पर रोक लगा दी थी। लेकिन केन्द्र सरकार ने राज्य सरकार के फैसले को खारिज करते हुए प्रदेश की सीमाएं बाहरी राज्यों के लिये खोल दी है। यह फैसला कोरोना की हकीकत को समझने में कारगर भूमिका निभायेगा यह तय है। सत्तारूढ़ भाजपा का संगठन और सरकार दोनों ही इस पर सवाल उठाने का जोखिम नही ले सकते हैं। फ्रन्टलाईन मीडिया में सवाल पूछने का दम नही है भले ही कोरोना से प्रदेशभर में उसका भारी नुकसान हुआ हो क्योंकि अधिकांश के शिमला से बाहर स्थित कार्यालय बन्द हो गये हैं। सरकार की वित्तिय स्थिति कहां खड़ी है और उसका प्रदेश की सेहत पर कितना असर पड़ेगा इसका अन्दाजा वित्त विभाग द्वारा जारी हुए पत्रा से लगाया जा सकता है। भ्रष्टाचार के खिलाफ सरकार के सारे दावों की पोल सीबीआई 28-8-2019 को निदेशक उच्च शिक्षा के नाम लिखा पत्र खोल देता है। इस पत्र के बाद स्वास्थ्य विभाग में हुए घपले पर प्रदेश के ही विजिलैन्स द्वारा की गयी कारवाई इस दिशा में एक और प्रमाण बन जाती है।
लोकतन्त्र में सरकार से सवाल पूछना एक स्वस्थ पंरम्परा मानी जाती है क्योंकि यह हर नागरिक का अधिकार है। लेकिन वर्तमान में इस अधिकार के प्रयोग का क्या अर्थ है इसका अन्दाजा शिमला में पूर्व सीपीएस नीरज भारती और कुमारसेन में दिल्ली के पत्रकार विनोद दुआ के खिलाफ दर्ज हुए देशद्रोह के मामले से लगाया जा सकता है। इन दोनांे मामलों में जमानतें मिल चुकी हैं। अब इनमें यह देखना दिलचस्प होगा कि कैसे इनमें लगाये गये देशद्रोह के आरोपों को पुलिस अपनी जांच में पुख्ता कर पाती है। यह सारे मामले सीधे व्यापक जनहित से जुड़े हुए है क्योंकि इनका असर परोक्ष/ अपरोक्ष में हर आदमी पर पड़ रहा है। भाजपा सत्ता पक्ष होने के नाते यह सवाल उठाने का नैतिक बल खो चुका है।
ऐसे में आम आदमी से जुड़े इन मुद्दों को उठाने और इन पर जवाब देने के लिये सरकार को बाध्य करने की जिम्मेदारी मुख्य विपक्षी दल कांग्रेस पर आती है। फिर आज की तारीख में किसी भी सरकार के खिलाफ इससे बड़े जन मुद्दे क्या हो सकते हैं। लेकिन प्रदेश कांग्रेस इस समय इन मुद्दों को भूलाकर जिस तरह से आपस में ही एक दूसरे के खिलाफ स्कोर सैटल करने में  उलझ रहे हैं उससे लगता है कि वह भी अपना राजधर्म भूल गयी है। राजधर्म सत्ता पक्ष और विपक्ष दोनों की एक बराबर जिम्मेदारी होती है। जनता दोनों पर बराबर नज़रे बनाये हुए हैं। वह देख रही है कि कौन जनता की कीमत पर राजधर्म की जगह मित्र धर्म निभा रहा है। मीडिया और शीर्ष न्यायपालिका दोनों की ओर से जन विश्वास को गहरा आघात पहुंचा है। यदि विपक्ष भी उसी पंक्ति में जा खड़ा होता है तो यह अराजकता को खुला न्योता होगा यह तय है।