शिमला/शैल। प्रदेश कांग्रेस खेमों में बंटती जा रही है यह अब खुलकर सामने आ गया है। यह खेमेबाजी पिछले दिनों पूर्वमन्त्री ठाकुर कौल सिंह के घर हुए पार्टी नेताओं के भोज से शुरू होकर अब पूर्व मुख्यमन्त्री वीरभद्र सिंह के आवास पर हुए लंच आयोजन पर इसका पहला दौर पूरा हो गया है। कौल सिंह के घर सभी नेताओं को आमन्त्रण नही था और जितनों को था वह लगभग सभी थे लेकिन वीरभद्र के घर सभी बड़ों और पूर्व विधायकों को आमन्त्रण था। लेकिन यहां नौ विधायकों समेत करीब तीस नेता इसमें शामिल नही हुए यह हकीकत है। कौल सिंह के घर पर हुए भोज में पार्टी को लेकर कोई घोषित एजैण्डा नही था। लेकिन इस भोज के बाद हाईकमान को एक पत्र गया और उस पत्र में पार्टी की राज्य में स्थिति को लेकर चिन्ता व्यक्त की गयी थी। हाईकमान से आग्रह किया गया था। प्रदेश में संगठन की स्थिति को लेकर गंभीर चिन्तन की आवश्यकता है। यह पत्र मीडिया में वायरल हो गया और इसे पार्टी विरोधी गतिविधि करार दे दिया गया। पार्टी की अनुशासन समिति ने इसका संज्ञान लेकर संवद्ध नेताओं से जवाब तलबी कर ली और इस पर नेताओं ने अपने पदों से त्यागपत्र तक दे दिये। इस पत्र लिखने को संगठन के नेतृत्व के खिलाफ खुली बगावत मान लिया गया। कौल सिंह के घर हुई बैठक में कौल सिंह और सुखविन्दर सिंह दो ऐसे पूर्व अध्यक्ष रहे हैं जिन्हे हटाने के लिये वीरभद्र सिंह बहुत दूर तक चले गये थे सुक्खु के वक्त में तो वीरभद्र ब्रिगेड तक का गठन हो गया था और यह ब्रिगेड वाकायदा एक पंजीकृत एनजीओ तर्ज पर गठित किया गया था। जब इसका संगठन ने संज्ञान लिया तब इसे भंग कर दिया गया। इसके अध्यक्ष ने सुक्खु के खिलाफ मानहानि का दावा तक कर दिया। फिर अधिकांश विधानसभा क्षेत्रों में विधायकों के मुकाबले में समानान्तर सत्ता केन्द्र खड़े कर दिये। इसका परिणाम यह हुआ कि विधानसभा चुनावों में भी इनमें आपसी तालमेल का अभाव रहा और पार्टी चुनाव हार गयी। चुनाव परिणाम आने के बाद कौल सिंह जैसे नेताओं ने इस तरह के आरोप खुलेआम लगाये हैं।
ऐसे में विधानसभा चुनावों के बाद वीरभद्र सिंह ने सुक्खु को हटवाने के लिये पूरी ताकत लगा दी और सुक्खु हट गये। लेकिन सुक्खु का विकल्प कुलदीप राठौर बनाये गये। राठौर कभी विधायक नही रहे हैं इसलिये उन्हे संगठन के सारे खेमों मे तालमेल बिठाना एक बड़ी चुनौती थी। इसके लिये राठौर ने सबसे पहले पुरानी कार्यकारिणी में ही विस्तार करके उसका साईज़ बढ़ा दिया। लेकिन लोकसभा चुनावों में भी जब वीरभद्र सिंह ने मण्डी को लेकर यह ब्यान दिया कि कोई भी मकरझण्डू चुनाव लड़ लेगा तो उसी से स्पष्ट हो गया था कि चुनाव परिणाम क्या रहने वाले हैं। पार्टी का यही भीतरी बिखराव विधानसभा उपचुनावों तक जारी रहा है और करारी हार का सामना करना पड़ा। विधानसभा उपचुनावों की हार कुलदीप राठौर की राजनीतिक असफलता बन गयी क्योंकि उसका व्यक्तिगत आकलन भी इसमें फेल हो गया। अभी तक कुलदीप राठौर कार्यकर्ताओं को भाजपा और जयराम सरकार के खिलाफ कोई ठोस ऐजैण्डा नही दे पाये हैं। उनका कोई भी प्रवक्ता सरकार के खिलाफ कोई बड़ा मुद्दा नही उछाल पाये हैं। कई बार तो ऐसा लगता है कि कांग्रेस के कार्यकर्ताओं को अपनी ही पार्टी की आर्थिक और सामाजिक सोच के बारे में पूरी और सही जानकारी ही नही हैं जबकि आज भाजपा ने केन्द्र से लेकर राज्यों तक जो वातावरण खड़ा कर दिया है उसे सबसे पहले विचारधारा के स्तर पर जनता में चुनौती देनी होगी। लेकिन दुर्भाग्य से आज कांग्रेस इसी पक्ष पर सबसे कमजो़र है। यदि यही स्थिति आगे भी बनी रहती है तो कांग्रेस के लिये आने वाला समय और भी कठिन हो जायेगा।
लेकिन कांग्रेस इस पक्ष की ओर ध्यान देने की बजाये अभी से अगले नेता को लेकर आपस में झगड़ने लग पड़ी है। यह सही है कि वीरभद्र सिंह आज उम्र के जिस पडा़व पर पहुंच चुके हैं वहां से वह अगले चुनावों में पार्टी का नेतृत्व नही कर पायेंगे। ऐसे में पार्टी का अगला नेता कौन होगा इस बारे में भी शायद खुलेआम किसी एक नेता का नाम वीरभद्र सिंह नही लेंगे और यही उनकी सबसे बड़ी कमजा़ेरी भी है। जबकि इस समय यदि किसी को अगला नेता प्रौजैक्ट कर दिया जाता है तो वह नेता चुनावों तक अपने को संगठन और जनता में प्रमाणित कर पायेगा तथा सबको साथ लेने में सफल भी हो सकता है। लेकिन अभी पार्टी में इस लाईन पर कोई सोच ही नही बन पायी है। पार्टी नये लोगों को जोड़ ही नही पा रही है। भाजपा ने संपर्क से समर्थन कार्यक्रम चलाकर बहुत सारे लोगों को अपना आलोचक होने से रोक दिया था। लेकिन कांग्रेस अभी तक भाजपा छोड़कर कांग्रेस में आये सुरेश चन्देल को भी पूरा सक्रिय नही कर पायी है। आज जब वीरभद्र के लंच पर सभी आमन्त्रित नही पहुंचे हैं तो इससे स्पष्ट हो जाना चाहिये कि पार्टी के अन्दर एक बड़ा वर्ग अब नेतृत्व में बदलाव चाहता है। आज नेतृत्व को भाजपा सरकार के खिलाफ वैसी ही आक्रामकता लानी होगी जैसी वीरभद्र सिंह ने अपने समय में दिखायी है।
आज जयराम सरकार बहुत सारे अन्तःविरोधों में घिरी हुई है लेकिन कांग्रेस की ओर से सरकार को घेरने के लिये कोई कारगर प्रयास नही किये जा रहे हैं। बल्कि यह संदेश जा रहा है कि वीरभद्र नहीं चाहते कि जयराम सरकार के खिलाफ सही में ही कोई बड़ा मुद्दा खड़ा किया जाये। यदि कांग्रेस समय रहते इस ओर ध्यान नही देती है तो आने वाले दिनों में संगठन के भीतर एक बड़ी बगावत को रोक पाना संभव नही होगा। क्योंकि अब ‘‘मै नही तो कोई भी नही’’ की नीति पर चलकर सत्ता पा लेना संभव नही होगा।