शिमला/शैल। प्रदेश भाजपा का अध्यक्ष पद 27 मई से खाली चला आ रहा है। बल्कि किसी को भी कार्यकारी अध्यक्ष तक की जिम्मेदारी नही दी गयी। भाजपा जैसी अनुशासित और संघ से नियन्त्रित पार्टी में भी ऐसी स्थिति का आ खड़ा होना कालान्तर में सरकार और संगठन दोनो के लिये ही घातक होगा यह तय है। फिर इसमें इससे और भी गंभीरता आ जाती है कि पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष नड्डा भी हिमाचल से ही ताल्लुक रखते हैं। यहीं पर वह स्वास्थ्य और वन मन्त्री रह चुके हैं। इस नाते इतनी देर तक यहां अध्यक्ष पद का खाली रहना कई सवाल खड़े कर जाता है। इसमें उस समय तो और भी स्थिति हास्यस्पद हो गयी जब राज्यसभा सांसद सुश्री इन्दु गोस्वामी का नाम अध्यक्ष के लिये सोशल मीडिया से लेकर अखबार तक छप गया और कैलाश विजयवर्गीय जैसे आदमी ने बधाई तक दे दी और बाद में वह सबकुछ हवाहवाई निकला। इन्दु गोस्वामी के अध्यक्ष बन जाने की चर्चा मीडिया में कैसे आ गयी? इसी चर्चा में संगठन मन्त्री पवन राणा का नाम कैसे आ गया? फिर अखबार में छपी खबर पर इन्दु गोस्वामी की अलग प्रतिक्रियायें आना कुछ ऐसे सवाल हैं जिनका जब भी खुलासा होगा तो उससे कोई बड़ा विस्फोट होगा यह तय है। क्योंकि इन्दु गोस्वामी अपने अध्यक्ष बनने की खबर मीडिया को तब तक नही देंगी जब तक नियुक्ति पत्र उनके हाथ में नही होगा। ऐसे में यह स्पष्ट है कि किसी ने बडे़ ही सुनियोजित ढंग से इस नाम को उछालकर उनका रास्ता रोकने का प्रयास किया है।
ऐसा किसने और क्यों किया होगा इसके लिये यदि पिछे घटे कुछ अहम बिन्दुओं पर विचार करें तो बहुत सारी चीजें समझ में आ जाती हैं। इन्दु गोस्वामी को पार्टी ने पालमपुर से चुनाव लड़वाया था। यहां टिकट के लिये कितने और कौन कौन लोग उनके प्रतिद्वन्दी थे सब जानते हैं। चुनाव में पार्टी के ही बड़े लोगों ने उन्हें कितना सहयोग दिया यह भी किसी से छिपा नही है। चुनाव हारने के बाद उन्होने कैसे अपने पद से त्यागपत्र दिया यह उन्ही के पत्र से स्पष्ट हो जाता है जो उन्होने नेतृत्व को लिखा था। इस पत्र पर पार्टी की ओर से कैसी और किस तर्ज पर प्रतिक्रिया आयी थी यह भी सब जानते हैं। राज्य सभा के लिये वह कैसे गयीं सब जानते हैं कि यहां से उनका नाम सूची में नही था और दिल्ली के निर्देशों पर उनका नाम भेजा गया। इस तरह जिसे विधायक नही बनने दिया गया वह राज्यसभा सांसद बन गयी। स्वभाविक है कि जो लोग उन्हे पहले विधायक फिर सांसद नहीं बनने देना चाहते थे वह अब आसानी से प्रदेश अध्यक्ष क्यों बनने देंगे। लेकिन इस पूरे घटनाक्रम का पार्टी के आम कार्यकर्ता पर क्या प्रभाव पड़ेगा इसका आकलन तो आने वाले समय में ही होगा। इसी दौरान यह चर्चा भी चली कि दो विधायकों को मन्त्री बनाया जा रहा है और अमुक दिन शपथ हो रही है लेकिन अन्त में परिणाम शून्य रहा। फिर चार लोगों को विभिन्न निगमों /बोर्डाें मे अध्यक्ष बनाये जाने की चर्चा चली और यह भी सिरे नही चढ़ी। इसके बाद मुख्यमन्त्री के ओएसडी और राजनीतिक सलाहकार को सचिवालय से बाहर ताजपोशीयां देने की जोरदार चर्चा चली। यह भी सही है कि यह सारी चर्चाएं हवाहवाई ही नही थीं लेकिन इनको रूकवा दिया गया। आज प्रशासन में हालात यहां तक पहुंच गये हैं कि जयराम ठाकुर बतौर वित्त मन्त्री तो सारे प्रशासनिक सचिवों और विभागाध्यक्षों को सचिव वित्त से निर्देश दिला रहे हैं कि बजट के 20% से ज्यादा खर्च न किया जाये। लेकिन दूसरी ओर बतौर मुख्यमन्त्री करोड़ों के शिलान्यास और घोषणाएं कर रहे हैं। यह दावा किया जा रहा है कि सरकार के पास 14000 करोड़ बिना खर्च पड़े हुए हैं परन्तु विधायकों की क्षेत्रा विकास निधि स्थगित पड़ी है। इस तरह के कई विरोधाभास आज सरकार की कार्यप्रणाली में सामने आ रहे हैं।
इस परिदृश्य में कल को जो भी पार्टी का अध्यक्ष बनता है वह सरकार की इस तरह की कार्यशैली से कैसे संगठन और सरकार में तालमेल बिठा पायेगा यह एक बड़ा सवाल रहेगा। ऐसे में इन्दु गोस्वामी ही अन्ततः अध्यक्ष बन जाती हैं तब तो स्थिति और भी दिलचस्प हो जायेगी।