26 लाख की जमीन 90 लाख में क्यों ली जा रही थी
जब 2020 में सर्किल रेट 26 लाख है तो 2016 में तो इससे भी कम रहा होगा
क्या 85 लाख की पैमेन्ट करने के बाद रजिस्ट्री के लिये चार वर्ष का इन्तजा़र करेगा कोई
यदि भाजपा को 118 की अनुमति लेने में चार वर्ष लग सकते हैं तो आम आदमी का क्या होगा। शिमला/शैल। सत्तारूढ़ प्रदेश भारतीय जनता पार्टी के साथ जमीन खरीद के एक मामले में हुई धोखाधड़ी को लेकर अब पार्टी के भीतर ही सवाल उठने शुरू हो गये हैं। पार्टी के साथ धोखाधड़ी का यह मामला सोलन में घटा है और सोलन के ही कुछ कार्यकर्ताओं ने राष्ट्रीय अध्यक्ष को पत्र लिखकर प्रदेश में खरीदी गयी सारी जमीनों के मामलों में एक उच्च स्तरीय जांच करवाने का आग्रह किया है। इन कार्यकर्ताओं ने इस बात पर हैरानी जताई है कि कैसे 85 लाख देने के बाद भी तीन वर्ष तक इस जमीन की रजिस्ट्री नही करवा पायी? स्मरणीय है कि वर्ष 2016 में पालमपुर में पार्टी की एक बैठक तत्कालीन राष्ट्रीय अध्यक्ष अमितशाह की अध्यक्षता में हुई थी। इस बैठक में प्रदेश के सभी सत्रह संगठनात्मक जिलों में पार्टी के कार्यालय बनाने का फैसला हुआ था। कृपाल परमार की अध्यक्षता मे इस आशय की कमेटी गठित की गयी थी। इस कमेटी ने सभी जिलों में इस काम के लिये कमेटीयां गठित की थी। सोलन के लिये पवन गुप्ता की अध्यक्षता में यह कमेटी बनी थी। कमेटी ने आगे कुछ कार्यकर्ताओं को जमीन तलाश करने के काम पर लगा दिया जिसमें पार्षद मनीष भी शामिल थे। इन लोगों ने मौजा समलेच में एक भूमि चिन्हित की और खरीद का इकरारनामा जमीन के मालिक दीनानाथ के साथ 7-10-2016 को हस्ताक्षरित हो गया। एक बीघा जमीन 90 लाख में खरीद ली गयी और इकरारनामा साईन करते समय 35 लाख की पैमेन्ट बाकायदा आरटीजीएस के माध्यम से कर दी गयी। खरीद का इकरारनामा पार्टी के कैशियर कपिल देव सूद और दीनानाथ के मध्य हुआ और मनीष कुमार इसमें बतौर गवाह शामिल हुए 7-10-2016 को 35 लाख देकर खरीद का अनुबन्ध होता है और 50 लाख 30-3-2017 तक देने का वायदा होता है। शेष 5 लाख रजिस्ट्री के समय देना तय हुआ। इस अनुबन्ध के तहत 50 लाख 29-3-2017 को आरटीजीएस के माध्यम से कर दिया जाता है।
यह 50 लाख देने के बाद धारा 118 के तहत जमीन खरीद की अनुमति लेने के लिये हिमाचल सरकार को आवेदन कर दिया जाता है। लेकिन धारा 118 के तहत जीमन खरीद की अनुमति 2020 तक भी नही ली जाती है या नही मिलती है और इसी बीच 17-2-2020 को इस जमीन का मालिक इसे एक श्रीमति पारूल संगल को 26 लाख में बेच देता है और 17-2-2020 को ही इसकी रजिस्ट्री भी हो जाताी है। यह जानकारी मिलने के बाद पार्टी के जिला सोलन के अध्यक्ष आशुतोष वैद्य 16-7-2020 को इस संबंध में पुलिस अधीक्षक सोलन को इसकी लिखित शिकायत सौंपते हैं। इस शिकायत की प्रति मुख्य सचिव, गृह और डीजीपी को भी सौंपी जाती हैं। इस शिकायत के बाद पुलिस जांच शुरू कर देती है और जमीन के मालिक दीनानाथ को गिरफ्तार कर लेती है। मनीष कुमार सर्वोच्च न्यायालय से अग्रिम जमानत लेने मंें सफल हो जाता है और फिर प्रैस के समाने आकर यह दावा करता है कि इस धोखाधड़ी मे उसकी कोई भूमिका नही है। मनीष के मुताबिक उसने तो पार्टी कार्यकर्ता होने के नाते अनुबन्ध पर हस्ताक्षर किये हैं और वह जांच में पूरा सहयोग देने को तैयार है। इसी के साथ शिकायतकर्ता आशुतोष वैद्य ने दीनानाथ की जमानत याचिका रद्द करने के लिये भी सोलन के कोर्ट न0 एक में याचिका दायर कर दी है। अभी इस मामले की जांच चल रही है और पारूल संगल को उसके 26 लाख देकर उससे जमीन वापिस ले ली गयी है।
इस प्रकरण में जो प्रमुख सवाल उभरकर सामने आते हैं उन पर अभी तक कोई ध्यान नही दिया जा रहा है। भाजप के साथ इस जमीन का सौदा 7-10-2016 को नोटबंदी से कुछ पहले 90 लाख में किया जाता है और उसी दिन 35 लाख का भुगतान आरटीजीएस के माध्यम से ओबीसी बैंक शिमला किया जाता है। इसके बाद 29-3-2017 को नोटबंदी के बाद जब आम आदमी को बैंकों से नये नोटों में इनता पैसा मिलने में कठिनाई आ रही थी तब फिर इसी ओबीसी बैंक से 50 लाख रूपया आरटीजीएस के माध्यम से अदा किया जाता है। इस तरह मार्च 2017 में 85 लाख खर्च करने बाद भी चार वर्ष तक रजिस्ट्री न करवाने की सोच सकता है ऐसा तभी संभव हो सकता है जब जमीन के मालिक पर पूरा विश्वास हो। दूसरा सवाल आता है कि ऐसा कैसे संभव हो सकता है कि भाजपा को ही चार वर्ष में धारा 118 के तहत जमीन खरीद की अनुमति न मिल पाये। जबकि जनवरी 2018 से तो भाजपा की ही सरकार प्रदेश में है। यदि भाजपा को ही यह अनुमति लेने में तीन वर्ष लग जायेंगे तो औरों का क्या हाल होगा? इसके बाद सबसे गंभीर प्रश्न तो यह है कि जब पारूल संगल के नाम 17-2-2020 को इस जमीन की 26 लाख में रजिस्ट्री हुई तब राजस्व विभाग के दस्तावेज के मुताबिक इस जमीन का सर्किल रेट 2609119 रूपये दर्ज और इसकी रजिस्ट्री 26.20 लाख में हुई। यदि 2020 में इसका सर्किल रेट 26 लाख है तो निश्चित रूप से 2016 में इससे अधिक नही नही था। कम तो हो सकता है। ऐसे में यह सवाल उठना स्वभाविक है कि 26 लाख की जमीन भाजपा 90 लाख में क्यों ले रही थी? क्या आज इसकी रजिस्ट्री भाजपा 90 लाख में करवायेगी?
जो जमीन 90 लाख रूपये में ली जा रही है स्वभाविक है कि उसके ऊपर किये जाने वाले निर्माण पर भी तीन -चार करोड़ तो खर्च किया ही जायेगा। भाजपा प्रदेश के सभी सत्रह संगठनात्मक जिलों में अपने कार्यालयों का निर्माण करने जा रही है और इस तरह यह पूरा प्रोजेक्ट सौ करोड़ के करीब का अवश्य रहा होगा। यदि सभी जगहों पर 26 लाख की जमीन 90 लाख में ली जा रही होगी तो यह अपने में कितना बड़ा सवाल हो सकता है यह प्रकरण तो सोलन की ज़मीन के पुनः बिकने से सामने आ गया और इस पर जिलाध्यक्ष ने पुलिस में शिकायत कर दी। यदि ऐसा न होता तो इसकी रजिस्ट्री भी 26 लाख के सर्किल रेट पर ही न होती और बाकी का पैसा कहीं और बंट जाता। ऐसी सारी संभावनाओं को सामने रखकर ही इस बारे में राष्ट्रीय अध्यक्ष को पत्रा लिख कर पूरे प्रदेश की खरीद पर जांच करवाने का आग्रह किया गया है।