शिमला/शैल। शिमला में गाड़ी पार्क करना एक बड़ी समस्या है। शायद 25% घरों के पास ही अपनी पार्किंग की सुविधा है जबकि गाड़ी लगभग हर घर के पास है। शहर की व्यवस्था नगर निगम के पास है इसलिये शहर में बनने वाले हर मकान का नक्शा नगर निगम से पास करवाया जाता है। नक्शा पास करने की फीस ली जाती है। यह इसीलिये किये जाता है ताकि उस घर को मिलने वाली सारी सार्वजनिक सेवाएं उसे आसानी से उपलब्ध हो सकें। नक्शा पास करने का जो शुल्क लिया जाता है वह यही सेवाएं उपलब्ध करवाने के नाम पर लिया जाता है। मकान बन जाने के बाद फिर संपति कर लेना शुरू हो जाता है। सारे शुल्क सेवाएं उपलब्ध करवाने के नाम पर लिये जाते हैं लेकिन क्या यह संवायें हर घर को आसानी से उपलब्ध हो पा रही हैं शायद नहीं। आज भी ऐम्बुलैन्स और अन्गिशमन की गाड़ी हर घर के पास नही पहुंच पाती है। यह सब योजना की कमीयां हैं। आज भी नक्शा पास करते हुए पार्किंग का प्रावधान अनिवार्य नही किया गया है। जबकि जो भी मकान सड़क के साथ लगता हो उसे उस लेबल पर पार्किंग का प्रावधान करना अनिवार्य कर दिया जाना चाहिए। इस समय सड़कों पर येलो लाईन लगाकर पार्किंग का प्रावधान किया जा रहा है। लेकिन इस प्रावधान के नाम पर इन सड़कों को एक मुश्त नीलाम करके इकट्ठा शुल्क ले लिया जा रहा है। इस नीलामी के नाम पर शहर के दुकानदारों का इन सड़कों पर एकाधिकार का रास्ता खोल दिया गया है। इससे जो दूसरे लोग लोअर बाजा़र, मालरोड़ नगर के दूसरे हिस्सों से सामान खरीदने या थोड़ी देर के लिये घूमने आते हैं उन्हे अब गाड़ी पार्क करने की सुविधा नही मिल पा रही है। जबकि पहले यूएस क्लब से लिफ्रट तक आने वाली सड़क पर सबको गाड़ी पार्क करने की सुविधा मिल जाती थी। नगर निगम ठेकेदारों को यह काम सौंप देती थी और वह उतने समय की फीस ले लेता था जितनी देर गाड़ी पार्क रहती थी। लेकिन अब सडक पर गाड़ियों के नम्बर लिख दिये गये हैं और वह उनकी स्थायी पार्किंग बन गयी है। इसमें यह भी देखने को मिल रहा है कि सड़क का नम्बर किसी और गाड़ी का लिखा है और पार्क उसी की दूसरे नम्बर की गाड़ी हो रही है। इस तरह गाड़ी को नहीं व्यक्ति को स्थायी रूप से स्थान दे दिया गया है। ऐसा शहर की कई सकड़ों पर किया गया है जबकि रोड़ टैक्स तो हर गाड़ी से लिया जाता है ऐसे में जिस भी गाड़ी के पास इन सड़कों पर आने का परमिट है उन्हें अब यहां पार्किंग नही मिल रही है जबकि रोड़ टैक्स तो सब गाड़ीयों से एक बराबर लिया जाता है। फिर सबसे रोड़ टैक्स लेने के बाद कुछ एक को नीलामी के नाम पर स्थायी सुविधा कैसे दी जा सकती है। चर्चा है कि नगर निगम ने व्यापार मण्डल के दबाव में आकर यह सब किया है और राजनीतिक तथा प्रशासनिक नेतृत्व ने इस पर आखें बन्द कर ली हैं। शहर की सार्वजनिक सड़कों को नीलामी के नाम पर कुछ अमीर लोगों को सौंप देना बड़ी चर्चा का विषय बना हुआ है।