क्या केन्द्रीय मुद्दों पर खामोश रहकर सुशान्त का प्रयोग सफल हो पायेगा

Created on Tuesday, 27 October 2020 09:11
Written by Shail Samachar

शिमला/शैल। पूर्व मन्त्री एवम् सासंद डा. राजन सुशान्त ने राजनीतिक विकल्प के नाम पर प्रदेश में ‘‘अपनी पार्टी-हिमाचल पार्टी’’ के नाम से एक राजनीतिक दल का गठन किया है। इस दल की औपचारिक घोषणा करते हुए सुशान्त ने स्वयं इसे एक राजनीतिक प्रयोग कहा है। राजनीतिक प्रयोग कहकर आने वाले समय में यदि यह प्रयोग अफसल भी हो जाता है या कोई और आकार ले लेता है तो वह इसकी असफलता के दोष से बच जाते हैं। प्रयोग शब्द का चयन ही अपने में महत्वपूर्ण है। सुशान्त आरएसएस के तृतीय वर्ष प्रशिक्षित कार्यकर्ता हैं और प्रदेश में भाजपा के संस्थापकों में से एक हैं। सुशान्त प्रदेश की राजनीति में आन्दोलन से आये हैं। उन्हें यह राजनीति विरासत मे नही मिली है। इसलिये आन्दोलनों की पृष्ठिभूमि से राजनीति में आया व्यक्ति जब इस तरह के प्रयोग करने पर आ जाता है तब सब कुछ का नये सिरे से आकलन करना आवश्यक हो जाता है। क्योंकि राजनीतिक दल का गठन और उसकी गतिविधियां एक व्यक्ति या एक परिवार तक ही सीमित नही रहती हैं बल्कि पूरे समाज को प्रभावित करती हैं।
सुशान्त ने दल की घोषणा करते हुए प्रदेश की समस्याओं का जिक्र करते हुए यह आरोप लगाया है कि भाजपा या कांग्रेस की सरकारों के हाथों प्रदेश समस्याओं से नही निकल पायेगा। क्योंकि इन दलों का प्रदेश नेतृत्व दिल्ली के नेतृत्व की सूबेदारी से ज्यादा अहमियत ही नही रखता है। इसके उदाहरण के लिये उन्होने पंजाब पुनर्गठन में प्रदेश को मिले 7.19% हिस्से को व्यवहारिक रूप में ले पाने में कांग्रेस और भाजपा सरकारों का असफल रहना कहा है। क्योंकि जिन प्रभावित प्रदेशों से हिस्सा मिलना है उनके संसद में 48 सांसद है और जिन्होने हिस्सा लेना है उनके केवल चार सांसद हैं। मुख्यमन्त्री जयराम ठाकुर ने भी चण्डीगढ़ में एक पत्रकार वार्ता आयोजित करके दावा किया था कि यह हिस्सा लेना उनकी प्राथमिकता होगा। लेकिन अब तक यह दावा पत्रकार वार्ता से आगे नहीं बढ़ पाया है यह व्यवहारिक स्थिति है। यह बात सही है कि बहुत सारे मुद्दों पर हिमाचल का नेतृत्व केन्द्र में अपना पक्ष प्रभावी तरीके से नही रख पा रहा है। लेकिन ऐसा शायद इसलिये होता रहा है कि बजट की दृष्टि से हिमाचल की केन्द्र पर निर्भरता 67 से 70% रहती आयी है। प्रदेश की आत्मनिर्भरता के लिये जिन संसाधनों की बात सुशान्त ने कही है उन पर आज तक उन्होने भी सत्ता पक्ष में रहते हुए कभी बात नही की है। क्योंकि जब भी हिमाचल पानी और बर्फ की बात करेगा तो बदले में जवाब मिलेगा कि पानी का बहाव और बर्फ के पिघलने को रोक ले जो कि संभव नही है। इसके दोहन के लिये साधन नही हैं। ऐसे में प्रदेश के अपने संसाधनों पर निर्भरता के लिये बहुत कुछ चाहिये और उस सबकी चर्चा से सुशान्त दूर रहे हैं। इसलिये जिन मुद्दों पर सुशान्त ने शुरूआत करने की बात की है वह है पुरानी पैन्शन योजना की बहाली। इस समय देशभर का कर्मचारी इस योजना की बात कर रहा है। यह मुद्दा कर्मचारी राजनीति के लिये तो महत्वपूर्ण हो सकता है लेकिन यही मुद्दा प्रदेश के आम आदमी का मुद्दा नही बन जाता है।
इस समय देश और प्रदेश अभूतपूर्व आर्थिक संकट से गुजर रहा है। यह संकट देश में नोटबन्दी से शुरू हो गया था। आज कोरोना काल में आये लाकडाऊन के कारण इस संकट पर सार्वजनिक बसह नही चल पायी है। मोदी सरकार के आने के बाद बैंकों का एनपीए कितना बढा है? इस दौरान कितने लाख करोड़ का ऋण राईटआफ कर दिया गया। कितने लाख करोड़ के बैंक फ्राड हुए हैं। इन सबके कारण देश आर्थिक संकट में आया है कोरोना तो इसमें एक बड़ा छोटा सा फैक्टर रहा है लेकिन सुशान्त ने इस आर्थिक संकट को लेकर एक शब्द भी नही कहा है। इसी के साथ कृषि उपज विधेयकों को लेकर देशभर का किसान आज आन्दोलन में है। श्रम कानूनों के संशोधन से श्रमिकों के हितों को कुचल कर रख दिया गया है। लेकिन सुशान्त इन सारे ज्लवन्त मुद्दों पर एकदम खामोश रहे हैं। क्योंकि इस सबके पीछे संघ की सोच प्रभावी है। हिन्दु ऐजैण्डा संघ का मूल मुद्दा है। मोदी सरकार को तो उसे लागू करने की जिम्मेदारी दी गयी है। आज वैचारिक स्तर पर देश संघ की विचारधारा के साथ टकराव में चल रहा है। ऐसे में जो भी राजनेता देश स्तर पर या प्रदेश के स्तर पर किसी राजनीतिक दल के गठन की बात करेगा उसे इन मुद्दों पर स्पष्ट होना होगा। सुशान्त ने शायद संघ की पृष्ठभूमि के कारण इन मुद्दों से बचने का प्रयास किया है। इस समय पूरे देश की राजनीतिक केन्द्र से प्रभावित हो रही है। क्योंकि जो परिस्थितियां इस समय बनती जा रही है वह आज से पहले नही रही हैं। इसलिये जो भी नेता इन परिस्थितियों पर स्पष्ट पक्ष लेने से बचेगा जनता में उसकी स्वीकार्यता बनना संभव नही होगा ।