अब विभाग में स्कैम होना होगा प्रशंसा का मानक

Created on Tuesday, 05 January 2021 10:30
Written by Shail Samachar

शिमला/शैल। मुख्यमन्त्री ने सत्ता के तीन वर्ष पूरे होने पर अपने ही अधिकारियों के काम काज का आकलन जिस तरह से प्रदेश की जनता के सामने रखा है उससे सरकार की नीति पर स्वतः ही सवाल उठने लग गये हैं क्योंकि इस अवसर पर मुख्यमन्त्री ने अपने ही कुछ अधिकारियों के काम काज पर यह कहा है कि अधिकारी काम नहीं कर रहे हैं और उनसे काम लेने के लिये आक्रामक रणनीति अपनाई जायेगी। संभव है कि मुख्यमन्त्री के इस अनुभव का अपना कोई ठोस आधार रहा हो। लेकिन इसी के साथ जब मुख्यमन्त्री ने स्वास्थ्य विभाग की प्रशंसा भी कर डाली तो उससे कुछ और ही सवाल उठने लग पड़े हैं। यह सही है कि महामारी के दौर में स्वास्थ्य विभाग की जिम्मेदारी दूसरों से ज्यादा रही है। लेकिन यह जिम्मेदारी निभाने के लिये उसके पास संसाधन भी ज्यादा रहे हैं। लेकिन इस बढ़ी हुई जिम्मेदारी में यह भी कड़वा सच रहा है कि विभाग पर इसी दौरान भ्रष्टाचार के आरोप भी लगे हैं। इन आरोपों पर सरकार को विजिलैन्स में मामला दर्ज करवाना पड़ा। यह मामला दर्ज होने पर विभाग के निदेशक तक की गिरफ्तारी हो गयी। इसी मामलें की आंच पार्टी अध्यक्ष तक जा पहुंची और उन्हें अपना पद छोड़ना पड़ा। यही नहीं यह मामला बनने से पहले विभाग पत्र बम का शिकार हुआ जिसकी आंच में पार्टी का पूर्व मन्त्री तक झुलस गया।
इसी तरह जब विभाग की कार्यप्रणाली को लेकर बहुत पहले से ही सवाल उठने शुरू हो गये थे तब इन सवालों के साये में चल रहे विभाग की कार्यप्रणाली की प्रशंसा किया जाना क्या सरकार की नीयत और नीति पर सवाल नहीं उठायेगा। क्या इसका यह अर्थ नहीं निकलेगा कि जिस विभाग में नियमों/कानूनों को नज़रअन्दाज कर काम किया जायेगा उसी को प्रशंसा का प्रमाण पत्र मिलेगा। जो अधिकारी नियमों के दायरे में रह कर काम करेंगे क्या वह काम न करने वालों की श्रेणी में आयेंगे क्योंकि मुख्यमन्त्री के अपने ही आकलन से यह सवाल उठने लगा है। इस तरह के आकलन से शीर्ष अफसरशाही में न चाहे ही एक शीत युद्ध छिड़ गया है। संयोगवश इस समय कुछ ऐसे अधिकारी महत्वपूर्ण पदों पर बैठ गये हैं जिनकी कार्य निष्ठा को लेकर कई सवाल खड़े हैं। शायद जिन अधिकारियों को नियमों के अनुसार ओडीआई सूची में होना चाहिये था वह इस समय नीति निरधारकों की सक्रिय भूमिका में हैं। अधिकारियों में चल रहे शीत युद्ध से पूरी सरकार की कार्यप्रणाली प्रभावित हो रही है। बल्कि इस शीत युद्ध का साया स्वयं मुख्यमन्त्री के अपने सचिवालय को भी प्रभावित कर रहा है। क्योंकि पिछले दिनों जिस ढंग से इस कार्यालय में अधिकारियों की तैनातियां सामने आयी हैं उनमें यहां तक टिप्पणीयां चर्चा में आ रही हैं कि अमुक अधिकारी संघ के निर्देश पर वहां तैनात हुआ है तो अमुक एक मन्त्री और सेवानिवृत नौकरशाह की सिफारिश पर यहां आया है। यह चर्चाएं इसलिये उठी हैं क्योंकि मुख्यमन्त्री के अपने सचिवालय में ही तीसरे वर्ष में इस तरह की रद्दोबदल हुई है।
मुख्यमन्त्री सचिवालय में तीसरे वर्ष में आकर रद्दोबदल होने को लेकर सवाल और चर्चाएं उठना स्वभाविक है। क्योंकि यही कार्यालय सबसे ज्यादा संवेदनशील होता है। इसी की वर्किंग से सरकार को लेकर जनता में सन्देश जाता है। सामान्यतः ऐसे स्थलों पर कार्य कर रहे अधिकारियों का कार्यकाल तो मुख्यमन्त्री के अपने कार्यकाल के समान्तर ही रहता आया है परन्तु इस बार इसमें अपवाद घटा है और इसी कारण चर्चाओं का विषय भी बन गया है। अब यहां तक कहा जाने लग पड़ा है कि जब अधिकारी के अपने कार्यकाल की ही कोई निश्चितता नहीं रह जायेगी तो उनका कार्य निष्पादन भी कितना प्रभावी रह पायेगा। माना जा रहा है कि आने वाले दिनों में अधिकारियों की कार्यप्रणाली को लेकर कई रोचक किस्से सामने आयेंगे क्योंकि जब सरकार कुछ के मामलों में अदालत के निर्देशों तक का संज्ञान नहीं लेगी तो ऐसे लोगों पर सरकार के ‘‘अति विश्वास’’ के चर्चे तो उठेंगे ही।