कांग्रेस में गद्दार कौन है वीरभद्र के ब्यान से छिड़ी चर्चा

Created on Wednesday, 03 February 2021 06:59
Written by Shail Samachar
शिमला/शैल। हिमाचल प्रदेश कांग्रेस के वरिष्ठतम नेता और छः बार प्रदेश के मुख्यमन्त्री रहे और वर्तमान में अर्की विधानसभा क्षेत्र के विधायक वीरभद्र सिंह ने अपने चुनाव क्षेत्र के नव निर्वाचित कांग्रेस समर्थक सदस्यों को संबोधित करते हुए यह कहा कि वह अब चुनाव नहीं लड़ेंगे। इसी अवसर पर उन्होंने कांग्रेस जनो से भी यह आह्वान किया कि वह पार्टी के भीतर बैठे गद्दारों को बाहर करने के लिये आगे आयें। यहां पर उन्होंने यह भी स्पष्ट कहा कि वह कांग्रेसी थे-है और मरते दम तक रहेंगे। अर्की के इस संबोधन के बाद जब उनसे पुनः यह पूछा गया कि क्या वह सही में ही अगला चुनाव नहीं लड़ेंगे तब कहा कि यह परिस्थितियों पर निर्भर करता है। वीरभद्र छः बार मुख्यमन्त्री रह चुके हैं इस नाते प्रदेश के हर कोने में उनके समर्थक मिल जायेंगे यह स्वभाविक है। इस समय भी यदि यह सवाल आयेगा कि कांग्रेस का अगले चुनावों मे नेता कौन होगा तो उन्हीं का नाम सामने आयेगा। ऐसे में जब तक वीरभद्र यह पक्के तौर पर स्पष्ट नहीं कर देते हैं कि वह चुनाव लड़ेंगे या नहीं तब तक कांग्रेस में असमंजस की स्थिति बनी रहेगी और पार्टी को उसका नुकसान होगा।
वीरभद्र के इस दोहरे कथन के साथ ही उनका यह आह्वान और भी महत्वपूर्ण हो जाता है कि पार्टी के भीतर बैठे गद्दारों को बाहर निकाला जाये। स्वभाविक है कि उनकी नज़र में पार्टी के भीतर कुछ गद्दार हैं और उनको निकालने के लिये वीरभद्र ने एक तरह से लड़ाई का ऐलान कर दिया है। वीरभद्र जिसको एक बार अपना विरोधी मान लेते हैं तो उसे हराने के लिये वह किसी भी हद तक जा सकते हैं। 1980 में प्रदेश के वन माफिया के खिलाफ सांसदो/विधायकों के नाम खुला पत्र लिखने से शुरू करके, 1993 में आधे विधायकों के चण्डीगढ़ में बैठे रहने के बावजूद उनका मुख्यमन्त्री पद की शपथ लेना फिर कौल सिंह ठाकुर और सुक्खविन्द्र सुक्खु को अध्यक्ष पद से हटवाने तथा उनके समर्थकों द्वारा एक समय वीरभद्र ब्रिगेड तक का गठन कर लेना ऐसे उदाहरण हैं जो उनकी लड़ाई के स्पष्ट प्रमाण है। इस सबसे वीरभद्र कांग्रेस के ऐसे वटवृक्ष बन गये कि उनके साये तले कोई दूसरा नेता उभर ही नहीं पाया। इसका पार्टी को यह नुकसान हुआ कि आज ‘‘वीरभद्र के बाद कौन’’ यह पार्टी के लिये पक्ष प्रश्न बन कर खड़ा है। क्योंकि कौल सिंह, जी एस बाली और सुधीर शर्मा जैसे नेताओं की पिछले चुनावों में हार से यह सवाल और गहरा गया है। इस समय मुकेश अग्निहोत्री, आशा कुमारी, हर्षवर्धन और सुक्खु से पहले वरीयता में आनन्द शर्मा का नाम आता है।
इस परिदृश्य में पार्टी के गद्दारों को लेकर वीरभद्र के ब्यान के राजनीतिक मायने बहुत महत्वपूर्ण हो जाते हैं। क्योंकि इस समय पार्टी के बड़े चेहरे यही छः सात नेता हैं और कांग्रेस के प्रति इनकी निष्ठा को लेकर कोई सवाल नहीं उठाया जा सकता है। ऐसे में यह जानना रोचक हो जाता है कि वीरभद्र की नज़र में पार्टी के गद्दार कौन हैं और उनको बाहर करने के लिये वह किस तरह की लड़ाई छेड़ सकते हैं। पिछले दिनों जब कांग्रेस के बडे़ नेताओं द्वारा सोनिया गांधी को पत्र लिखा गया और उसमें आनन्द शर्मा का नाम सामने आया था तब उस पर प्रदेश के भीतर तीव्र प्रतिक्रिया सामने आयी थी। आनन्द शर्मा से सार्वजनिक रूप से क्षमा याचना करने की मांग की गयी थी। संयोगवश यह पत्र लिखने के बाद आनन्द शर्मा केन्द्र में पार्टी की बहुत सारी कमेटीयों से बाहर भी हो गये हैं। इसको यह माना जाने लगा था कि शायद आनन्द शर्मा को प्रदेश का नेतृत्व दिया जा रहा है। प्रदेश कांग्रेस के वर्तमान अध्यक्ष कुलदीप राठौर को बनवाने में सबसे अहम भूमिका आनन्द शर्मा की ही रही है यह सभी जानते हैं। ऐसे में वीरभद्र के ब्यान के बाद पार्टी के भीतर यह चर्चा उठना स्वभाविक है कि प्रदेश राजनीति के इस शेर का अगला शिकार कौन होने जा रहे हैं। इस समय केन्द्र से लेकर राज्यों तक जो राजनीतिक माहौल हर रोज़ बनता जा रहा है उसमें हर जगह कांग्रेस पर ही सबकी निगाहें लगी हुई हैं। विपक्ष के नाम पर कांग्रेस ही भाजपा का पहला निशाना है। ऐसे में जहां कांग्रेस को पूरी एकजुटता के साथ सरकार और भाजपा को मुकाबला करना हैं वहीं पर पार्टी के अन्दर इस तरह की लड़ाई का छिड़ना संगठन और प्रदेश के लिये नुकसानदेह होगा यह तय है।