सरकार के लिये घातक होगा विधायकों का निलंबन और एफआईआर दर्ज करना
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Created on Thursday, 04 March 2021 10:41
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Written by Shail Samachar
शिमला/शैल। प्रदेश विधानसभा के बजट सत्र के पहले दिन राज्यपाल के अभिभाषण पर उभरे विवाद के परिणाम स्वरूप नेता प्रतिपक्ष सहित कांग्रेस के पांच विधायकों को सदन की शेष अवधि के लिये निलंबित करने के साथ ही उनके खिलाफ एफआईआर भी दर्ज कर दी गयी है। इस कारवाई के बाद स्वभाविक है कि कांग्रेस सदन में हर दिन मुद्दा उठायेगी और हर दिन सदन से वाकआऊट करेगी। यह निलम्बन कितने दिन चलता है और सरकार कितने दिन विपक्ष के बिना ही काम चलाती है। यह देखना रोचक होगा और इसका पता आने वाले दिनों में ही चलेगा। विधायकों के खिलाफ दर्ज हुई एफआईआर पर पुलिस कब और क्या जांच करती है और कांग्रेस की मांग पर उपाध्यक्ष के खिलाफ भी एफआईआर दर्ज होती है या नहीं यह देखना भी दिलचस्प होगा। क्योंकि जिस हाथापाई को एफआईआर का आधार बनाया गया है उसके जो विडियो सामने आये हैं उनके अनुसार सत्तापक्ष भी इसके लिये उतना ही जिम्मेदार है जितना विपक्ष है।
राज्यपाल हर वर्ष सत्र के पहले दिन सदन को संबोधित करते हैं। इस संबोधन का भाषण सरकार द्वारा तैयार किया जाता है और इसमें सरकार की वर्ष भर की कारगुजारी दर्ज रहती है। भाषण के बाद इस पर चर्चा होती है और इसके लिये सरकार भाषण देने के लिये राज्यपाल के धन्यवाद का प्रस्ताव लाती है। राज्यपाल यह अभिभाषण पूरा पढ़ें या नहीं इसके लिये कोई तय नियम नही हैं। लेकिन पूर्व में जो प्रथा रही है उसके अनुसार पूरा भाषण पढ़ा जाता रहा है। प्रदेश के इसी सदन को जब कल्याण सिंह ने संबोधित किया था तब वह स्वास्थ्य कारणों से पूरा भाषण नहीं पढ़ पाये थे और इसके लिये उन्होंने सदन से एक प्रकार से अनुमति लेकर पूरा भाषण पढ़ने में असमर्थता जताई थी और शेष दस्तावेज को पढ़ा हुआ समझा जाये। इस बार शायद ऐसा नहीं हुआ और पूरा भाषण पढ़ने की मांग की। जब यह मांग नहीं मानी गयी तब कांग्रेस ने इसे झूठ का पुलिन्दा कहा और आरोप लगाया कि इसमें पैट्रोल और गैस की बढ़ती कीमतों जैसे महत्वपूर्ण मुद्दों का जिक्र तक नहीं है। इस समय बहुत सारे राज्यों में राज्यपालों की भूमिका को लेकर सवाल उठने शुरू हो गये हैं और संयोगवश ऐसा उन राज्यों में हुआ है जहां पर भाजपा सत्ता में नहीं है। महाराष्ट्र में तो राज्यपाल के खिलाफ अदालत में जाने तक की चर्चाएं उठ चुकी हैं। राज्यपाल यदि बिना किसी ठोस कारण के सदन में अपना पूरा भाषण न पढ़े तो क्या उसे सदन को हल्का आंकना करार दिया जाना चाहिये या नहीं। राज्यपाल और सदन के संबंधो और अधिकारों को लेकर सवाल उठने शुरू हुए हैं उससे इन सम्बन्धों पर नये सिरे से विचार करने की आवश्यकता आ खड़ी हुइ है।
कांग्रेस विधायकों के निलंबन और उनके खिलाफ हुई एफआईआर को असहमति की आवाज़ दबाने का प्रयास करार दिया जा सकता है। क्योंकि सदन में हर रोज मामला उठेगा, वाकआऊट होगा और सरकार तीखे सवालों से बच जायेगी कुछ लोगों की नज़र में मुख्यमन्त्री का यह कदम राजनीति का मास्टर स्ट्रोक है। यहां तक चर्चाएं उठ चुकी हैं कि सरकार नेता प्रतिपक्ष का पद भी कांग्रेस से वापिस लेना चाहती है। यदि यह चर्चाएं सही हैं तो इसका सीधा अर्थ है कि सत्तापक्ष नेता प्रतिपक्ष से घबराकर इस तरह का कदम उठा रही है। वैसे ही नेता प्रतिपक्ष का निलंबन और फिर एफआईआर इसी डर के संकेत हैं। इस निलंबन और एफआईआर दर्ज करने से पूरे प्रदेश में कांग्रेस को मुद्दा मिल गया है। आज पूरे देश में भाजपा के खिलाफ सबसे बड़ा आरोप ही यह लग रहा है कि असहमति के स्वरों को दबाने के लिये किसी भी हद तक जा सकती है इसी के साथ भ्रष्टाचार को संरक्षण देने का आरोप भी सरकार पर लग रहा है। अभी कुछ दिन पहले एक पत्र चर्चा में आया है। इस पत्र में एक अधिकारी पर भ्रष्टाचार में लिप्त होने के आरोप लगाये गये हैं इन आरोपों के साथ गंभीर आरोप यह है कि मुख्यमन्त्री कुछ निहित कारणों से इस अधिकारी को संरक्षण दे रहे हैं। यह पत्र प्रधानमन्त्री से लेकर प्रदेश के पूर्व मुख्यमन्त्रीयों और नेता प्रतिपक्ष सहित करीब एक दर्जन लोगों को भेजा गया है। संयोगवश इस पत्र के चर्चा में आने के बाद ही धूमल खेमे में गतिविधियां तेज हो गयी है। धूमल स्वयं बहुत सक्रिय हो गये हैं। उनको लेकर अटकलों का एक नया बाजा़र गर्म हो गया है। इसी बीच पूर्व मुख्यमन्त्री एवम् पूर्व केन्द्रिय मन्त्री वरिष्ठ भाजपा नेता शान्ता कुमार की आत्मकथा बाज़ार में आ गयी है। इसमें शान्ता कुमार ने आरोप लगाया है कि जब केन्द्र में मन्त्री थे तब उन्होंने ग्रामीण विकास विभाग में 300 करोड़ का घपला पकड़ा था। जिसे पूरे दस्तावेजी प्रमाणों के साथ तत्कालीन प्रधानमंत्री वाजपेयी के सामने रखा था। लेकिन इस पर प्रधानमन्त्री से लेकर संघ तक किसी ने उनका साथ नहीं दिया था। बल्कि मन्त्री पद से हटाकर इसकी सज़ा दी गयी थी।
शान्ता कुमार का यह खुलासा ऐसे वक्त पर सामने आया है जब भाजपा दूसरे दलों के भ्रष्ट नेताओं को अपने घर में शरण दे रही है। शान्ता के इस खुलासे से पूरी भाजपा केन्द्र से लेकर प्रदेशों तक कठघरे में आ जाती है। जयराम की सरकार पर भी भ्रष्टाचार को संरक्षण देने के कई गंभीर आरोप हैं। ऐसे वक्त में विपक्ष के खिलाफ निलंबन और एफआईआर दर्ज करने की कारवाई कहीं अपने पैर पर स्वयं कुल्हाड़ी मारना न बन जाये। क्योंकि विपक्ष को सरकार पर हमला करने के लिये एक कारगर और प्रमाणिक हथियार मिल गया है। जिसे चलाने में विपक्ष पीछे नहीं हटेगा।