मण्डी में शिवधाम का काम 18 करोड़ से 36 का कैसे हो गया? क्या यह भ्रष्टाचार नहीं है

Created on Monday, 05 April 2021 12:10
Written by Shail Samachar

शिमला/शैल। मुख्यमन्त्री जयराम ठाकुर के गृह जिला मण्डी में कांगनी धार को पर्यटन विकास और अन्य गतिविधियों के लिये विकसित किया जा रहा है। यह काम पर्यटन निगम के माध्यम से किया जा रहा है। निगम ने इसके लिये एक कन्सलटैन्ट की सेवाएं ले रखीं हैं जिसने इसका ग्राफिक्ल विडियो भी तैयार किया है। जिलाधीश मण्डी ने यह विडियो रिलीज़ किया है। मण्डी को छोटी काशी भी कहा जाता है क्योंकि यहां पर भगवान शिव के भूतनाथ और पंचवक्र महादेव जैसे मन्दिर स्थित हैं। संभवतः शिव नगरी के कारण ही कांगनी धार प्रौजैक्ट को शिव धाम का नाम दिया गया है। यह कार्य दो चरणों में पूरा होगा फेज -1 को अन्तिम रूप दे दिया गया है। इसकी अनुमानित लागत 40 करोड़ आंकी गयी है और यह चालीस करोड़ इसके लिये जारी भी कर दिये गये हैं।
इस कार्य के लिये निविदायें 20-11-2020 से 25-11- 2020 के बीच आमन्त्रित की गयी थी। इन निविदाओं में इस कार्य की लागत 18 करोड़ रखी गयी थी। इसमें चार कंपनीयों ने टैण्डर में भाग लिया था। 25-2-2021 को यह कार्य मुंबई की एक कंपनी को 36 करोड़ में आंबटित कर दिया गया है। यह कार्य 18 करोड़ से 36 करोड़ का कैसे हो गया इसका कोई खुलासा नहीं किया गया है। सरकार की ओर से इसका कोई स्पष्टीकरण जारी नहीं हुआ है जबकि इन निगम चुनावों में धर्मशाला में पूर्व मन्त्री सुधीर शर्मा ने इस पर सवाल भी उठाया है।
इसमें यह सवाल उठता है कि शिवधाम के नाम से क्या यह कार्य अपरोक्ष में धार्मिक भावनाओं का प्रतीक नहीं बन जायेगा। अभी तक संविधान में सरकार धर्म निरपेक्ष ही है। ऐसे में यदि पुराने शिव मन्दिरों का ही जीर्णोद्धार कर दिया जाता तो कोई प्रश्न उठने का स्कोप ही नहीं रह जाता। लेकिन जब सरकार अपने स्तर पर शिव धाम स्थापित करने जा रही है तो निश्चित रूप से धर्म निरपेक्षता पर सवाल उठेगा ही। पहले फेज के काम को 18 माह में सितम्बर 2022 तक पूरा करने का लक्ष्य रखा गया है। लेकिन टैण्डर आमन्त्रण और उसको अन्तिम रूप देने से पहले ही इसकी लागत दो गुणा कैसे बढ़ गयी इसको लेकर कई तरह की चर्चाओं का बाज़ार गर्म है। पर्यटन विभाग मुख्यमन्त्री के अपने पास है लेकिन यह लागत इस बढ़ा दिये जाने की जानकारी मुख्यमन्त्री को है या नहीं इस पर विभाग कुछ भी कहने को तैयार नहीं है। वैसे सरकार में न्यूनतम निविदा को नज़रअन्दाज करके अधिकतम को काम देने का चलन शुरू हो चुका है। बिलासपुर के बन्दला में बन रहे हाइड्रोकालिज में भी न्यूनतम निविदा 92 करोड़ थी लेकिन बिना कोई कारण बताये यह काम भी 100 करोड़ में दे दिया गया है। इस पर उठे सवालों का जवाब भी सरकार ने नहीं दिया है।