आउटसोर्स के नाम पर कब तक जारी रहेगा उत्पीड़न

Created on Wednesday, 11 August 2021 08:29
Written by Shail Samachar
क्या दो विधानसभा क्षेत्रों से ही 5000 को आउटसोर्स पर रखा गया
शिमला/शैल। क्या सरकार बेरोज़गारों के साथ धोखा कर रही है? क्या आऊटसोर्स पिछले दरवाजे से भर्ती करने का माध्यम है जिसमें न तो मैरिट और न ही रोस्टर की अनुपालना की कोई बंदिश है। क्या जयराम सरकार ने आऊटसोर्स के माध्यम से आठ हजार नियुक्तियां कर ली हैं जिनमें से अकेले मुख्यमन्त्री और जलशक्ति मंत्री महेन्द्र सिंह के क्षेत्रों से ही पांच हजार भर्तियां कर ली गयी हैं। यह आरोप सदन में कांग्रेस विधायकों इन्द्र दत्त लखन पाल और नेता प्रतिपक्ष मुकेश अग्निहोत्री ने लगाते हुए प्रश्न काल स्थगित करके इस मामले पर चर्चा की मांग की। सरकार ने इस मांग को स्वीकार नही किया और कांग्रेस नारे लगाते हुए सदन से वाकआऊट कर गयी। बेरोज़गारों को लेकर सत्र के पहले दिन भी मुकेश अग्निहोत्री का प्रश्न लगा था। इसके बाद नियम 130 के तहत भी इस विषय पर नोटिस दिया गया था जिस पर आने वाले दिनों में चर्चा हो सकती है। इस पर मुकेश अग्निहोत्री ने यह कहा कि पहले दिन उनका प्रश्न प्रदेश में कितने बेरोजगार हैं इसको लेकर था और अब मुद्दा पिछले दरवाजे़ से भर्ती का है।
बेरोज़गारी सबसे बड़ी समस्या है इसमें कोई दो राय नहीं है। लेकिन इस बेरोज़बारी से निपटने के लिये सरकारों के पास कोई ठोस नीति नहीं है। रोज़गार प्रदान करने में सरकार सबसे बड़ा अदारा है। लेकिन जिस अनुपात में सरकारें प्राईवेट सैक्टर को प्रोत्साहन दे रही हैं और स्वयं कर्ज में डूबती जा रही हैं उसी अनुपात में सरकारी क्षेत्र में रोज़गार खत्म होता जा रहा है। 1990 के दशक में यह आरोप लगा था कि सरकारी कर्मचारी ईमानदारी से काम नही करता है और भ्रष्ट है। इस आरोप से सरकारी कर्मचारी की छवि जनता में बिगड़ती गयी और सरकारों को अदारे नीजि क्षेत्र को सौंपने का बहाना मिल गया। जैसे-जैसे सरकारी अदारे नीजि क्षेत्र के हवाले होते गये उसी तर्ज पर सरकार में रोज़गार खत्म होता चला गया। आज हालात यहां तक पहुंच गयी है कि केन्द्र में विनिवेश मन्त्रालय तक का गठन हो गया और रोज़गार का नया अदारा आऊटसोर्स बन गया है। मजे की बात तो यह है कि आऊटसोर्स के नाम पर रोज़गार उपलब्ध करवाने वाली कंपनीयों का कोई पंजीकरण आदि राज्य सरकारों के पास नही है न ही यह कंपनीयां सरकार के प्रति किसी तरह की जवाबदेह हैं और न ही इनके माध्यम से रोज़गार पाने वाले कर्मचारियों की सुरक्षा के प्रति इनकी कोई जवाबदेही है।
इस समय प्रदेश में हजारों कर्मचारी आऊटसोर्स के माध्यम से सरकार के विभिन्न विभागों में अपनी सेवाएं दे रहे हैं। हर कर्मचारी पर संवद्ध कंपनी को एक नियमित कमीशन मिल रहा है। लेकिन यह कमीशन तय करने के मानक क्या हैं यह निश्चित नहीं है। इन कंपनीयों का पंजीकरण भारत सरकार के अदारे नाइलिट के माध्यम से है। ऐसे में सवाल यह उठता है कि जब यह लोग सरकारी विभागों में अपनी सेवाएं दे हैं और उसके लिये सरकार भुगतान कर रही है तो फिर सरकार ही इन्हें सीधे अपने तौर पर ही भर्ती क्यों नहीं कर पा रही है? इनके नाम पर कंपनी को कमीशन क्यों दिया जा रहा है। क्या सदन में इस पर चर्चा नही होनी चाहिये? सदन से बड़ा मंच इस चर्चा और इसके लिये ठोस नीति बनाने का क्या हो सकता है? जब सदन इस पर चर्चा नहीं करेगा तो क्या आने वाले दिनों में यह आरोप नही लगेगा कि इनके शोषण के लिये हमारे माननीय ही जिम्मेदार हैं। पिछली सरकार के दौरान जब यह मुद्दा उठा था और यह सामने आया था कि 35000 लोग आऊटसोर्स के माध्यम से लगे हैं। तब यह निर्देश जारी किये गये थे कि भविष्य में कोई भी विभाग वित्त विभाग की पूर्व अनुमति के बिना आऊटसोर्स पर भर्ती नहीं करेगा। ऐसे में आज यह सवाल पूछा जाना चाहिये था कि कितने विभागों ने आऊटसोर्स के लिये वित्त विभाग से पूर्व अनुमति ली है और यह विभाग अपने तौर पर नियमित नियुक्ति करने में समर्थ क्यों नहीं हैं। 2020 के बजट सत्र में एक सवाल के जवाब में यह आ चुका है कि 31-7-2019 तक 12165 लोगों को आऊटसोर्स पर रखा गया और इसके लिये 153,19,80030 रूपये खर्च हुए जिनमें से 130,10,21806 कर्मचारीयों पर और 23,09,58,224 रूपये इन्हे रखवाने वाली 94 कंपनीयों को दिये गये। हिमाचल विश्वविद्यालय में आऊटसोर्स को लेकर गंभीर आरोप लग चुके हैं जब एक कारपोरेट कंपनी को दिये ठके को रद्द करके उत्तम हिमाचल कंपनी को सिंगल टैण्डर पर काम दे दिया गया। इस तरह के दर्जनों किस्से हैं। लेकिन इस पर कोई चर्चा को तैयार नही है।