क्यों छिपाई जा रही है प्रचार प्रसार पर हुए खर्च की जानकारी-उठने लगे सवाल

Created on Tuesday, 17 August 2021 09:14
Written by Shail Samachar

शिमला/शैल। विधानसभा के इस सत्र में कांग्रेस विधायकों आशीष बुटेल और राजेन्द्र राणा ने सरकार से दो अलग-अलग प्रश्नों में यह पूछा था कि पिछले दो वर्षों में सरकार ने प्रचार-प्रसार पर कितना खर्च किया है। आशीष बुटेल का प्रश्न था अतारांकित  during the last 2 years upto 31-01-2020 how much amount has been spend on publicity of various schemes and advertising of various events of the Government under various Heads and departments, event wise, scheme wise, media wise, (outdoor,  print,  electronic etc.) Media housewise and  department wise detail be given?  और राजेन्द्र राणा ने पूछा था कि गत 2 वर्षों में दिनांक 31.07.2020 तक सरकार ने किन-किन दैनिक, साप्ताहिक, पाक्षिक और मासिक समाचार पत्रों तथा वेब और इलैक्ट्रॉनिक मीडिया में कितनी- कितनी धनराशि के विज्ञापन और निविदाएं जारी कीं। ब्यौरा वर्षवार दें? इन दोनो प्रश्नों के उत्तर में कहा गया है कि अभी भी सूचना एकत्रित की जा रही है। स्मरणीय है कि पिछले कुछ सत्रों से यह सवाल लगातार पूछा जा रहा है और हर बार सरकार का जवाब यही रहा है कि सूचना एकत्रित की जा रही है। करीब दो वर्षों से यही जवाब आने से स्वभाविक रूप से यही संदेश जायेगा कि या तो इसमें सरकार कुछ जनता की जानकारी से छुपाना चाहती है या फिर सूचना एवम् जन संपर्क विभाग में योग्य लोगों की कमी है जो यह सूचना तैयार ही नहीं कर पा रहे हैं इसमें कौन सी स्थिति सही है यह तो आने वाले समय में ही पता चलेगा। सूचना और जनसंपर्क विभाग मुख्यमन्त्री के अपने पास है। सरकार के आने पर हर निदेशक और सचिव पत्रकारों से परिचय करने और उनकी समस्याएं सुनने, समझने के लिये बैठकें करता है। इस सरकार में भी यह रस्म अदा की गयी। प्रदेश के लघु समाचार पत्रों की समस्याओं पर मुख्यमन्त्री तक से चर्चाएं हो चुकी हैं। लेकिन इन चर्चाओं पर कोई अमल नहीं हुआ है। बल्कि जिन लोगां ने बेबाकी से समस्याएं सामने रखीं उन्ही के खिलाफ कुछ-न-कुछ गढ़ने का प्रयास किया गया। इस प्रयास में सबसे पहला कदम तो ऐसे समाचार पत्रों के विज्ञापन बन्द करके इनका प्रकाशन ही बन्द करवाने का प्रयास किया गया है। इससे यह सामने आता है कि सरकार निष्पक्ष और पारदर्शी तरीके से काम नहीं कर रही है। जब मीडिया के मामले में सरकार का व्यवहार ऐसा हो सकता है तो आम आदमी के साथ क्या हो रहा होगा इसका अन्दाजा लगाया जा सकता है।
सरकार अपनी नीतियों/ योजनाओं के प्रचार प्रसार पर हर वर्ष करोडो रूपये खर्च कर रही है। सरकार की इन नीतियों /योजनाओं का संबंध प्रदेश की जनता से होता है। इस नाते इनकी जानकारी प्रदेश की जनता को होनी चाहिये। इनका प्रचार प्रसार प्रदेश के भीतर होना चाहिये। लेकिन जब सरकार इस संबंध में जानकारी को सार्वजनिक करने से टालती जा रही है तो क्या उससे यह माना जाये कि राज्य की योजनाओं का प्रचार प्रसार राज्य से बाहर ज्यादा किया जा रहा है। इसी के साथ जब प्रदेश के कुछ सामचार पत्रों को विज्ञापन जारी नहीं किये जा रहे हैं तब क्या यह सवाल नहीं उठेगा कि क्या विज्ञापनों पर खर्च होने वाला पैसा सरकारी नहीं है? क्या विज्ञापित की जाने वाली योजनाएं सरकारी नहीं हैं? जब यह सबकुछ सरकारी है तो फिर इनका आवंटन पक्षपातपूर्ण कैसे हो सकता है? क्या सरकार उन प्रकाशनों को बन्द करवाना चाहती है जो सरकार से कठिन सवाल पूछने की हिमाकत करते हैं?
जब सरकार का आचरण पक्षपातपूर्ण हो जाये और उसकी जानकारी सदन से भी लगातार टाली जाये तो उसको क्या समझा और माना जाये इस पर पाठक अपनी राय बनाने के लिये स्वतन्त्र हैं।