बाल यौन शोषण मामले में 636 दिन की देरी से अपील दायर करने पर सुप्रीम कोर्ट ने लगाया 25000 का जुर्माना

Created on Wednesday, 25 August 2021 08:43
Written by Shail Samachar

जुर्माने की रकम संवद्ध अधिकारियों से वसूलने के निर्देश

शिमला/शैल। जयराम सरकार का प्रशासन कितना संवेदनशील और जिम्मेदार है इसका अन्दाजा इसी से लगाया जा सकता है कि बाल यौन शोषण के एक मामले में 636 दिन बाद सर्वोच्च न्यायालय में अपील दायर की गयी है। सर्वोच्च न्यायालय ने सरकार की इस तत्परता के लिये उस पर 25000 का जुर्माना लगाते हुए निर्देश दिये हैं कि जुर्माने की यह राशि इस देरी के लिये जिम्मेदार अधिकारियों से वसूली जाये। सर्वोच्च न्यायालय में जब राज्य सरकार ने इस देरी के लिये कोरोना के प्रकोप को कारण बताया तब अदालत ने इन शब्दों में अपनी नाराज़गी व्यक्त की "To say the least, we are shocked at the  conduct of the petitioner-State and the manner of conduct the litigation in such a sensitive matter. There is not even a semblance of  explanation for delay" 

इस मामले में 5-12-2018 को अदालत ने अपराधी के पक्ष में फैसला देते हुए उसे छोड़ दिया था। इसके बाद प्र्रशासन ने इस मामले में सर्वोच्च न्यायालय में अपील दायर करने का फैसला लिया। यह फैसला लेने में योग्य संबद्ध प्रशासन को 636 दिन लग गये। इसमें प्रशासन की गंभीरता का इसी से अन्दाजा लगाया जा सकता है कि शीर्ष अदालत में इस देरी के लिये प्रदेश मे कोरोना होने का तर्क दिया गया। तर्क देते हुए यह भी भूल गये कि यह फैसला दिसम्बर 2018 में आ गया था और कारोना के कारण लॉकडाऊन 24 मार्च 2020 को लगा था।
ऐसा ही आचरण वन विभाग के मामले में भी सामने आया है। शिमला के कोटी रेंज में 400 से अधिक पेडों के अवैध कटान के मामले में 2018 में उच्च न्यायालय ने संबद्ध लोगों के खिलाफ मामले दर्ज करके कारवाई करने के निर्देश दिये थे जिन पर अब तक कारवाई नहीं हुई और अब उच्च न्यायालय ने इसका कड़ा संज्ञान लेते हुए जांच अधिकारी को ही निलम्बित करने के आदेश किये हैं। ऊना में भी एक फार्मेसी की दुकान के आवंटन के मामले में हुए घपले में उच्च न्यायालय ने सी. एम.ओ. और एम एस की वित्तिय शक्तियां अगले आदेशों तक छीन ली है। इन मामलों से यह सवाल उठने लगा है कि या तो प्रशासन बेलगाम हो गया है या उस पर अत्यधिक राजनीतिक दबाव है।