सरकार और राजनैतिक दलों से ज्यादा जनता की समझ की परीक्षा होंगे उपचुनाव

Created on Tuesday, 05 October 2021 12:04
Written by Shail Samachar

उपचुनावों से उठते सवाल
उपचुनावों की घोषणा के बाद भी बढ़ानी पडी खाद्य तेलों की कीमतें
जब एक मंत्री की बेटी को ही धरने पर बैठना पड़ जाये तो आम आदमी की हालत क्या होगी

शिमला/शैल। प्रदेश के चुनावों की तारीखों के ऐलान के बाद राजनैतिक दलों द्वारा उम्मीदवारों के चयन की प्रक्रिया शुरू होने के साथ ही दोनां प्रमुख दलों भाजपा और कांग्रेस ने यह अंतिम फैसला अपने-अपने हाईकमान पर छोड़ दिया है। मुकाबला दो ही दलों भाजपा और कांग्रेस के बीच होना है। शेष दल इन उप चुनावों में अपने उम्मीदवार उतारेगें ऐसी संभावना फतेहपुर को छोड़कर और कहीं नहीं है। फतेहपुर में अपना हिमाचल अपनी पार्टी चुनाव लडेंगें ऐसा माना जा रहा है क्योंकि इस नवगठित पार्टी की सर्वेसर्वा पूर्व सांसद पूर्व मंत्री डा. राजन सुशांत का यह गृह क्षेत्र है इसलिए यह उपचुनाव लड़ना पार्टी बनाने की ईमानदारी को प्रमाणित करने का अवसर बन जाता है। यहां यह तय है कि इस उपचुनाव में डा. सुशांत की मौजूदगी इसके परिणाम को प्रभावित भी करेगी।
दोनों पार्टियों के उम्मीदवार दिल्ली से ही तय होने हैं इसलिए इन पर ज्यादा चर्चा करने की अभी आवश्यकता नहीं है। यह सही है कि उम्मीदवार के कारण भी करीब 5 प्रतिशत मतदाता प्रभावित होते हैं लेकिन सतारूढ़ भाजपा में उम्मीदवार से ज्यादा केंद्र और राज्य सरकार की अपनी कारगुजारियां अधिक प्रभावी रहेंगी। बल्कि यह कहना ज्यादा सही होगा कि यह उपचुनाव राजनैतिक दलों और सरकार से ज्यादा मतदाताओं की समझ की परीक्षा होगें। वैसे भाजपा में जब मंडी लोकसभा के लिए अभिनेत्री कंगना रणौत के नाम की चर्चा बाहिर आयी और सोशल मीडिया में आश्य की पोस्टें सामने आयी तब इन पोस्टों पर जो प्रतिक्रियाएं उभरी उनमें 80 प्रतिशत ने इस नाम को सिरे से ही खारिज करते हुए यहां तक कह दिया कि मंडी की जनता इतनी मूर्ख नहीं हो सकती कि वह कंगना को वोट देगी। यह नाम क्यों और कैसे एकदम चर्चा में आया इसका खुलासा तो नहीं हो सका है। लेकिन मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर ने रणौत के नाम को नकारते हुए स्पष्ट कर दिया है कि मंडी से किसी कार्यकर्ता को ही टिकट दिया जायेगा। वैसे चर्चा यह भी है कि भाजपा हाईकमान ने अपने तौर पर भी प्रदेश का सर्वे करवाया है। इसलिए यदि प्रदेश की ओर से भेजे गये पैनल के नाम सर्वे से मेल नहीं खाये तो प्रदेश की सिफारिसों को नजरअंदाज किये जाने की पूरी संभावनाएं है।
ऐसे में बड़ा सवाल यह होगा कि यह उपचुनाव किन मुद्दों पर लड़ा जायेगा। सामान्य तौर पर हर सरकार चुनाव में अपने विकास कार्यों को आधार बनाती है। विकास के गणित पर यदि जयराम सरकार की बात की जाये तो इस सरकार ने 2018 में सता संभाली थी। 2018 में ही जंजैहेली प्रकरण का सामना करना पड़ा। इसी प्रकरण में जयराम और पूर्व मुंख्यमंत्री प्रेम कुमार धूमल के रिश्ते इस मोड तक आ पहुंचे कि धूमल को यह कहना पड़ा कि सरकार चाहे तो उनकी सी.आई.डी जांच करवा लें। 2018 के अंत तक आते आते पत्र बम्बों की संस्कृति से पार्टी और सरकार को जूझना पड़ा। यह पत्र बम्ब एक तरह का स्थायी फीचर बन गया है। इन पत्र बम्बों के माध्यम से उठे मुद्दे परोक्ष /अपरोक्ष में अदालत तक पहुंच चुके हैं। इसी सबका असर है कि केन्द्र द्वारा घोषित और प्रचारित 69 राष्ट्रीय राजमार्ग अभी भी सैद्धान्तिकता से आगे कोई शक्ल नहीं ले पाये हैं। मुफ्त रसोई गैस का नाम लेने वाले 67 प्रतिशत लाभार्थी आज रिफील नहीं ले पा रहे हैं। यह सरकार की अपनी रिपोर्ट है। स्कूलों से लेकर कॉलेजां तक शिक्षकों के कितने पद खाली हैं यह उच्च न्यायालय में आयी याचिकाओं से सामने आ चुका है। कई स्कूलों में तो अभिभावकों ने स्ंवय ताले लगाये हैं। अस्पतालों में खाली स्थानों पर भी उच्च न्यायालय सरकार को कई बार लताड़ लगा चुका है। जब इन्हीं दो प्रमुख विभागों की स्थिति इस तरह की रही है तो अन्य विभागों का अंदाजा लगाया जा सकता है। सरकार की इस भीतरी स्थिति का ही परिणाम है कि अभी कुछ दिन पहले ही सरकार के कई विभागों में विकास कार्यों के लिए जारी किए गए हजारों करोड़ के टेण्डर रद्द करने पडें हैं। अब यह कार्य आचार संहिता के नाम पर लंबे समय के लिए टल गए हैं। यह विकास कार्य पैसे के अभाव के कारण रूके हैं या अन्य कारण से यह तो आने वाले समय में ही पता चलेगा। इसलिए विकास के नाम पर वोट मांग पाना बहुत आसान नहीं होगा।
अभी जब उपचुनावों की घोषणा हो गई थी उसके बाद भी जिस सरकार को खाद्य तेलों की कीमत बढ़ानी पड़ जाये उसकी अंदर की हालत का अंदाजा लगाया जा सकता है।  मुख्यमंत्री ने अपने गृह क्षेत्र में एक जनसभा को संबोधित करते हुए मंहगाई को जायज ठहराने का प्रयास किया है।  मुख्यमंत्री ने यहां तक कहा है कि कांग्रेस के समय में भी मंहगाई पर कंट्रोल नहीं किया जा सका था। मुख्यमंत्री को यह तर्क इसलिए देना पड़ा है क्योंकि वह जनता को यह कैसे बता सकते हैं कि केंद्र की नीतियों के कारण आज बैड बैंक बनाने की नौबत आ खडी हुई है और जब बैड बैंक बनाना पड जाये तो उसके बाद मंहगाई और बेरोजगारी तो हर रोज बढे़गी ही। यही कारण है कि केंद्र सरकार को भी उपचुनाव की घोषणा के बाद भी पैट्रोल और डीजल की कीमतें बढ़ानी पड़ी हैं। जनता मंहगाई, बेरोजगारी और भ्रष्टाचार के मानकां पर सरकार का आंकलन करके उसे अपना समर्थन देती है। मंहगाई और बेरोजगारी के प्रमाण जनता के सामने हैं। भ्रष्टाचार के खिलाफ सरकार कितनी प्रतिब( है इसका प्रमाण इसी से मिल जाता है कि कांग्रेस सरकार के खिलाफ सौंपी अपनी ही चार्जशीट पर अभी चार वर्षों में कोई कार्यवाही नहीं कर पायी है। अब चुनावी वर्ष में भ्रष्टाचार के खिलाफ कार्यवाही का अर्थ केवल राजनीति और रस्म अदायगी ही रह जाता है। यह अब तक की सरकारें प्रमाणित कर चुकी हैं। जैसे भाजपा भ्रष्टाचार के खिलाफ कार्यवाही के बजाये उसे संरक्षण देती है यह सर्टिफिकेट तो शांता कुमार ही अपनी आत्म कथा में दे चुके हैं।
प्रशासन पर सरकार की पकड़ कितनी मजबूत है और प्रशासन जनता की अपेक्षाओं पर कितना खरा उतर रहा है कि इसका प्रत्यक्ष प्रमाण जल शक्ति मंत्री महेन्द्र सिंह की बेटी के ही धरने पर बैठने से सामने आ जाता है। अंदाजा लगाया जा सकता है कि जिस ठेकेदार की 11 करोड़ से अधिक पेंमेंट विभाग ना कर रहा हो उसके परिवार के पास धरने पर बैठने के अतिरिक्त और क्या विकल्प रह जाता है। मुख्यमंत्री के विभाग से यह धरना ताल्लुक रखता है और जब मुख्यमंत्री यह कहें कि वह पता करेंगें कि मंत्री की बेटी धरने पर क्यों बैठी है तो इससे अधिक जनता को सरकार के बारे में राय बनाने के लिए शायद नहीं चाहिये।