क्या अब ब्रिगेडियर फोर लेन प्रभावितों का विरोध करेंगे?
मोदी सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में वन रैंक वन पैन्शन पर लिया यू टर्न
वन रैंक वन पैन्शन की मोदी सरकार द्वारा परिभाषा ही बदल देने पर पूर्व सैनिक अभी तक आन्दोलन पर है
सर्वोच्च न्यायालय में दिये शपथ पत्र में सरकार ने अपने फैसले पर पुनः विचार से किया इन्कार
नेता बने पूर्व सैनिक अधिकारियों पर पूर्व सैनिकों या सरकार का पक्ष लेने की चुनौती
शिमला/शैल। भाजपा ने मण्डी लोकसभा क्षेत्र के संसदीय उपचुनाव के लिये कारगिल युद्ध के हीरो रहे ब्रिगेडियर खुशाल सिंह ठाकुर को अपना प्रत्याशी बनाया है। मण्डी क्षेत्र में लम्बे समय से फोर लेन प्रभावितों का मुद्दा चला आ रहा है।ब्रिगेडियर की छवी के आधार पर इन प्रभावितों ने अपने मुद्दे की कमान इन्हें सौप दी थी।ब्रिगेडियर साहब ने भी शिमला के प्रैस कल्ब में आयोजित एक पत्रकार वार्ता में अपनी टीम के साथ लम्बी लड़ाई का ऐलान कर दिया था। पिछले दिनों जब केन्द्रीय भूतल परिवहन मन्त्री नितिन गडकरी कुल्लु-मनाली की यात्रा पर आये थे और फोरलेन प्रभावितों ने उनसे मिलने का प्रयास किया था तब उन्हे मिलने से रोकने के प्रयासों में स्थिति मुख्यमन्त्री के सुरक्षा कर्मीयों और एस पी कुल्लु के बीच थप्पड़ काण्ड तक घट गया था। आज ब्रिगेडियर खुशाल फोरलेन के मुद्दे को बीच में ही छोड़कर भाजपा की ओर से उपचुनाव में उम्मीदवार हो गये हैं और न तो प्रभावितों को लेकर कुछ बोल पा रहे हैं न ही सरकार से कोई आशवासन ले पा रहे हैं।
इन फोरलेन प्रभावितों से भी ज्यादा प्रभावी ‘‘ वन रैंक वन पैन्शन’’ का मुद्दा जो राष्ट्रीय बन चुका है वह भी ब्रिगेडियर से यह सवाल पूछ रहा है कि इस मुद्दे पर वह पूर्व सैनिकों के साथ है या मोदी सरकार के साथ। क्योंकि पूर्व सैनिक इस मुद्दे को लेकर आज भी आन्दोलन रत हैं। दिल्ली के जन्तर- मन्तर पर इन पूर्व सैनिकों का क्रमिक धरना-प्रदर्शन जारी है। स्मरणीय है कि भूतपूर्व सैनिकों की वन रैंक वन पैन्शन मुद्दे पर डा. मनमोहन सिंह की सरकार 2011 में एक कोशियारी कमेटी का गठन कर दिया था। इस कमेटी ने दिसम्बर 2011 में ही अपनी सिफारशें सरकार को सांपी पूर्व सैनिक उनसे सहमत थे। लेकिन इसी दौरान भाजपा ने भी पूर्व सैनिकों की एक रैली का आयोजन 15 सितम्बर 2013 को रिवाड़ी में कर दिया। इस रैली में घोषणा की गयी यदि केन्द्र में भाजपा की सरकार बनती है तो वह इस पर अमल करेगी 17 फरवरी 2014 को वित्त मन्त्री ने बजट भाषण में यह आश्वासन दिया और 26 फरवरी को रक्षा मन्त्रालय ने भी इसका अनुमोदन कर दिया। लेकिन इसके बाद जब नयी सरकार आ गयी तब 9 जून 2014 को राष्ट्रपति के अभिभाषण में भी इसका अनुमोदन कर दिया गया। परन्तु इसके बाद 7 नवम्बर 2015 को रक्षा मन्त्रालय ने ‘‘ एक रैंक एक पैन्शन’’ का अर्थ ही बदल दिया यह कोशियारी कमेटी की सिफारशों के एकदम विपरीत था। पूर्व सैनिकों ने इसे मानने से इन्कार कर दिया। इस पर सरकार ने जस्टिस रैड्डी की अध्यक्षता में एक सदस्य कमेटी गठित कर दी। इस कमेटी ने 26 अक्तूबर 2016 को अपनी रिपोर्ट सौंप दी जिसे पूर्व सैनिकों को उपलब्ध नही करवाया गया। इस पर एक और कमेटी बनाई गयी और उसका परिणाम भी यही रहा।
सरकार ने राष्ट्रपति के अभिभाषण में 9 जून 2014 को दिये आश्वासन पर से भी यू टर्न ले लिया है। पूर्व सैनिक इस मुद्दे पर शीर्ष अदालत में जा चुके हैं। सरकार से अपने फैसले पर पुनः विचार करने का आग्रह किया गया है। लेकिन सरकार ने सर्वोच्च न्यायालय में दायर किये अपने जबाव में इस फैसले को बदलने से इन्कार कर दिया है। पूर्व सैनिकों में सरकार के जबाव से भारी रोष फैल गया है। हिमाचल में पूर्व सैनिकों का बड़ा प्रभाव है। स्मरणीय है कि जब मोदी सरकार ने पूर्व सैनिकों की पैन्शन में कुछ बदलाव करने की योजना बनाई थी तब उसके खिलाफ भी कांगड़ा के ही पूर्व सैनिक ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की थी और पैन्शन बदलाव के मुद्दे पर स्टे हासिल किया था। इस परिदृश्य में जब भाजपा एक पूर्व ब्रिगेडियर को उपचुनावों में प्रत्याशी बनायेगी तो सबसे पहले यह पूर्व सैनिक ही उनसे इस मुद्दे पर सवाल पूछेंगे। जब केन्द्र सरकार ‘‘ एक रैंक एक पैन्शन’’ पर सुप्रीम कोर्ट में यू टर्न ले चुकी है तो क्या ब्रिगेडियर पूर्व सैनिकों के पक्ष में सरकार के खिलाफ खड़े होने का साहस दिखायेंगे? क्या ऐसे में ब्रिगेडियर की उम्मीदवारी पूर्व सैनिकों के लिये अपने ही मुद्दे पर अपने ही पक्ष-विपक्ष में फैसला लेने का संकट नही खड़ा कर देगा?