यदि प्रदेश नेतृत्व बरागटा के साथ था तो क्या यह विद्रोह नड्डा और मोदी के खिलाफ है।
क्या सहानुभूति के कवर में सेब का सवाल गौण हो जायेगा।
शिमला/शैल। इस उपचुनाव में भाजपा ने फतेहपुर और जुब्बल कोटखाई में इन लोगों को उम्मीदवार बनाया है जो 2017 के चुनावों में पार्टी के विरोधी थे। इन्हें इस उपचुनाव में अपना प्रत्याशी बनाकर भाजपा ने यह प्रमाणित कर दिया है कि पार्टी में वरियता का क्या स्थान और सम्मान है। यही नहीं जुब्बल-कोटखाई में स्व. श्री नरेन्द्र बरागटा के बेटे और पार्टी के आईटी सैल के प्रदेश इन्चार्ज चेतन बरागटा को परिवारवाद के नाम पर टिकट नहीं दिया गया। इससे यह सवाल उठना स्वभाविक है कि संगठन में तो परिवार के कई सदस्य एक साथ कई पदों पर सेवाएं दे सकते हैं, जिम्मेदारियां निभा सकते हैं लेकिन संसद या विधानसभा के सदस्य नहीं हो सकते। वैसे स्व. श्री नरेन्द्र बरागटा के निधन के बाद उनके बेटे को टिकट दिया जाना यदि परिवारवाद की परिभाषा में आ जाता है तो क्या कल को यही गणित धूमल, महेन्द्र सिंह और विरेन्द्र कंवर के परिवारों पर भी लागू होगा? यह सवाल भी कुछ हल्कों में उठने लग पड़ा है। क्योंकि इनके बच्चों ने भी पंचायती राज संस्थाओं के माध्यम से राजनीति में प्रवेश कर लिया है। स्वभाविक है कि इनकी अगली मंजिल देर-सवेर विधनसभा और संसद रहेगी ही। क्योंकि जब चेतन बरागटा के टिकट पर तो यह कहा गया कि प्रदेश नेतृत्व तो उनके हक में था परन्तु प्रधानमन्त्री परिवारवाद का आरोप नहीं लगने देना चाहते थे। अब यह परिभाषा इसी उपचुनाव तक रहेगी या आगे भी इस हथियार से कई गले काटे जायेंगे यह देखना दिलचस्प होगा।
चेतन बरागटा ने टिकट न मिलने से नाराज़ होकर आज़ाद उम्मीदवार के तौर पर चुनाव में ताल ठोक दी है। मण्डल के बहुत सारे पदाधिकारी भी उनके समर्थन में आ गये हैं। पार्टी ने बरागटा को संगठन से निष्कासित भी कर दिया है। परन्तु उनके साथ विद्रोही बने अन्य कार्यकत्ताओं/पदाधिकारियों के खिलाफ अभी कोई बड़ी कारवाई नहीं की गई है। वैसे यदि इस चुनाव में नीलम सरैक को टिकट मिल सकता है तो अगले चुनाव यही टिकट बरागटा या किसी अन्य को मिल जाये तो इसमें कोई हैरानी भी नहीं होनी चाहिए क्योंकि इस बार के टिकट आवंटन से यही सन्देश संगठन में गया है। वैसे चेतन बरागटा ने जब से यह कहा है कि मुख्यमन्त्रा जय राम ठाकुर से उन्हें कोई शिकायत नहीं है और यदि वह जीत जाते हैं तो जीतने के बाद वह भाजपा के ही साथ रहेंगे तो इससे एक सवाल यह भी उठने लगा है कि क्या वह किसी विशेष रणनीति के तहत चुनाव लड़ रहे हैं। क्योंकि सेब उत्पादक क्षेत्रों में कृषि कानूनों को लेकर बागवानों में भारी रोष है। अदाणी के एक झटके ने पाँच हजार करोड़ की आर्थिकी को हिलाकर रख दिया है। इससे सेब उत्पादक क्षेत्रों में भाजपा को बड़ा झटका लगा है। बल्कि इस झटके ने भाजपा के हाथों मिले पुराने गोलीकाण्ड के जख्मों को फिर से हरा कर दिया है।
बागवान सरकार के कृषि कानूनों से कितने रोष में है इसका अन्दाजा इसी से लगाया जा सकता है कि किसान आन्दोलन के नेता इस उपचुनाव में भाजपा के खिलाफ चुनाव प्रचार करने जा रहे हैं। ऐसे में चेतन बरागटा पिता की मौत से उपजी सहानुभूति में कृषि कानूनों को लेकर सरकार पर उठते सवालों को उठने का मौका ही नहीं आने देने का माहौल अप्रत्यक्षतः खड़ा कर रहे हैं ऐसी चर्चा भी कुछ क्षेत्रों में चल निकली है। क्योकि चेतन बरागटा सहानुभूति के कवर में यदि सरकार पर उठते सवालों का रूख मोड़ने में सफल हो जाते हैं तो इसका सीधा लाभ भाजपा और जयराम सरकार को मिलेगा। इस परिपेक्ष में यदि आने वाले दिनों में बरागटा कृषि कानूनों को लेकर अपना स्टैण्ड स्पष्ट नहीं करते हैं तो उन्हें इस चुनाव में भी जनता भाजपा की ‘ही’ टीम माने लग जायेगी यह तय है।