सामान्य वर्ग आयोग के गठन की अधिसूचना मंत्रिमंडल की बैठक से गायब क्यों रही
मंडी में क्यों बड़े दलित अत्याचार के मामले
ओबीसी भी पूरा 27% आरक्षण लागू किए जाने की मांग पर आ गए हैं
शिमला/शैल। प्रदेश के स्वर्ण संगठन जातिगत आरक्षण समाप्त करके सारा आरक्षण आर्थिक आधार पर करने और एट्रोसिटी एक्ट खत्म करने की मांग करते रहे हैं। मंडल बनाम कमण्डल आंदोलन के दौरान तो यह विरोध प्रदेश में आत्मदाह के प्रयासों तक पहुंच गया था। लेकिन उसके बाद अब जयराम सरकार के समय में यह विरोध फिर मुखर हो उठा है। बल्कि इस दौरान दलित उत्पीड़न के मामलों में भी वृद्धि हुई है। दलित वर्ग से ताल्लुक रखने वाले मंत्री तक को मंडी में मन्दिर में प्रवेश नहीं करने दिया गया था। स्वर्ण समाज का यह विरोध उस समय पूरी तरह खुलकर सामने आ गया जब 15 से 21 नवम्बर के बीच एट्रोसिटी अधिनियम की राजधानी शिमला में भी शव यात्रा निकाली गयी। प्रशासन इस शव यात्रा पर पूरी तरह खामोश रहा जबकि एट्रोसिटी अधिनियम संविधान द्वारा इन वर्गों को दिया गया अधिकार है। ऐसे में यह शव यात्रा एक तरह से संविधान की ही शव यात्रा बन जाती है और इस तरह से राष्ट्रद्रोह के दायरे में आती है। दलित समाज की मांग के बावजूद प्रशासन द्वारा कोई कदम न उठाया जाना और धर्मशाला में विधानसभा सत्र के दौरान स्वर्ण संगठनों के आन्दोलन के दबाव में मुख्यमंत्री द्वारा सामान्य वर्ग आयोग के गठन की अधिसूचना जारी करवा दिये जाने से यह मामला एक अलग ही पायदान पर पहुंच गया है।
प्रदेश की बहुजन समाज पार्टी ने इसका कड़ा संज्ञान लेते हुए राज्यपाल को इस संदर्भ में एक ज्ञापन सौंपकर शव यात्रा निकालने वालों और इस पर संवद्ध प्रशासन के मौन रहे अधिकारियों के खिलाफ राष्ट्रद्रोह के तहत मामला दर्ज करके कारवाई करने की मांग की है। बसपा ने इस आशय का एक ज्ञापन भी राज्यपाल को सौंपा है। इस ज्ञापन में बसपा ने मुख्यमंत्री के गृह जिले मंडी और उनके ही चुनाव क्षेत्र सिराज में हुए दलित उत्पीड़न के मामलों को प्रमुखता से उठाया है। सिराज में हुए पदम देव हत्याकांड कमल जीत उर्फ कोमल हत्याकांड और द्रंग में 80 वर्षीय बुजुर्ग से हुई मारपीट तथा जोगिन्दर नगर में 11 वर्षीय बच्ची के साथ हुए बलात्कार के मामलों का जिक्र करते हुये आरोप लगाया गया है कि एट्रोसिटी एक्ट को हटाने की मांग करके इन वर्गों के खिलाफ अत्याचार करने की छूट की मांग की जा रही है। क्योंकि संविधान द्वारा दिए गए इस अधिकार के बावजूद भी दलित अत्याचार के इन मामलों पर कार्रवाई न होना अपने में यही प्रमाणित करता है।
दूसरी और स्वर्ण संगठनों की मांग पर सरकार ने धर्मशाला में सामान्य वर्ग के लिए आयोग के गठन की अधिसूचना जारी करके आन्दोलन की धारा को तो रोक दिया है। लेकिन इस अधिसूचना के बाद मंत्रिमंडल की हुई पहली बैठक में अधिसूचना का मुद्दा न आने से भी कई सवाल खड़े हो रहे हैं। क्योंकि आन्दोलनकर्ताओं की मांग है जातिगत आरक्षण और एट्रोसिटी एक्ट को समाप्त करना। लेकिन यह दोनों ही संविधान द्वारा दिये गये अधिकार हैं। इनमें कोई भी संशोधन करना संसद के अधिकार क्षेत्र में आता है। इसमें राज्य सरकार या उसके द्वारा गठित आयोग की कोई भूमिका ही नहीं है। यहां तक कि ऊंची जातियों के आर्थिक रूप से पिछड़ा को 10 प्रतिशतआरक्षण 1991 में नरसिंह राव सरकार ने दिया था उसे भी सर्वोच्च न्यायालय 1992 में आये इन्दिरा साहनी मामले के फैसले में रद्द कर चुका है। फिर अन्य पिछड़े वर्गों को जो 27 प्रतिशत आरक्षण मिला है उस पर भी प्रदेश में पूरी तरह अमल नहीं हो पाया है। यह वर्ग भी इस पर अमल की मांग को लेकर सामने आ रहा है। इस परिदृश्य में जयराम सरकार के लिये आने वाला समय काफी रोचक रहने वाला है।