किसके नेतृत्व में लडे़गी प्रदेश कांग्रेस अगला चुनाव उठने लगा है सवाल

Created on Thursday, 17 February 2022 08:26
Written by Shail Samachar

शिमला/शैल। क्या प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष का बदलाव होगा? क्या विधानसभा चुनाव से पहले कांग्रेस के होने वाले मुख्यमन्त्री के नाम की घोषणा कर दी जायेगी? यदि ऐसी घोषणा हो जाती है तो वह चेहरा कौन होगा? यह कुछ ऐसे सवाल हैं जो एक कांग्रेस कार्यकर्ता से लेकर प्रदेश के आम आदमी के सामने आने लग पड़े हैं। क्योंकि इसी वर्ष के अंत में चुनाव होने हैं। भाजपा से सत्ता छीनने का सवाल होगा और इसमें यह हर समय सामने रहेगा कि संसाधनों के नाम पर कांग्रेस भाजपा का मुकाबला नहीं कर पायेगी। क्योंकि केंद्र और प्रदेश में दोनों जगह भाजपा की सरकारें हैं। फिर प्रधानमंत्री, गृहमंत्री और जेपी नड्डा से लेकर दर्जनों केंद्रीय मंत्री चुनाव प्रचार में आयेंगे। कांग्रेस को भाजपा के एक व्यवहारिक पक्ष को सामने रखकर अपनी तैयारियां करनी होगी। इसलिये यह सवाल अहम हो जाता है कि प्रदेश कांग्रेस का आकलन इस परिदृश्य में किया जाये। क्योंकि भाजपा का आकलन उस पर लगे आरोपों के आईने में कांग्रेस का उसकी अक्रमकता के आईने में किया जायेगा।
स्मरणीय है कि 2017 के चुनाव के समय स्व. वीरभद्र सिंह मुख्यमंत्री और सुखविंदर सिंह सुक्खू पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष थे। कांग्रेस चुनाव हार गयी थी। इस हार के बाद जब कांग्रेस विधायक दल का नेता चुनने की बात आयी तब हाईकमान ने यह जिम्मेदारी ना तो स्व. वीरभद्र सिंह को दी और ना ही सुक्खू को। यह जिम्मेदारी मुकेश अग्निहोत्री को दी गयी। जबकि शायद 17 लोगों ने स्व. वीरभद्र सिंह के पक्ष में हस्ताक्षर करके उन्हें यह जिम्मेदारी दिये जाने की मांग की थी। इसके बाद 2019 के लोकसभा चुनाव से पहले सुक्खू को हटाकर कुलदीप राठौर को प्रदेश अध्यक्ष बना दिया गया। पार्टी 2019 में लोकसभा की चारों सीटें हार गयी। सोलन में राजेंद्र राणा और पालमपुर में मुकेश अग्निहोत्री के हाथों में कमान थी। नगर निगम के बाद अब तीन विधानसभा और एक लोकसभा उपचुनाव पार्टी जीत गयी। मंडी लोकसभा की जिम्मेदारी फिर मुकेश अग्निहोत्री के पास थी। जिन्होंने 17 विधानसभा क्षेत्रों का संचालन किया।
इस परिपेक्ष में यह सवाल उठता है कि इस दौरान प्रदेश कांग्रेस की कार्यशैली विधानसभा के भीतर और बाहर क्या रही। विधानसभा के भीतर बतौर नेता प्रतिपक्ष जिस कदर मुकेश अग्निहोत्री जयराम और उनकी सरकार पर आक्रामक रहे हैं उसके कारण वह आज मुख्यमंत्री से लेकर भाजपा के हर छोटे बड़े नेता के निशाने पर चल रहे हैं। जब विधानसभा में राज्यपाल से ही टकराव की स्थिति धरने प्रदर्शन तक पहुंच गई थी तब संगठन की ओर से कोई बड़ा योगदान नहीं मिल पाया है यह कई दिन चर्चा का विषय बना रहा था। आज भी सदन के भीतर जो आक्रमकता कांग्रेस की सामने आती है उसके मुकाबले में संगठन सदन के बाहर कोई प्रभावी भूमिका नहीं निभा पा रहा है। अभी तक कांग्रेस का आरोप पत्र सामने नहीं आ पाया है। जबकि भाजपा ने हर चुनाव में कांग्रेस के नेताओं के खिलाफ व्यक्तिगत स्तर पर आरोप लगाये हैं। स्व.वीरभद्र सिंह के खिलाफ बने मामलों को प्रधानमंत्री से लेकर भाजपा के हर नेता ने हर चुनाव में उछाला है। यह अब एक चुनावी संस्कृति बन गयी है कि जब तक विरोधी को व्यक्तिगत स्तर पर नहीं घेरा जायेगा तब तक जनता आपको गंभीरता से नहीं लेती हैं। प्रदेश कांग्रेस का नेतृत्व अभी तक मुख्यमंत्री जयराम और उनके दूसरे सहयोगियों को व्यक्तिगत स्तर पर नहीं घेर पाया है। जबकि दर्जनों गंभीर मामले सामने हैं। अभी घटे शराब कांड में ही भाजपा के दो बड़े नेताओं के नाम हर आदमी की जुबान पर हैं। लेकिन कांग्रेस नेता यह नाम लेने से बच रहे हैं। आज शायद प्रदेश के सात-आठ ठेकेदारों के पास ही सात सौ करोड़ से अधिक के ठेके हैं। एक मंत्री का भाई तो शायद पूरे जिले को संभाल रहा है। जनता में यह चर्चायें आम है लेकिन कांग्रेस मौन है। कांग्रेस का यह मौन तोड़ने के लिए हाईकमान को समय रहते नेतृत्व के सवालों को सुलझा लेना होगा अन्यथा नुकसान हो सकता है। जातीय समीकरण भी प्रभावी रहते हैं इस पर अगले अंक में चर्चा की जायेगी।