क्या ‘जय और तय’ के नारों से ही कांग्रेस भाजपा से सत्ता छीन लेगी?

Created on Monday, 18 April 2022 08:25
Written by Shail Samachar

शिमला/शैल। विधानसभा के चुनाव तय समय से पहले हो जाने की संभावनाएं बराबर बनी हुई है। हिमाचल में जो मुकाबला पहले कांग्रेस और भाजपा में ही होना तय माना जा रहा था उसमें अब आम आदमी पार्टी की एंट्री ने सारे राजनीतिक गणित और समीकरणों में उलटफेर खड़ा कर दिया है। क्योंकि आप में कांग्रेस और भाजपा से ही नाराज कार्यकर्ता एवं नेता शामिल हो रहे हैं। फिर जयराम ने आप के दिल्ली मॉडल की नकल करके भले ही अपने और पार्टी के लिये राष्ट्रीय स्तर पर सिर दर्द खड़ा कर लिया हो लेकिन कांग्रेस को वह अपने मुकाबले में ही नहीं मानते हैं यह संदेश देने में तो सफल हो ही गये हैं। इस परिदृश्य में कांग्रेस की चुनौतियां दोगुनी हो जाती हैं। उसे केजरीवाल के मॉडल को भी तथ्यों के साथ ध्वस्त करना होगा और जयराम तथा उनके सलाहकारों के बौैद्धिक दिवालीयेपन को भी उजागर करना होगा। यह करने के लिए कांग्रेस के नेताओं को अपनी कुष्ठाओं से बाहर निकालना होगा। पूरे अध्ययन के साथ आप और जयराम के खिलाफ प्रमाणिक साक्ष्य प्रदेश की जनता के सामने रखने होंगे। लेकिन जो कांग्रेस घोषणा के बाद भी सरकार के खिलाफ अभी तक आरोप पत्र नहीं ला पायी है क्या वह आने वाले दिनों में सफलता के साथ इस जिम्मेदारी को अंजाम दे पायेगी? यह सवाल इसीलिये उठने लगा है क्योंकि कांग्रेस के नेता अपने-अपने प्रभाव क्षेत्रों में अपनी ही जय और अपने ही तय होने के नारे लगवाने में व्यस्त हो गये हैं। डॉ. अंबेडकर जयंती के अवसर पर हमीरपुर में आयोजित एक कार्यक्रम में ‘जय सुक्खू तय सुक्खू’ ‘जय कांग्रेस तय कांग्रेस’ के नारे लगने से यह चर्चा आम आदमी तक पहुंच गयी है। इस आयोजन में हमीरपुर में कांग्रेस के तीनों विधायक सुक्खू, लखनपाल और राजेंद्र राणा हाजिर रहे हैं। इन नारों से यही संदेश जाता है कि यदि कांग्रेस को चुनाव में बहुमत मिलता है तो सुक्खू ही मुख्यमंत्री होंगे। यह सही है कि सुक्खू छः वर्ष तक पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष रहे हैं। लेकिन उनकी अध्यक्षता में कितनी चुनावी सफलताएं मिली है यह एक अलग विषय बन जाता है। इस समय सदन में नेता प्रतिपक्ष की जिम्मेदारी मुकेश अग्निहोत्री निभा रहे हैं। जयराम के कार्यकाल में कारगर विपक्ष की भूमिका कांग्रेस की जितनी सदन में सफल रही है उतनी सदन से बाहर नहीं रही है। पालमपुर के नगर निगम और फिर मंडी के लोकसभा उपचुनाव का संचालन मुकेश के पास रहा है। ऐसे में यदि मुकेश के समर्थक भी ऊना में ऐसे ही नारे लगाने पर आ जाये तो क्या संदेश जायेगा। आशा कुमारी कांग्रेस वर्किंग कमेटी की सदस्य हैं क्या मुख्यमंत्री बनने के लिये उनकी योग्यताएं कम हो जाती हैं। इसी तरह आनंद शर्मा, कौल सिंह ठाकुर, रामलाल, सुरेश चंदेल और हर्षवर्धन चौहान तक कांग्रेस में नेताओं की लंबी सूची है। हॉलीलॉज अभी काफी वक्त तक सत्ता का केंद्र रहेगा क्योंकि हर चुनाव में स्व.वीरभद्र सिंह का नाम लिया ही जायेगा। इस वस्तु स्थिति में यदि कांग्रेस के नेता अपने-अपने नारे लगवाने की दौड़ में शामिल हो जाते हैं तो उसे न केवल उनका अपना और संगठन का ही अहित होगा बल्कि प्रदेश की जनता के साथ भी धोखा होगा। क्योंकि जिस सरकार ने आकंठ कर्ज के बोझ तले प्रदेश में सत्ता में बने रहने के लिये मुफ्ती की मीठी गोली देकर और कर्ज बढ़ाने का दाव चल दिया हो उसे हल्के में लेना सही नहीं होगा। राजनीतिक विश्लेषकों का स्पष्ट मानना है कि कांग्रेस को पहले सदन में सरकार बनाने लायक बहुमत जुटाने को प्राथमिकता देनी होगी और उसके बाद मुख्यमंत्री बनने के लिए एक दूसरे का गला काटने की योजनाओं को अंजाम देना होगा। क्योंकि विपक्ष में आप कांग्रेस से पहले अपनी गिनती करवाने में सफल हो गयी है। जबकि कांग्रेस सीडब्ल्यूसी की बैठक में आप को भाजपा की बी टीम होने का फतवा देकर चुप बैठ गयी है। इस फतवे को प्रमाणित करने के लिए कोई ठोस साक्ष्य लेकर जनता की अदालत में नहीं आयी है। यदि कांग्रेस इस मनोविकार से समय रहते बाहर नहीं निकलती है तो उसके लिये लंबे तक ‘‘दिल्ली दूरस्थ’’ हो जायेगी।