मोक्टा के पत्र से उठा मुद्दा
शिमला/शैल। जब प्रशासन में शीर्ष पदों पर बैठे अधिकारी अपने स्वार्थों के लिये स्थापित नियमों को अंगूठा दिखाते हुये लाभ लेना शुरू कर देते हैं और इस लाभ को राजनीतिक नेतृत्व का संरक्षण प्राप्त हो जाता है तब स्थिति को अराजकता का नाम दिया जाता है। आज हिमाचल का प्रशासन लगातार इस अराजकता का शिकार बनता जा रहा है। इस अराजकता में जनहित गौण हो जाता है अधिकारी और राजनीतिक नेतृत्व अपने व्यक्तिगत स्वार्थों से बाहर निकल ही नहीं पाते हैं। यह एक सामान्य समझ का पक्ष है कि एक व्यक्ति एक समय में दो अलग स्थानों पर उपस्थित नहीं हो सकता है। लेकिन जयराम सरकार में पांच ऐसे बड़े आई ए एस अधिकारी हैं जो सरकारी रिकॉर्ड के मुताबिक दिल्ली और शिमला में 17 सेवाएं दे रहे हैं क्योंकि सरकार ने इन्हें दोनों जगहों पर मूल पोस्टिंग्स दे रखी है। और इन पोस्टिंग्स के कारण इन लोगों ने शिमला और दिल्ली दोनों जगहों पर सरकारी आवासों का आवंटन ले रखा है। यह नियुक्तियां कार्मिक विभाग द्वारा की जाती हैं। कार्मिक विभाग का प्रभार स्वयं मुख्यमंत्री के पास है। फिर आई ए एस अधिकारी को तबादले और नियुक्तियां राज्यपाल के नाम से की जाती है। उनमें यह लिखा जाता है की " The Governor is pleased to order" इसका अर्थ है कि राज्यपाल के संज्ञान में भी यहां सब रहता है।
अधिकारियों की नियुक्तियों और तबादलों से जुड़े नियमों में ऐसा कोई प्रावधान ही नहीं है जिसके तहत किसी अधिकारी को तो अलग-अलग स्थानों पर मूल पोस्टिंग दी जा सके। पिछले दिनों एक आई ए एस अधिकारी की मूल नियुक्ति पर्यावरण विभाग के निदेशक के तौर पर करके उसे सचिवालय में अतिरिक्त प्रभार भी दिया गया और अधिकारी सचिवालय में ही बैठता था। सचिवालय में तैनाती पर विशेष वेतन का लाभ भी मिलता है। लेकिन इस अधिकारी मोक्टा को यह लाभ इसलिए नहीं दिया जा सका क्योंकि उसकी मूल पोस्टिंग पर्यावरण विभाग में थी। इस पर यह प्रश्न उठा कि जब अतिरिक्त मुख्य सचिव निशा सिंह, प्रबोध सक्सेना और प्रधान सचिव शुभाशीष पांडे, रजनीश शर्मा और भरत खेड़ा दिल्ली में मूल पोस्टिंग पर तैनात होकर शिमला सचिवालय के सारे लाभ ले रहे तो फिर मोक्टा को यह लाभ क्यों नहीं मिल सकता। लेकिन नियम इसकी अनुमति नहीं देता है इस पर मोक्टा की मूल पोस्टिंग सचिवालय में दिखाकर इस समस्या का हल निकाला गया। लेकिन इसी हल के साथ यह बड़ा सवाल खड़ा हो गया है कि जो अधिकारी शिमला और दिल्ली में एक साथ मूल पोस्टिंग दिखाकर सरकारी आवासों का लाभ ले रहे हैं उनके मामले को कैसे निपटाया जाये।
नियमों के जानकारों के मुताबिक इन पांचों अधिकारियों ने अवश्य लाभ लेने के लिये दोनों जगह पोस्टिंग को लेकर अलग-अलग दस्तावेज सौंप रखे हैं। क्योंकि जब एक आदमी एक वेतन में एक ही स्थान पर उपलब्ध रह सकता है तो फिर उसी समय में उसकी उपस्थिति दूसरे स्थान पर कैसे संभव हो सकती है। नियमानुसार एक व्यक्ति एक साथ दो अलग-अलग स्थानों पर स्थित सरकारी आवास का लाभ कैसे ले सकता है। शुभाशीष पांडे के पास मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर के प्रधान सचिव का प्रभार है साथ ही सचिवालय प्रशासन सामान्य प्रशासन और लोक संपर्क जैसे विभागों की जिम्मेदारी है। ऐसा अधिकारी दिल्ली में मूल पोस्टिंग लेकर शिमला में इतनी बड़ी जिम्मेदारी कैसे निभा सकता है। स्वभाविक है कि कहीं तो जानबूझकर नियमों के विरुद्ध कार्य कर रखा है। नियमों के अनुसार इन लोगों के खिलाफ धारा 420 के तहत आपराधिक मामले दर्ज होने चाहिये। यह देखना दिलचस्प होगा कि विजिलैन्स इस पर मामला दर्ज करता है या नहीं। या फिर किसी को धारा 156(3) के तहत अदालत का ही दरवाजा खटखटाना पड़ता है।
अभी प्रदेश विधानसभा के लिये इसी वर्ष चुनाव होने हैं। सरकार की कारगुजारी का आकलन जनता इन चुनावों में करेगी। ऐसे में यह महत्वपूर्ण हो जाता है कि यह सब कुछ मुख्यमंत्री के अपने विभागों में हो रहा है। इससे यह सवाल खड़ा हो रहा है कि क्या शीर्ष प्रशासन मुख्यमंत्री को नियमों की जानकारी न होने का लाभ उठा रहे हैं या यह सब मुख्यमंत्री की सहमति से हो रहा है।