शिमला/शैल। क्या आम आदमी पार्टी हिमाचल में अपनी चुनावी उपस्थिति दर्ज करा पायेगी? यह सवाल पिछले कुछ समय से पूछा जाने लगा है। क्योंकि पंजाब में मिली सफलता के सहारे जिस आगाज से पार्टी ने प्रदेश में दस्तक दी थी और यह दावा किया गया था कि दो लाख लोगों ने इसकी सदस्यता ग्रहण कर ली है। मुख्यमंत्री के गृह जिले मण्डी में रैली करके पहला शक्ति प्रदर्शन किया था और मुख्यमंत्री को उन्हीं के चुनाव क्षेत्र में घेरने का दावा किया था। लेकिन पार्टी की दूसरी रैली कांगड़ा में होने से पहले ही इस के तत्कालीन संयोजक अनूप केसरी और दो अन्य नेताओं को अनुराग ठाकुर ने भाजपा का सदस्य बना कर सारी बाजी ही पलट दी। इसके बाद पार्टी को नई प्रदेश कार्यकारिणी बनाने में समय लगा और इसी दौरान हिमाचल के प्रभारी रहे सत्येंद्र जैन को ईडी ने गिरफ्तार कर लिया। इस गिरफ्तारी के बाद प्रदेश ईकाई अपनी प्रभावी उपस्थिति दर्ज नहीं करवा पायी है। मनीष सिसोदिया ने शिक्षा को मुद्दा बनाने का जो मंत्र प्रदेश इकाई को दिया था अब उसका जाप भी लगभग बंद हो गया है। अब प्रदेश ईकाई पंजाब का नाम लेना भी भूल रही है क्योंकि एक तो वहां पर उपचुनाव हार गयी और फिर जिस तरह से पंजाब में राघव चड्डा को सलाहकार कमेटी का मुखिया बनाया गया तथा उस पर पंजाब में ही सवाल उठ गये। उसका भी हिमाचल की इकाई पर असर पड़ा है क्योंकि प्रदेश के नेताओं को यह समझ ही नहीं आ पा रहा है कि वह इसका क्या जवाब दें। यही नहीं जिस दिल्ली मॉडल के सहारे हिमाचल में सत्ता के सपने लिये जाने लगे थे अब जब प्रधानमंत्री ने उस मॉडल पर हमला करते हुए मुफ्ती को भविष्य के लिए घातक करार देकर केजरीवाल को सिंगापुर जाने की अनुमति नहीं दी है। प्रधानमंत्री के इस हमले से निश्चित रूप से पार्टी की योजनाओं पर अंकुश और प्रश्न चिन्ह दोनों एक साथ लगने की स्थिति पैदा हो गयी है। पार्टी की बढ़त पर यह एक बड़ा हमला है और प्रदेश का कोई भी नेता इसके जवाब में मुंह नहीं खोल रहा है जबकि इसी मॉडल के पोस्टर हर प्रचार अभियान में बांटे जा रहे हैं। शायद इससे हटकर प्रदेश नेतृत्व के पास और कुछ भी नहीं है। यह लोग प्रदेश सरकार से कोई भी सवाल नहीं पूछ पा रहे हैं। इससे यह संदेश जा रहा है कि प्रदेश इकाई के नेतृत्व को प्रदेश की समस्याओं की कोई जानकारी ही नहीं है या फिर कुछ लोगों की निष्ठाएं अभी भी संघ भाजपा के साथ बनी हुई है। क्योंकि अब तक यह लोग कांग्रेस को ही निशाने पर लेकर चल रहे थे और भाजपा भी इन्हें खुला हाथ दिये हुए थी। परंतु अब जब प्रधानमंत्री ने सीधे केजरीवाल पर निशाना साध दिया है उससे आप एक बड़ा वर्ग हताशा में आ गया है जबकि इस समय बदले में प्रधानमंत्री पर बड़े सवाल दागना समय की मांग बन गया है।