- क्या यह प्रचार अध्यक्ष के पास लंबित अवमानना याचिका वापस करवाने का प्रयास है
- क्या शान्ता के साथ पार्टी के और स्वर भी उभरेंगे?
- क्या भाजपा प्रदेश को मध्यवर्ती चुनाव की ओर ले जा रही है?
शिमला/शैल। भाजपा ने कांग्रेस के छः बागिया और तीन निर्दलीय विधायकों को उनसे विधायकी से त्यागपत्र दिलवाकर भाजपा में शामिल करवा कर प्रदेश सरकार को अस्थिरता के कगार पर पहुंचा दिया है। क्योंकि इन नौ स्थानो पर उपचुनाव होने आवश्यक हो गए हैं। भाजपा के 9 विधायकों के खिलाफ अवमानना कि याचिका अध्यक्ष के पास लंबित चल रही है। यदि यह याचिका वापस नहीं ली जाती है और उनके खिलाफ भी स्पीकर का फैसला आ जाता है तो उनकी विधायकी भी जाने की स्थिति पैदा हो जाएगी। इसी बीच यह फैल गया है कि भाजपा के सभी 25 विधायक भी त्यागपत्र दे रहे हैं । इस अपवाह का भाजपा की ओर से कोई खंडन भी नहींआया है और ऐसा माना नहीं जा सकता कि भाजपा नेतृत्व को इसकी जानकारी ही न हो । ऐसे में यह लगता है कि इस अफवाह के पीछे कोई रणनीति काम कर रही है । पहली नजर में यह माना जा रहा है कि भाजपा विधायकों के खिलाफ लंबित चल रही यचिका को वापस लेने का इससे दबाव बनाया जा रहा है । दूसरे अर्थों में यदि यह याचिका वापस नहीं ली जाती है तो पूरे प्रदेश में विधानसभा के मध्यावधि चुनाव करवाए जाने का वातावरण तैयार कर दिया जाये । क्योंकि अभी तक छ: मुख्य संसदीय सचिवों की याचिका पर 2 अप्रैल को सुनवाई होनी है।
सर्वोच्चन् यायालय पहले ही कह चुका है कि राज्य विधानसभा को ऐसा एक्ट बनाने का अधिकार ही नहीं है। समरणीय है कि जब स्वर्गीय वीरभद्र सिंह के शासनकाल में प्रदेश उच्च न्यायालय ने तब नियुक्त किये गए मुख्य संसदीय सचिवों और संसदीय सचिवों की नियुक्ति को असंवैधानिक करार देकर इनको रद्द कर दिया था तब सरकार ने उच्च न्यायालय की अपील सर्वोच्च न्यायालय में दायर करने के साथ ही इस आशय का नया कानून ही बना दिया था । लेकिन उस कानून को तभी उच्चन्यायालय में चुनौती दे दी गई थी जो अभी तक लंबित चल रही है । इसी कारण से जयराम सरकार में ऐसी नियुक्तियां नहीं हो पाई थी। जयराम सरकार के दौरान सरकार की ओर से यह शपथ पत्र दायर किया गया था कि यदि सरकार ऐसी नियुक्तियां करने का फैसला लेती है तो नियुक्ति करने से पहले उच्चन्यायालय की अनुमति ली जाएगी ।
परंतु अब यह नियुक्तियां करने से पहले उच्च न्यायालय से ऐसी कोई पूर्व अनुमति नहीं ली गई है । नए कानून को चुनौती देने वाली याचिका पर भी साथ ही सुनवानी हो रही है । सर्वोच्च न्यायालय के मुताबिक इस आशय का एक्ट बनाने की राज्य विधायिकी को अधिकार ही नहीं है । इस कानूनी जटिलता के साये में यह खतरा बरकरार बना हुआ है की कहीं इन मुख्य संसदीय सचिवों की विधायकी भी न चली जाये । यदि ऐसा होता है तो उनके स्थान पर भी उपचुनाव होने अनिवार्य हो जाएंगे। ऐसे में भाजपा अपने पच्चीस सदस्यों के त्यागपत्र से प्रदेश में मध्यावधि चुनाव करवाने की सभावनाएं पैदा करने का प्रयास करेंगी । वैसे तो कानूनी तौर पर मध्यावधि चुनावो की कोई बाध्यता नहीं होगी । परंतु ऐसी स्थिति में राजनीतिक अस्थिरता का एक राजनीतिक वातावरण आवश्यक खड़ा हो जाएगा।
राजनीतिक अस्थिरता कोई निश्चित रूप से परिभाषित नहीं है। राजनीतिक अस्थिरता का संज्ञान लेकर राज्यपाल कोई भी संस्तुति केंद्र को भेज सकता है । ऐसी संस्तुति करने के लिए राज्यपाल के अधिकारों को चुनौती नहीं दी जा सकती है। पूरे भाजपा विधायक दल के त्यागपत्र देने की बात फैला कर यही संदेश देने का प्रयास माना जा रहा है। इससे यह संभावना भी उभर सकती है कि कांग्रेस के जो विधायक और मंत्री अपने को असहज महसूस कर रहे हैं वह पासा बदलने पर विचार करने लग जायें। भाजपा के इस खेल पर पार्टी के ही वरिष्ठतम नेता शांता कुमार ने जिस भाषा में अपनी प्रतिक्रिया व्यक्त की है वह भी इस समय महत्वपूर्ण और प्रासंगिक मानी जा रही है । क्योंकि सत्ता पाने के लिए इस स्तर तक जाने को कोई भी सिद्धांत वादी नेता अपना समर्थन नहीं दे सकता। शांता की ही तर्ज पर बहुत से उन लोगों ने जिन्होंने आपातकाल का दौर देखा है और उस समय जेल में गए थे इस तरह के राजनीतिक आचरण को अपना समर्थन नहीं दिया है । लेकिन जिस तरह से कांग्रेस के असहमति को विरोध करार देकर उसे प्रताड़ित किया जा रहा था ऐसे स्वरों को क्या करना चाहिए था इस पर शांता का मौन फिर कई नए प्रश्नों को जन्म दे जाता है।