शिमला/शैल। देवाशीष भट्टाचार्य बनाम रचना गुप्ता मामले में प्रदेश उच्च न्यायालय की न्यायमूर्ति बिपिन चंद्र नेगी की एकल पीठ ने कहा है कि Exception 8 to Section 499 clearly indicates that it is not a defamation to prefer in good faith and accusation against any person to any of those who have lawful authority over that person with regard to the subject matter of accusation. इस आधार पर मुख्य न्यायिक दण्डाधिकारी की अदालत में रचना गुप्ता बनाम देवाशीष भट्टाचार्य मामले में चल रही कारवाई को निरस्त कर दिया है। यह मामला मुख्य न्यायिक दण्डाधिकारी की अदालत में 2021 में दायर हुआ था जिसका 9-5-2024 को उच्च न्यायालय में इस तरह निपटारा हुआ है।
स्मरणीय है कि जब डॉ. रचना गुप्ता जनवरी 2018 में प्रदेश लोकसेवा आयोग की सदस्य नियुक्त हुई थी तब उनके खिलाफ जोगिन्दर नगर की अदालत में एक आपराधिक मामला लंबित था जिसमें उस समय वह जमानत पर थी। देवाशीष भट्टाचार्य ने महामहिम राज्यपाल से इस संबंध में यह शिकायत कर दी कि रचना गुप्ता ने अपने खिलाफ आपराधिक मामला लंबित होने की सूचना राजभवन को नहीं दी है। रचना गुप्ता ने इस शिकायत पर देवाशीष भट्टाचार्य के खिलाफ आपराधिक मामला दायर कर दिया था। जिसका अब निपटारा हुआ है। उच्च न्यायालय ने स्पष्ट कहा है कि लॉ फुल अथॉरिटी के पास की गई शिकायत मानहानि नहीं होती। लोकसेवा आयोग के सदस्यों की नियुक्ति माहामहिम राज्यपाल करते हैं ऐसे में उनके पास दस्तावेज आधारित की गई शिकायत को अवमानना नहीं माना जा सकता।
इस फैसले से इस तरह के मामलों की स्थिति स्पष्ट हो गयी है। बहुत सारे ऐसे मामले भी सामने आये हैं जिनमें शिकायत की विधिवत्त जांच किये बिना ही शिकायतकर्ता को प्रताड़ित करने की घटनाएं घट चुकी हैं। बल्कि मानहानि को प्रताड़ना का हथियार बनाकर इस्तेमाल किया जा रहा था। प्रभावशाली लोग इसका खुलकर दुरुपयोग कर रहे हैं। अब इस पर रोक लगने की संभावनाएं बन गयी हैं।