निर्दलीय विधायकों के त्यागपत्र हुये स्वीकार

Created on Monday, 03 June 2024 19:29
Written by Shail Samachar

शिमला/शैल। निर्दलीय विधायकों के त्यागपत्र मतगणना से एक दिन पहले ही विधानसभा अध्यक्ष कुलदीप पठानिया द्वारा स्वीकार कर लिये गये हैं। स्मरणीय है कि प्रदेश विधानसभा में तीन निर्दलीय विधायक जीत कर आये थे और पहले दिन से ही सुक्खू सरकार को समर्थन दे रहे थे। लेकिन इस बीच राजनीतिक परिस्थितियों ने ऐसा मोड़ लिया कि राज्यसभा चुनाव में इन लोगों ने कांग्रेस के छः बागियों के साथ भाजपा के पक्ष में वोट कर दिया। राज्यसभा में कांग्रेस की हार के बाद छः बागियों को दलबदल कानून के तहत कारवाई करके निष्कासित कर दिया। इस निष्कासन के बाद इन निर्लदलीयों ने भी विधानसभा की सदस्यता से 22 मार्च को त्यागपत्र दे दिया। त्यागपत्र देने के बाद इन्होंने भाजपा की सदस्यता भी ग्रहण कर ली। सदस्यता ग्रहण करने के साथ ही भाजपा ने इन्हें भी उनके क्षेत्र से उपचुनाव के लिए बागियों की तर्ज पर अपना उम्मीदवार घोषित कर दिया। कांग्रेस के बागियों के निष्कासन के बाद उनके क्षेत्र तो रिक्त घोषित हो गये और उनके उपचुनाव भी हो गये। लेकिन इन निर्दलीयों के उपचुनाव बागियों के साथ ही न हो जायें इसलिये इनके त्यागपत्रों की प्रामाणिकता पर प्रश्न चिन्ह लगा दिया गया। यह प्रश्न चिन्ह दो कांग्रेस विधायक संजय अवस्थी और भुवनेश गौड की शिकायत के आधार पर लगाया गया। यह आरोप लगा कि यह लोग भाजपा के पास बिक गये हैं और दबाव में आकर त्यागपत्र दिये हैं। इस आश्य की बालूगंज थाना में एक एफआईआर भी दर्ज हो गयी। इसमें हमीरपुर के आजाद विधायक आशीष शर्मा और गगरेट से कांग्रेस के बागी चैतन्य शर्मा के पिता राकेश शर्मा सेवानिवृत्ति मुख्य सचिव उत्तराखण्ड को पार्टी बनाया गया। जांच के दौरान कई तरह के पुख्ता परिणाम इनके खिलाफ मिलने के दावे किये गये। इन्हीं दावों के बीच राजस्व मंत्री जगत सिंह नेगी ने भी अध्यक्ष के पास एक याचिका दायर कर इन निर्दलीयों के खिलाफ दल बदल कानून के तहत कारवाई करने की गुहार लगा दी। पूरे चुनाव प्रचार में इन लोगों को बिकाऊ विधायक करार देकर इन्हें हराने की अपील की गयी। यह दावा मुख्यमंत्री ने किया कि उनके बिकने के कई सबूत सरकार को मिल गये हैं। लेकिन पूरे चुनाव प्रचार में एक भी सबूत जनता में नहीं रखा गया।
निर्दलीयों और कांग्रेस के बागियों के पन्द्रह-पन्द्रह करोड़ में बिकने के आरोप लगाये गये। इन आरोपों पर मुख्यमंत्री के खिलाफ मानहानि के मामले तक दर्ज हुये हैं। अब जब विधान सभा अध्यक्ष ने इन निर्दलीयों द्वारा दिये गये त्यागपत्रों को बिना किसी दबाव और स्वेच्छा से दिये गये मानकर उनके खिलाफ दल बदल कानून के तहत कारवाई न करके त्यागपत्रों को स्वीकार कर लिया गया है। अध्यक्ष के इस फैसले से यह स्पष्ट हो जाता है कि उनकी जांच में इनके बिकने या दबाव में होने के कोई प्रमाण नहीं आये हैं। अध्यक्ष के फैसले के बाद उनके खिलाफ बालूगंज थाना में दर्ज हुई एफआईआर पर इसका क्या असर पड़ता है यह देखना रोचक होगा। क्योंकि इस फैसले के बाद कोई भी इन्हें बिकाऊ होने का संबोधन नहीं दे पायेगा। इसी के साथ इस फैसले से मुख्यमंत्री के खिलाफ दायर हुए मानहानि के मामलों पर क्या प्रभाव पड़ता है यह देखना भी रोचक होगा। मतगणना से पहले आये इस फैसले के राजनीतिक अर्थ बहुत गंभीर हो जाते हैं क्योंकि यह फैसला मुख्यमंत्री के सारे दावों के उलट माना जा रहा है।