तीनों उपचुनावों में निर्दलीयों की उम्मीदवारी बहाल रखना भाजपा के लिये बना चुनौती
संभावित विरोध और विद्रोह को शांत रखना होगी बड़ी चुनौती
नड्डा और अनुराग पर भी आयेगी जिम्मेदारी
शिमला/शैल। हिमाचल प्रदेश को केंद्रीय मंत्री परिषद में इस बार कोई स्थान नहीं मिला है जबकि प्रदेश की चारों लोकसभा सीटों पर भाजपा ने शानदार जीत दर्ज की है। हिमाचल से ताल्लुक रखने वाले भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष जगत प्रकाश नड्डा इस समय गुजरात से राज्यसभा सांसद हैं और केंद्रीय मंत्री परिषद में स्वास्थ्य मंत्राी बनाये गये हैं। उनके मंत्री बनने से प्रदेश को प्रतिनिधित्व न मिलने का मुद्दा भले ही भाजपा में बड़ा सवाल नहीं बना है लेकिन सतारूढ़ कांग्रेस ने इस पर सवाल अवश्य खड़े किये हैं। प्रदेश की राजनीति में यह सवाल बराबर बना हुआ है कि अनुराग ठाकुर को इस बार मंत्री परिषद में स्थान क्यों नहीं मिल पाया। इसके संभावित कारणों पर दबी जुबान से यह आवश्यक सुनने को मिल रहा है कि जब भाजपा लोकसभा की चारों सीटों पर जीत दर्ज करने में सफल रही है तो फिर विधानसभा के लिये हुये छः उपचुनावों में से चार पर कैसे हार गयी? जबकि जिन चार स्थानों पर कांग्रेस विधानसभा के लिये जीत गयी और उन्हीं स्थानों पर लोकसभा के लिये भाजपा जीती है। एक ही विधानसभा में एक ही समय में इस तरह का अलग मतदान कई सवाल खड़े कर रहा है। भाजपा की ओर से विधानसभा उपचुनाव हारने पर कोई प्रतिक्रिया नहीं आयी है। इन उपचुनावों में चार तो ऊना और हमीरपुर जिलों में ही है जो कि अनुराग ठाकुर का अपना लोकसभा चुनाव क्षेत्र है। विधानसभा के लिये हुये उपचुनावों की स्थिति राज्यसभा के चुनाव में कांग्रेस के बागियों द्वारा भाजपा के पक्ष में क्रॉस वोटिंग करने के कारण पैदा हुई थी। क्योंकि क्रॉस वोटिंग के बाद यह बागी भाजपा में शामिल हो गये थे। कांग्रेस ने भाजपा के इस आचरण की सुक्खू सरकार को गिराने के लिए ऑपरेशन लोटस की संज्ञा दी थी। पूरे चुनाव प्रचार में भाजपा पर धनबल से सरकार गिराने की साजिश रचने का आरोप लगा। इस पूरे प्रकरण से यह स्पष्ट हो जाता है कि इस कथित लोटस ऑपरेशन की व्यूह रचना में भाजपा हाईकमान की पूरी सहमति रही है। क्योंकि भाजपा हाईकमान ने इन बागियों और तीनों निर्दलीयों को विधानसभा उपचुनाव के लिये अपना उम्मीदवार भी घोषित कर दिया था। इन लोगों को उम्मीदवार बनाना भाजपा को अपनी विश्वसनीयता बनाये रखने के लिए आवश्यक था। स्वभाविक है कि इस सबके लिये प्रदेश भाजपा के शीर्ष नेतृत्व को भी अवश्य विश्वास में लिया गया होगा। अनुराग ठाकुर उस समय केंद्र में मंत्री थे। इस नाते यह सब कुछ उनके संज्ञान में भी अवश्य रहा होगा। फिर अनुराग या प्रदेश के किसी भी अन्य नेता ने इस दल बदल पर कभी कोई सवाल भी नहीं उठाया है। लेकिन अन्त में हमीरपुर लोकसभा क्षेत्र में ही चार में से तीन स्थान हार जाना अपने में कई सवाल तो पैदा करता ही है। क्योंकि चुनाव प्रचार के दौरान प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी और गृह मंत्री अमित शाह अपनी चुनावी सभाओं में सुक्खू सरकार के भविष्य पर गंभीर प्रश्न चिन्ह लगा चुके हैं। इस परिदृश्य में आने वाले दिनों में प्रदेश भाजपा के समीकरणों में भी कई बदलाव देखने को मिले तो इनमें आश्चर्य नहीं होगा। अब प्रदेश के तीनों निर्दलीयों के क्षेत्रों में भी उपचुनाव की घोषणा हो चुकी है। इन निर्दलीयों के भाजपा में शामिल होते ही हाईकमान ने उन्हें उपचुनाव के लिये उम्मीदवार भी घोषित कर दिया था। लेकिन पिछले कुछ समय से इन क्षेत्रों में भी भाजपा के पुराने लोगों में निर्दलीयों को प्रत्याशी बनाये जाने पर रोष पनपने के समाचार लगातार सामने आ रहे हैं। यह भी फैल रहा है की संभावित विद्रोह को देखते हुये शायद इन लोगों को प्रत्याशी बनाने पर पुनः विचार हो। क्योंकि इस तरह के समाचारों का प्रदेश भाजपा नेतृत्व की ओर से कोई खण्डन भी नहीं आया है। ऐसे में इन तीन उपचुनाव में इन निर्दलीयों की उम्मीदवारी कायम रखना और उनके खिलाफ पार्टी में कोई विरोध या विद्रोह न उभरने देना प्रदेश नेतृत्व की कसौटी बन जायेगा। संयोगवश इन तीन उपचुनावों में से दो हमीरपुर लोकसभा क्षेत्र से ही है। अनुराग ठाकुर यहां के सांसद है तो केंद्रीय मंत्री जगत प्रकाश नड्डा भी इसी क्षेत्र से ताल्लुक रखते हैं। इस वस्तुस्थिति में यह उपचुनाव अनुराग और नड्डा के लिये भी चुनौती होंगे।