बीबीएन क्षेत्र के भू-जल में कैंसर कारक तत्वों का मिलना एक गंभीर मुद्दा

Created on Thursday, 20 June 2024 11:47
Written by Shail Samachar
शिमला/शैल। बीबीएन औद्योगिक क्षेत्र के भू-जल में कैंसर कारक तत्व हैं। यह तथ्य आईआईटी मण्डी के एक शोध अध्ययन के माध्यम से सामने आया है। एक लंबे अरसे से इस क्षेत्र के भू-जल स्रोतों को लेकर शिकायतें आ रही थी कि यहां का पानी पीने योग्य नहीं है। कई स्रोतों को बंद भी कर दिया गया था। बीबीएन क्षेत्र प्रदेश का सबसे बड़ा औद्योगिक क्षेत्र है। फार्मा उद्योग का तो यह देश का सबसे बड़ा हब है। यहां पर प्रदेश ही नहीं बल्कि देश भर के कामगार हजारों की संख्या में यहां काम करते हैं। इसके विस्तार के कारण इस क्षेत्र को पुलिस जिला भी बना दिया गया है। उद्योगों के सुचारू संचालन के लिये यहां पर उद्योग विभाग, स्वास्थ्य विभाग का ड्रग नियंत्रण यूनिट और प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड का क्षेत्रीय कार्यालय यहां स्थापित है। लेकिन इतना सारा प्रशासनिक तन्त्र यहां तैनात होने के बावजूद भी यहां का भू-जल प्रदूषण के कारण कैंसर कारक हो जाये तो निश्चित रूप से इससे ज्यादा चिंता का विषय और नहीं हो सकता। यहां पर निर्मित दवाओं के सैंपल टेस्ट एक लंबे अरसे से लगातार फेल होते जा रहे हैं। इस फेल होने पर सरकार कारण बताओं नोटिस जारी करने से आगे नहीं बढ़ सकी है। किसी उद्योग के उत्पादन पर रोक नहीं लगा सकी है। पिछले दिनों यहां हुये अग्निकांड में उद्योगों द्वारा अपनाये जा रहे अग्नि सुरक्षा कुप्रबंधों पर गंभीर सवाल खड़े किये हैं। अब यहां के भू-जल में कैंसर कारक तत्वों के पाये जाने से प्रदूषण नियंत्रण की कार्य शैली पर गंभीर स्वाल खड़े कर दिये हैं। क्योंकि भू-जल में इन तत्वों का पाया जाना यह प्रमाणित करता है कि उद्योग अपने वेस्ट को सही से ट्रीट न करके उसे खुले में फेंक रहे हैं। उद्योगों से निकलने वाला रसायन जब खुले में विसर्जित किया जायेगा तो वह निश्चित रूप से यहां की जमीन के अन्दर ही जमा हो जाएगा और भू-जल को ही दूषित करेगा। जबकि भू-जल पीने के लिये सबसे स्वच्छ माना जाता है। जब भू-जल इस हद तक प्रदूषित मिलेगा तो निश्चित ही यहां पर प्रदूषण के मानकों की अनुपालन न होना प्रमाणित होता है। बल्कि यहां की ऐसी प्रभावित जमीन के हर उत्पादन की गुणवत्ता भी प्रश्नित हो जाएगी। दवाओं के सैंपल फेल होने पर आज तक दवा नियंत्रक विभाग के किसी भी संबंधित अधिकारी कर्मचारी के खिलाफ कभी कोई कारवाई नहीं की गई है। अग्निकांड, अग्नि सुरक्षा उपायों के मानकों की अवहेलना सामने ला दी है परन्तु इसके लिए संबंधित तंत्र में से किसी की भी जिम्मेदारी तय नहीं की गई है। अब भू-जल में कैंसर कारक तत्वों के पाये जाने पर प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के यहां पर तैनात अधिकारियों/कर्मचारियों की कोई जवाब देही तय नहीं हो पायी है जबकि प्रदूषण नियंत्रक बोर्ड का वरिष्ठ अधिकारी एक लंबे अरसे से यहां पर तैनात है। सरकारी तंत्र की इसी असफलता का प्रतिफल है की प्रदेश में कैंसर के रोगियों की संख्या में पिछले करीब एक दशक से 800% की वृद्धि हुई है। 2013 में ऐसे मरीजों की संख्या प्रदेश में 2419 थी जो 2022 में बढ़कर 17212 हो गयी है। इससे आने वाले समय में उद्योग नीति पर यह सबसे बड़ा सवाल खड़ा हो जायेगा कि ऐसी भयानक बीमारी की कीमत पर ऐसा औद्योगिक विस्तार प्रदेश हित में होगा या नहीं।