शिमला/शैल। प्रदेश में तीन उपचुनाव होने जा रहे हैं। दस जुलाई को मतदान होगा। चुनाव प्रचार अभियान चल रहा है। इन उपचुनावों के परिणामों का सरकार और विपक्ष पर कोई ऐसा संख्यात्मक प्रभाव नहीं पड़ेगा जिससे सरकार की स्थिरता पर कोई सवाल खड़े हो पायें। लेकिन इस सबके बावजूद यह उपचुनाव पिछले उपचुनावों से ज्यादा महत्वपूर्ण हो गये हैं। क्योंकि देहरा से मुख्यमंत्री की धर्मपत्नी को कांग्रेस ने उम्मीदवार बनाया है। स्मरणीय है कि लोकसभा की चारों सीटें कांग्रेस हार गयी हैं। 68 में से 61 विधानसभा क्षेत्रों में कांग्रेस को हार मिली है। लोकसभा के साथ हुये छः विधानसभा उपचुनाव में से चार कांग्रेस जीत गयी है। लेकिन यह जीत भाजपा के आन्तरिक समीकरणों के गणित का प्रतिफल मानी जा रही है। क्योंकि मुख्यमंत्री अपने ही विधानसभा क्षेत्र में कांग्रेस को बढ़त नहीं दिल पाये हैं। इस परिदृश्य में मुख्यमंत्री की पत्नी का देहरा से उम्मीदवार बनाया जाना निश्चित रूप से कई सवालों को जन्म देता है। क्योंकि यदि किन्हीं कारणों से देहरा कांग्रेस हार जाती है तो निश्चित रूप से मुख्यमंत्री के नेतृत्व को लेकर ऐसे सवाल उठेंगे जिन्हें हाईकमान भी नजरअन्दाज नहीं कर पायेगी।
मुख्यमंत्री की पत्नी कमलेश ठाकुर पहली बार कोई चुनाव लड़ रही है। संगठन में भी वह ऐसा कोई बड़ा नाम नहीं रही है जिसकी कोई अपनी अलग राजनीतिक पहचान बन पायी हो। इस नाते उनकी केवल एक ही पहचान है कि वह मुख्यमंत्री की पत्नी है। इससे अलग कमलेश ठाकुर ने अपने को देहरा की बेटी होने का भी भावनात्मक अस्त्र छोड़ा है। चुनावी मंचों से वह लगातार यह बोलना नहीं भूल रही है कि ध्याण को खाली हाथ नहीं भेजते। उसी के साथ उसने यह भी ऐलान किया है कि यदि नादौन को सुक्खू सरकार सौ रूपये देती है तो वह देहरा के लिये एक सौ एक लेकर आयेगी। देहरा में ही उनका और मुख्यमंत्री का कार्यालय होगा। वह यह सब कहकर देहरा के लोगों को आश्वस्त कर रही है कि चुनावों के बाद देहरा में उनकी लगातार उपलब्धता बनी रहेगी। लोगों को अपने कार्यों के लिये मुख्यमंत्री के पास जाने की आवश्यकता नहीं पड़ेगी। वह पूरी तरह इस चुनाव को भावनात्मक रंग दे रही है। होशियार सिंह के खिलाफ यह आरोप लगाया जा रहा है कि उन्होंने पन्द्रह माह के कार्यकाल में देहरा में विकास का एक भी काम नहीं किया है। कमलेश यह दावा कर रही है कि वह जीत कर देहरा में विकास की गंगा बहा देगी।
दूसरी और होशियार सिंह ने कमलेश के भावनात्मक कार्ड की जो काट लोगों में रखी है उससे यह चुनाव निश्चित रूप से रोचक और गंभीर हो गया है। देहरा की बेटी के नैरेटिव को बदलते हुये होशियार सिंह ने तथ्य सामने रखा है उनका मायका नलसूहा में है जो की जसवां परागपुर क्षेत्र में आता है। उनका ससुराल नादौन में है इस नाते वह देहरा की बेटी नहीं बल्कि नादौन की बहु है। होशियार सिंह स्वयं देहरा से हैं। पिछले दोनों चुनाव उन्होंने देहरा का बेटा होने के नाम से जीते हैं। इसी तर्क पर वह यह सवाल रख रहे हैं कि लोग घर के बेटे को चुनते हैं या नादौन की बहू को। इसी के साथ वह यह स्वीकार कर रहे हैं कि वह पन्द्रह माह में देहरा में कोई काम नहीं करवा पाये हैं क्योंकि सुक्खू सरकार ने देहरा को एक पैसा तक आवंटित नहीं किया। जब सरकार पूरी तरह पक्षपात करके चल रही थी तो ऐेसी व्यवस्था में विधायक बने रहने का कोई औचित्य नहीं रह जाता था। वह सवाल कर रहे हैं कि नादौन में अपने कुछ मित्रों के दायरे से बाहर न निकल पाने के कारण ही तो लोकसभा में उनकी हार हुई है। नादौन में काम किये होते तो हार क्यों होती। इस तरह भावनात्मक पलड़े पर होशियार सिंह कमलेश पर भारी पड़ते नजर आ रहे हैं। इसी तरह प्रदेश भाजपा के वरिष्ठतम नेता पूर्व मुख्यमंत्री शान्ता कुमार ने कमलेश ठाकुर को इस तरह उम्मीदवार बनाया जाना परिवारवाद का सबसे बड़ा उदाहरण करार दिया है। परिवारवाद के इस आरोप का दिल्ली से लेकर शिमला तक कोई कांग्रेस नेता जवाब नहीं दे पा रहा है। फिर कमलेश के चुनावी ब्यान इस आरोप को सिद्ध कर रहे हैं।
इस चुनाव में एक गंभीर पक्ष यह सामने आया है कि कमलेश ठाकुर के चुनाव शपथ पत्र को लेकर होशियार सिंह ने एक शिकायत एसडीएम देहरा के पास दायर कर रखी है। इसमें शायद भू-संपत्तियां को लेकर कुछ गंभीर आरोप है जो आगे चलकर बड़ा कानूनी मुद्दा बन सकते हैं। वैसे कमलेश ठाकुर के शपथ पत्र के मुताबिक वह अपने पति मुख्यमंत्री ठाकुर सुक्खविन्दर सिंह सुक्खू से ज्यादा अमीर हैं। यह चर्चा चल पड़ी है कि मुख्यमंत्री की पत्नी होने के क्या लाभ होते हैं। आपदा में मुख्यमंत्री ने 51 लाख दान देकर जो मिसाल कायम की थी उसे इन शपथ पत्रों के आईने में देखा जाने लगा है। क्योंकि कमलेश के शपथ पत्र के साथ मुख्यमंत्री का शपथ पत्र भी चर्चा में आ गया है। इस तरह जो चुनावी परिदृश्य अब बनता जा रहा है उससे कमलेश की एकतरफा जीत अब प्रश्नित होती जा रही है। क्योंकि कमलेश के अधिकांश चुनाव प्रचारक शिमला से हैं जिनका देहरा में अपना वोट भी नहीं है। ऐेसा शायद इसलिये है कि मुख्यमंत्री स्वयं नादौन-हमीरपुर से ज्यादा शिमला के हैं।