नेता प्रतिपक्ष अब सरकार गिरने की तारीखें नहीं बता रहे

Created on Tuesday, 23 July 2024 19:56
Written by Shail Samachar

शिमला/शैल। प्रदेश में हुए नौ विधानसभा उपचुनावों में छः पर जीत दर्ज करके कांग्रेस जिस तरह से नेता प्रतिपक्ष पूर्व मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर पर आक्रामक हुई है उससे प्रदेश के राजनीतिक गलियारों में अलग तरह की चर्चाएं चल पड़ी हैं। कांग्रेस का हर नेता यह तंज कस रहा है की जय राम अब सरकार गिरने की तारीखों की भविष्यवाणी नहीं कर रहे हैं। यह उपदेश दिया जा रहा है कि उन्हें सरकार को रचनात्मक सहयोग देना चाहिए। कांग्रेस यह नॉरेटिव उस समय प्रसारित कर रही है जब सरकार के वित्तीय संकट को लेकर हर दिन स्थितियां गंभीर होती जा रही है। मुख्यमंत्री और लोक निर्माण मंत्री दिल्ली जाकर प्रधानमंत्री, गृह मंत्री और भूतल परिवहन मंत्री से मिलकर विभिन्न मुद्दों में प्रदेश को वित्तीय सहायता देने की गुहार लगा चुके हैं। इस गुहार पर केंद्र से क्या मिलता है इसका पता आने वाले दिनों में लगेगा। यदि केंद्र से कोई अतिरिक्त सहायता नहीं मिल पाती है तो सरकार को अपने कर्मचारियों को वेतन और पैन्शन का नियमित भुगतान कर पाना कठिन हो जाएगा। इस वित्तीय संकट के लिए पूर्व सरकार को दोषी ठहराया जा रहा है। लेकिन यह दोष सिद्धांत के रूप से आगे नहीं बढ़ पा रहा है क्योंकि यह सरकार पूर्व सरकार के ऐसे कार्यों को चिन्हित नहीं कर पार्यी है जिन्हें अनावश्यक कर्ज लेकर पूरा किया गया हो और वास्तव में उनकी व्यवहारिक आवश्यकता ही नहीं थी।
एक ओर केंद्र से सहायता की गुहार लगाई जा रही है तो दूसरी और धनबल के सहारे ऑपरेशन लोटस चलाकर सुक्खू सरकार को गिराने के प्रयासों का आरोप लगाया जा रहा है। ऑपरेशन लोटस की जांच को जिस तेजी के साथ आगे बढ़ाया जा रहा है उसके दस्तावेजी प्रमाण यदि सुक्खू सरकार सही में खोज लायी और अदालती परीक्षा में प्रमाणित कर पायी तो राष्ट्रीय स्तर पर भाजपा और केंद्र सरकार की ऐसी फजियत होगी कि उसके नुकसान की भरपाई कर पाना भाजपा के लिए संभव नहीं रह जाएगा। इस परिप्रेक्ष में यदि वर्तमान राजनीतिक स्थितियों का निष्पक्ष आकलन किया जाये तो कुछ इस तरह के प्रश्न उभरते हैं। पहला प्रश्न आता है कि जब प्रदेश की वित्तीय स्थिति ठीक नहीं है तो यह सरकार अपने खर्चों पर अंकुश क्यों नहीं लगा पा रही है? इस समय मुख्य संसदीय सचिवों की व्यवहारिक रूप से आवश्यकता ही कहां है। इसी के साथ इतने सलाहकारों और ओएसडी की आवश्यकता कैसे है। इस समय हिमाचल भवन दिल्ली में आधा दर्जन से अधिक ऐसे लोग बिठा दिए गए हैं जिनकी वहां आवश्यकता ही नहीं है। सरकार जब तक अपने खर्चों पर अंकुश नहीं लगाएगी तब तक उसकी जन विश्वसनीयता नहीं बन पाएगी। कुशल राजनीतिक प्रबंधन से अर्जित की गई चुनावी सफलता विश्वसनीयता का पर्याय नहीं बन पाती है। यह एक स्थापित सच है। इसलिए उपचुनावों की जीत से वास्तविक समस्याएं हल नहीं हो जाती हैं।
इस समय इसी चुनावी जीत के दौरान ईडी और आयकर एजैन्सियों ने प्रदेश में दखल दिया है। जिन कारोबारियों के यहां छापेमारी हुई है वह ईडी के बुलावे पर सूत्रों के मुताबिक अगली जांच कारवाई में शामिल नहीं हो पाये हैं। मेडिकल भेज कर अगला टाइम मांगा जा रहा है। ऐसा शायद इसलिए हो रहा है कि आकाओं ने भरोसा दिलाया है कि सारा प्रबंध हो जाएगा। ऐसा वहां पर सुनने को मिल रहा है। जो कुछ छापेमारी में मिलने की चर्चाएं हैं उनके अनुसार इसका आकार बहुत बड़ा है। इसमें कुछ विभागों के अधिकारियों के स्तर पर ढील बरते जाने की भी चर्चाएं हैं। ऐसे में यह तय है कि जब ईडी ने छापेमारी करके रिकार्ड कब्जे में लिया तो उसको खंगालने के बाद ईडी आगे बढ़ेगी ही। यह भी स्पष्ट है कि जिस जमीन के राजस्व अन्दराज में ताबे हकूक बर्तन-बर्तनदारान दर्ज हो और जमीन गैर मुमकिन दरिया या खड्ड हो तो ऐसी जमीन की खरीद बेच स्वतः ही सवालों के घेरे में आ जाती है। इसलिए नादौन और हमीरपुर में हुई छापेमारी के अंतिम परिणाम गंभीर होंगे। उसकी आंच राजनेताओं तक पहुंचाने की संभावनाओं से इन्कार नहीं किया जा सकता। फिर राज्यसभा चुनाव में हुई क्रॉस वोटिंग के दौरान कांग्रेस के रिश्तों की संख्या पन्द्रह तक होने की चर्चाएं मीडिया में लंबे समय से उठती आ रही है। अभी मुख्य संसदीय सचिवों के मामले का फैसला उच्च न्यायालय से आना ही है। यह फैसला घोषित होने में जितना ज्यादा समय लग रहा है इसको लेकर उठ रही चर्चाओं का आकार भी उतना ही बढ़ता जा रहा है।
इस सबको एक साथ रखकर देखने से जो तस्वीर उभर रही है उसमें यह स्वभाविक होगा कि इस समय सबसे ज्यादा चिंताएं और चर्चाएं कांग्रेस के अपने अंदर दिल्ली से लेकर शिमला तक उठ रही होगी क्योंकि इसका हर तरह का पहला असर कांग्रेस पर ही होना है। यह एक ऐसी स्थिति बनती जा रही है जहां पर यदि भाजपा नेतृत्व भी बचाव में खड़ा हो जाए तो भी यह सब रुकेगा नहीं बल्कि अपनों का ध्यान बंटाने के लिए नेता प्रतिपक्ष पर तंज कसना और मंत्रिमंडल में फेरबदल की चर्चाएं चलाना एक ध्यान बंटाने की रणनीति से अधिक कुछ नहीं होगा। बल्कि यह संभव है कि कल को नेता प्रतिपक्ष और पूरा भाजपा नेतृत्व ईडी प्रकरण पर कारवाई तेज करके सिर्फ फैसले तक पहुंचाने की मांग करने लग जाये और तब सरकार के गिरने की तारीखों से स्थिति आगे निकल जाये। क्योंकि जिस मामले के दस्तावेज साक्ष्य एक से अधिक स्थानों पर उपलब्ध हो तो उसके परिणाम स्वतः ही गंभीर हो जाते हैं।