कर्मचारी आन्दोलन को हल्के से लेना घातक होगा

Created on Tuesday, 27 August 2024 18:55
Written by Shail Samachar

शिमला/शैल। सुक्खू सरकार ने सत्ता संभालते ही प्रदेश के हालात श्रीलंका जैसे होने की चेतावनी दी थी। प्रदेश की जनता ने इस चेतावनी पर कोई सवाल नहीं उठाये। सरकार ने इस चेतावनी का कवर लेकर प्रदेश की वित्तीय स्थिति सुधारने के लिये जो कदम उठाये उन कदमों के तहत मध्यम वर्ग को मिल रही सुविधाओं पर कटौती की जाने लगी। जो आज सस्ते राशन के दाम बढ़ाने तक पहुंच गयी है। इस कटौती के साथ ही प्रदेश पर कर्ज भार भी बढ़ने लगा। लेकिन इन सारे कदमों के साथ सरकार अपने खर्चों पर लगाम नहीं लगा पायी। सरकार के बड़े अधिकारियों के खिलाफ बड़े भ्रष्टाचार के आरोप लगे। लेकिन कोई जांच नहीं हुई। उल्टा जब मीडिया ने इन मामलों को उठाया तो मीडिया को ही डराने धमकाने का चलन शुरू हो गया। भ्रष्टाचार की जो शिकायतें मुख्यमंत्री के पास भी पहुंची उन पर भी कोई कारवाई नहीं हुई। कुल मिलाकर हालात यहां तक पहुंच गये की सरकार पर मित्रों की सरकार होने का तगमा लग गया। यह स्वभाविक है कि जब परिवार संकट में होता है तो सबसे पहले परिवार का मुखिया अपने खर्चों में कटौती करता है तब परिवार उसकी बात पर विश्वास करता है। लेकिन सुक्खू सरकार इस स्थापित नियम पर न चलकर कर्ज लेकर घी पीने के रास्ते पर चल पड़ी।
सरकार और कर्मचारी एक दूसरे का पूरक होते हैं। फिर आज तो कर्मचारियों का हर वर्ग संगठित है। कर्मचारियों में भी सचिवालय के कर्मचारी तो पूरे तंत्र का मूल होते हैं। क्योंकि सरकार का हर फैसला सचिवालय में ही शक्ल लेता है। सचिवालय का कर्मचारी रूल्स ऑफ बिजनेस का जानकार होता है। इस कर्मचारी को सरकार की वित्तीय स्थिति और फिजूल खर्ची दोनों की एक साथ जानकारी रहती है। जब सचिवालय के कार्यरत कर्मचारी यह देखता है कि अफसरशाही और राजनेताओं के खर्चों में तो कोई कटौती नहीं हो रही है बल्कि पहले से ज्यादा बढ़ गये हैं और उसके जायज देय हकों की अदायगी करने के लिये कठिन वित्तीय स्थिति का तर्क दिया जा रहा है। तब वह सारे हालात पर अलग से सोचने पर मजबूर हो जाता है। आज सचिवालय कर्मचारी संघ सरकार की कथनी और करनी के अन्तर देखकर अपनी मांगों के लिये आवाज उठाने पर विवश हुआ है। सचिवालय के कर्मचारियों के पास हर मंत्री और अधिकारी की तथ्यात्मक जानकारी रहती है। इसी कर्मचारी ने सरकार की फजूल खर्ची का आंकड़ों सहित खुलासा आम आदमी के सामने रखा है। इसी कर्मचारी के माध्यम से यह बाहर आया है कि आपदा राहत का 114 करोड़ रूपया लैप्स हो गया है। आपदा राहत के नाम पर प्रदेश सरकार केंद्र पर किस तरह हमलावर थी यह पूरा प्रदेश जानता है। यदि 114 करोड़ लैप्स होने का खुलासा सही है तो इससे सरकार की विश्वसनीयता पर गंभीर प्रश्न चिन्ह लग जाता है।
मंत्रियों के कार्यालयों पर करोड़ों रुपए खर्च करने का खुलासा इसी सचिवालय कर्मचारियों ने किया है। कमरे के फोटो तक बाहर आये हैं। जब मंत्रियों के कार्यालय पर खर्च हो रहा है तो उसी कड़ी में मुख्यमंत्री कार्यालय पर भी 19 करोड़ खर्च करने का खुलासा इसी सचिवालय कर्मचारी संघ ने सामने रखा है। महंगी गाड़ियों और दूसरे खर्चों पर पूरी बेबाकी से इन कर्मचारियों ने खुलासा सामने रखा है। जो कुछ सरकार की फजूल खर्ची को लेकर कहा गया है वह पूरे प्रदेश में हर आदमी तक पहुंच गया है। सरकार की ओर से फिजूल खर्ची के आरोपों पर कोई स्पष्टीकरण सामने नहीं आया है। ऐसा पहली बार हुआ है कि कर्मचारी आंदोलन की शुरुआत सचिवालय कर्मचारी संघ से हुई है। लेकिन सरकार ने वार्ता के लिये सचिवालय कर्मचारियों को न बुलाकर दूसरे कर्मचारी नेताओं को बुलाया है। क्या सरकार इस तरह कर्मचारियों को विभाजित कर पायेगी इसका पता तो आने वाले दिनों में लगेगा। सचिवालय कर्मचारी संघ विधानसभा सत्र के बाद किस तरह की रणनीति अपनाते हैं यह भी आने वाले दिनों में स्पष्ट हो जायेगा। लेकिन कर्मचारियों ने सरकार की फिजूल खर्ची पर आंकड़ों सहित जो आरोप लगाये हैं वह पूरे प्रदेश में चर्चा का विषय बन गये हैं। यदि सरकार ने अपने खर्चों पर क्रियात्मक रूप से कटौती न की तो इसके परिणाम गंभीर हो सकते हैं।