क्या नड्डा का ब्यान कंगना के आरोपों का प्रमाण है?

Created on Monday, 07 October 2024 03:52
Written by Shail Samachar
जब सरकार 2024-25 में प्रति व्यक्ति खर्च ही कम कर रही है तो फिर वित्तीय संकट क्यों?
क्या सरकार को बजट में दिखाया केन्द्रिय हिस्सा नहीं मिल रहा है 
शिमला/शैल। सुखविंदर सुक्खू के नेतृत्व में जब कांग्रेस ने प्रदेश की सत्ता संभाली थी तब प्रदेश की जनता को सरकार की वित्तीय स्थिति पर चेतावनी देते हुए यहां के हालात श्रीलंका जैसे होने की बात की थी। इस चेतावनी के बाद यह सरकार प्रदेश की वित्तीय स्थिति पर श्वेत पत्र लायी और उसमें पूर्व की जयराम सरकार पर वित्तीय कुप्रबंधन का आरोप लगाया। श्रीलंका की स्थिति कर्ज लेकर घी पीने की नीति पर चलने से हुई यह एक सार्वजनिक सच है। आज हिमाचल भी प्रतिमाह कर्ज लेकर काम चला रहा है। प्रदेश भाजपा अध्यक्ष डॉ. बिन्दल के अनुसार सुक्खू सरकार अब तक 28000 करोड़ का कर्ज ले चुकी है। राज्य सरकार के मुताबिक उसको केंद्र से वांच्छित सहायता नहीं मिल रही है। लेकिन भाजपा नेता केन्द्र द्वारा दी गयी सहायता के आंकड़े सार्वजनिक रखते हुए राज्य सरकार के आरोपों को नकार चुकी है। मण्डी से भाजपा सांसद कंगना रनौत ने केन्द्र द्वारा प्रदेश को दी गयी आपदा राहत में राज्य सरकार द्वारा घपला करने का आरोप लगाने के बाद राज्य सरकार द्वारा लिये जा रहे कर्ज के निवेश पर सोनिया गांधी तक पर आरोप लगा दिये हैं। प्रदेश कांग्रेस और राज्य सरकार कंगना के आरोपों का जवाब नहीं दे पाये हैं। कंगना ने सोनिया गांधी पर दिये ब्यान को वापिस नहीं लिया है और प्रदेश कांग्रेस या सरकार कंगना के खिलाफ कोई कारवाई नहीं कर पायी है। अब भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष जे.पी. नड्डा ने जिस तर्ज पर राज्य सरकार के खिलाफ आरोप लगाये हैं उससे एक तरह से कंगना के ही आरोपों की पुष्टि हो जाती है। नड्डा के ब्यान पर पूरी सरकार में प्रतिक्रिया हुई है लेकिन नड्डा द्वारा रखे गये सहायता आंकड़ों का कोई खण्डन सरकार के मंत्री नहीं कर पाये हैं। नड्डा का यह कहना कि केन्द्र के सहयोग के बिना राज्य सरकार एक दिन भी नहीं चल सकती अपने में बड़ा आक्षेप और संकेत है। बल्कि एक तरह से इसे चुनावी भाषण भी कहा जा सकता है।
राज्य सरकार प्रदेश के कर्मचारियों को पुरानी पैन्शन योजना बहाल करने को चुनावों में दी गारंटीयां पूरी करने की दिशा में एक बड़ा कदम करार दे रही है। लेकिन ओ.पी.एस का बोझ तो तब पड़ेगा जब 2005 में लगे कर्मचारी रिटायर होना शुरू होंगे। अभी तो इस सरकार पर ओ.पी.एस को बोझ पड़ा ही नहीं है। महिलाओं को 1500 प्रतिमाह देने में पात्रता पर जितने राईडर लगा दिये गये हैं उससे इसकी संख्या आधे से भी कम रह गयी है बल्कि कुछ से रिकवरी करने तक की बातें हो रही हैं। सरकार गारंटीयां पूरी करने को लेकर जितने दावे कर रही हैं उनकी जमीनी हकीकत कुछ और ही है। लेकिन वित्तीय स्थिति सुधारने को लेकर जिस तरह से आम आदमी पर सामान्य सेवाओं और उपभोक्ता वस्तुओं पर टैक्स/शुल्क बढ़ाये जा रहे हैं उसका अब आम आदमी पर नकारात्मक प्रभाव पड़ना शुरू हो गया है। सरकार ने संसाधन बढ़ाने के उपाय सुझाने के लिये एक मंत्री स्तर की कमेटी भी बना रखी है। लेकिन इस कमेटी की बैठकंे कब हुई और उनमें क्या सुझाव आये यह सार्वजनिक नहीं हो पाया है। बल्कि यह आरोप लगना शुरू हो गया है कि इस सरकार को कुछ अधिकारी ही चला रहे हैं जिनकी निष्ठायें पूर्व सरकार के साथ रही हैं। यह आरोप टॉयलैट टैक्स की अधिसूचना जारी होने और उसके वापस लिये जाने से पुख्ता हो जाता है।
इस परिदृश्य में यह सवाल बड़ा अहम हो जाता है कि जब बजट पारित किया गया तो उसमें इस तरह का कोई संकेत नहीं मिलता कि आने वाले दिनों में जनता को यह सब कुछ झेलना पड़ेगा। बजट में पूरी स्पष्टता से बताया गया है कि कहां से कितना पैसा आयेगा और कहां पर कितना खर्च होगा। इसके लिये सरकार के कुछ दस्तावेज पाठकों के सामने रखे जा रहे हैं ताकि सही स्थिति का आम पाठक स्वयं आकलन कर पायें। क्योंकि हर खर्च का ब्योरा इसमें दर्ज रहता है। इसलिये जब बजट में इस तरह का संकेत न हो कि वेतन और पैन्शन का समय पर भुगतान नहीं हो पायेगा और आगे चलकर ऐसा हो जाये तो इससे बजट की विश्वसनीयता पर ही प्रश्न चिन्ह लग जाता है। ऐसा भी सामने नहीं आया है कि बजट में केन्द्र से केन्द्रीय शुल्क और सहायता अनुदान के रूप में जो आना दिखाया गया है वह न आया हो। फिर सरकार ने 2023-24 में प्रति व्यक्ति 70229 रूपये खर्च किये हैं लेकिन 2024-25 में यह सिर्फ 70189 रुपये रह गया है। जबकि 2023-24 में प्रति व्यक्ति सरकार को 53892 रुपए का राजस्व प्राप्त हुआ जो 2024-25 में बढ़कर 55891 पर होने का अनुमान है। 2024-25 में सरकार प्रति व्यक्ति कमा ज्यादा रही है और खर्च कम कर रही है। इन बजट दस्तावेजों को सामने रखकर यह सवाल बड़ा हो जाता है कि जब बजट के आकलनों में कहीं कोई वित्तीय संकट का संकेत नहीं है तो फिर वेतन भत्ते विलंबित करने की स्थिति क्यों आयी? क्या सरकार ऐसा कोई खर्च कर रही है जो राज्य की समेकित निधि का हिस्सा नहीं है?