क्या यह आयोजन सरकार और संगठन की एकजुटता का संदेश दे पाया है?

Created on Sunday, 15 December 2024 04:04
Written by Shail Samachar

शिमला/शैल। सुक्खू सरकार ने सत्ता में दो वर्ष पूरे होने पर बिलासपुर में राज्य स्तरीय रैली का आयोजन किया है। इस रैली में तीस हजार लोगों के आने का लक्ष्य तय किया था। इस लक्ष्य के आईने में यह रैली बहुत सफल रही मानी जा सकती है। फिर इन दो वर्षों में सुक्खू सरकार जिस तरह के राजनीतिक वातावरण का सामना करते हुए इस मुकाम तक पहुंची है उसके आईने में भी इस आयोजन को एक सफल आयोजन करार दिया जा सकता है। लेकिन क्या इस रैली के बाद कांग्रेस संगठन और कांग्रेस सरकार अपने कार्यकर्ताओं तथा रैली में आई हुई जनता को अपनी एकजुटता का सन्देश दे पाये हैं ? क्या इस आयोजन के बाद विपक्ष के पास सरकार के खिलाफ कोई सवाल नहीं रह गये हैं जिनका जवाब आना शेष हो ? यह सवाल इसलिये महत्वपूर्ण हो जाते हैं क्योंकि इन दो वर्षों में प्रदेश सरकार पहले दिन से ही केन्द्र पर राज्य को वांछित सहयोग न देने का आरोप लगाती आयी है और विपक्ष सरकार को गारंटीयों के नाम पर घेरती आयी है। इस रैली में कांग्रेस हाईकमान की ओर से कोई भी नेता शामिल नहीं हो पाया है जबकि आमन्त्रण सारे शीर्ष नेताओं को था। इस आयोजन के मुख्यअतिथि प्रदेश प्रभारी राजीव शुक्ला थे जबकि यह आयोजन प्रभारी होने के नाते उनके अपने कार्यकलाप की भी परीक्षा था।
इन बिन्दुओं पर यदि इस आयोजन का मूल्यांकन किया जाये तो इस अवसर पर रैली मैदान को लेकर जो सवाल पूर्व मंत्री रामलाल ठाकुर ने उठाये हैं वह अपने में बहुत कुछ ब्यान कर जाते हैं। इस आयोजन में जिस तरह से प्रदेशाध्यक्ष प्रतिभा सिंह को स्टेज पर बोलते हुये रोका गया उससे उन आशंकाओं को स्वतः ही बल मिल जाता है कि होली लॉज को डिसलॉज करने का प्रयास किया जा रहा है। यहां यह उल्लेखनीय हो जाता है कि जब प्रतिभा सिंह ने भाजपा सरकार के कार्यकाल में मण्डी के लोकसभा का उपचुनाव जीता था तो वह स्व.वीरभद्र सिंह की विरासत के नाम पर ही संभव हो पाया था। इसी विरासत के कारण विधानसभा चुनावों के समय भी किसी एक को नेता घोषित नहीं किया गया था। बाद में मुख्यमंत्री पद के लिये शायद सुखविंदर सिंह सुक्खू इसलिये नामित हुये क्योंकि वही एकमात्र नेता थे जो कांग्रेस संगठन की तीनों इकाइयों छात्र, युवा और मुख्य संगठन के अध्यक्ष रह चुके थे। लेकिन सरकार बनने के बाद मुख्यमंत्री पर जिस तरह से अपने ही मित्रों के गिर्द केन्द्रित होकर रह जाने के आरोप लगने शुरू हुये उनके कारण वीरभद्र कार्यकाल में सक्रिय रहे कार्यकर्ता मुख्य धारा से बाहर होते चले गये। लेकिन जिन मित्रों को मुख्यमंत्री आगे लाये वह न तो सरकार में ही कोई महत्वपूर्ण योगदान दे पाये और न ही मुख्यमंत्री के संकट मोचक हो पाये।
इस रैली के बाद अब तक उपेक्षित चले आ रहे कार्यकर्ताओं को स्व. वीरभद्र सिंह के नाम पर इकट्ठे होने का अवसर मिल जायेगा। क्योंकि विपक्ष ने जिस तरह का सौ पन्नों का सरकार का काला चिट्ठा राज्यपाल को सौंपा है उससे भाजपा के हर कार्यकर्ता से लेकर नेता तक हर आदमी के पास सरकार के खिलाफ सवाल उठाने के लिये मैटिरियल मिल जायेगा। क्योंकि इस कच्चे चिट्ठे में लगभग सभी मंत्रियों और विभागों के खिलाफ कुछ न कुछ दस्तावेजी प्रमाणों के साथ दर्ज है। आने वाले दिनों में इस कच्चे चिट्ठे के आरोप हर दिन चर्चा का विषय रहेंगे। यह देखना दिलचस्प होगा कि मुख्यमंत्री के मित्र इस काले चिट्ठे का जवाब कैसे देते हैं। काले चिट्ठे में जिस तरह के आरोप दर्ज हैं उनसे यह संभावना बलवती हो गई है कि शायद कुछ मामलों में सीबीआई तक सक्रिय हो जाये। ई डी पहले ही सक्रिय है। इस परिदृश्य में रैली के भरे मंच से संगठन और सरकार में तीव्र मतभेद होने का खुला संदेश जाना किसी भी गणित से सरकार के लिये हितकर नहीं हो सकता। अब इस मामले की प्रदेश प्रभारी किस तरह की रिपोर्ट हाईकमान के सामने रखते हैं और हाईकमान उसका कैसे संज्ञान लेता है इस पर सबकी निगाहें लगी हुई हैं। क्योंकि जिस तरह की वित्तीय स्थितियों से प्रदेश गुजर रहा है और प्रधानमंत्री स्वयं इसको मुद्दा बना चुके हैं उसके आईने में इस रैली का औचित्य स्वयं ही सवालों में आ जाता है। नेता प्रतिपक्ष ने इस आयोजन पर सवाल उठाने शुरू कर ही दिये हैं।