दो वर्ष के बाद मुख्यमंत्री सुक्खू उनकी सरकार और कांग्रेस पार्टी कहां खड़े है?

Created on Friday, 27 December 2024 19:49
Written by Shail Samachar

शिमला/शैल। दो वर्ष के कार्यकाल के बाद मुख्यमंत्री सुखविंदर सिंह सुक्खू स्वयं उनकी सरकार और कांग्रेस पार्टी कहां खड़े हैं यह सवाल प्रदेश के जन मानस में चर्चा का विषय बन गये हैं। क्योंकि कांग्रेस ने सत्ता में आने के लिये विधानसभा चुनाव में जनता को दस गारंटीयां दी थी। मुख्यमंत्री के मुताबिक बहुत सी गारंटीयों पर अमल हो चुका है और कुछ पर अब अमल के आदेश कर दिये गये हैं। मुख्यमंत्री और उनकी सरकार के इन दावों का व्यवहारिक सच जनता जानती है जो इससे प्रत्यक्षतः प्रभावित हो रही है। इसलिये गारंटीयों की व्यवहारिकता पर कुछ भी कहना ज्यादा संगत नहीं होगा। अभी सरकार ने दो वर्ष पूरे होने पर एक कार्यक्रम का आयोजन किया। इस आयोजन के बाद विधानसभा का चार दिवसीय शीत सत्र धर्मशाला के तपोवन में हुआ। इस सत्र में जो विधेयक सरकार लायी और पारित किये यदि उन पर ही निष्पक्ष नजर डाली जाये तो सरकार का सारा व्यवहारिक पक्ष खुलकर सामने आ जाता है।
एक विधेयक लाकर राधा स्वामी सत्संग ब्यास को भोटा स्थित जमीन अपनी सहयोगी संस्था के नाम ट्रांसफर करने का मार्ग पर प्रशस्त करने के लिए टेनेंसी और भू-सुधार अधिनियम में संशोधन कर दिया गया। राधा स्वामी सत्संग ब्यास ने यह ट्रांसफर की सुविधा इसलिये मांगी थी कि उन्हें अढ़ाई करोड़ का जीएसटी देने से छूट मिल जाये। वित्तीय संकट से जूझती सरकार ने नौ सौ सत्संग घरों और हजारों अन्याइयों के वोट बैंक को सामने रखते हुये संशोधन को अंजाम दे दिया। अब यह संशोधन राष्ट्रपति की स्वीकृति के लिये जायेगा तब दिल्ली में यह सामने आयेगा की अढ़ाई करोड़ का वार्षिक नुकसान झेलते हुये यह संशोधन किया गया है। मुख्यमंत्री ने इसी शीतकालीन सत्र में भ्रष्टाचार के खिलाफ एक कड़ा विधेयक लाने का आश्वासन दिया है। लेकिन इसी आश्वासन के साथ भ्रष्टाचार निरोधक अधिनियम में संशोधन करते हुये भ्रष्टाचार के किसी भी मामले में सरकार के कर्मचारियों/अधिकारियों की गिरफ्तारी पर सरकार की अनुमति के बिना रोक लगा दी है। पहले यह अनुमति अदालत में चार्जशीट दायर के लिये वांछित होती थी। अब मामले की जांच के दौरान ही गिरफ्तारी की संभावना पर ही यह राइडर लगा दिया गया है। यह संशोधन भी स्वीकृति के लिये राष्ट्रपति के पास जायेगा। इस संशोधन से सरकार के भ्रष्टाचार के खिलाफ दावों का सच सामने आ जाता है। इस सत्र में कर्मचारियों की नियुक्ति और सेवा शर्तों का विधेयक पारित किया गया है। यह विधेयक दिसम्बर 2003 से लागू माना जायेगा। इससे प्रदेश में कार्यरत करीब चालीस हजार अनुबन्ध कर्मचारी सीधे प्रभावित होंगे। इस अधिनियम को उच्च न्यायालय में चुनौती मिलने की पूरी संभावना है। पंजाब एवं हरियाणा उच्चतम न्यायालय पंजाब पुनर्गठन के बाद ही हरियाणा सरकार द्वारा लाये गये इसी तरह के कानून को निरस्त कर चुका है। संभव है कि राज्यपाल ही इस अधिनियम को अपने पास ही रोक ले। सर्वाेच्च न्यायालय के फैसले को निष्प्रभावी बनाने के लिये पारित किये गये इस अधिनियम का प्रभाव कर्मचारियों और उनके अभिभावकों पर क्या पड़ेगा इसका अनुमान लगाया जा सकता है।
यह संशोधन और अधिनियम सरकार पारित कर चुकी है। इससे सरकार के सारे दावों का सच उजागर हो जाता है। सरकार ने संशाधन बनाने के नाम पर टैक्स लगाने और शुल्क बढ़ाने का कोई भी संभव साधन नहीं छोड़ा है। प्रदेश से बाहर अपनी छवि रखने के लिये और हाईकमान को प्रभावित करने के लिये सरकार ने करोड़ों रुपए प्रचार माध्यमों पर खर्च किये हैं। इससे हाईकमान तो प्रभावित हो सकती है लेकिन प्रदेश की भुक्त भोगी जनता नहीं। इस शीत सत्र में पारित किये गये इन संशोधनों से सरकार का सारा सच स्वतः ही सामने आ जाता है। फिर इसी वर्ष राज्यसभा चुनाव के दौरान जिस तरह से कांग्रेस के छः विधायक पार्टी छोड़कर भाजपा में शामिल हो गये राज्यसभा का चुनाव कांग्रेस हार गयी। इस हार के बाद जिस तरह का घटनाक्रम प्रदेश की राजनीति में घटा है उससे स्थितियां और गंभीर होती चली गयी है।
कांग्रेस से निकले छः विधायकों ने जिस तरह से मुख्यमंत्री को घेरा है उसका परिणाम हमीरपुर नादौन में ईडी और आयकर की छापेमारी तक पहुंच गया है। नादौन के दो लोग इसमें ईडी ने गिरफ्तार कर लिये है। कुछ और गिरफ्तारी की तलवार लटकी हुई है। गिरफ्तार हुये लोगों में से ज्ञानचंद चौधरी मुख्यमंत्री का निकटस्थ कहा गया। इस निकटस्थता पर इसी शीत सत्र में मुख्यमंत्री ने सदन में कहा कि ज्ञानचंद विधानसभा में तो उनका समर्थक है परन्तु लोकसभा में अनुराग ठाकुर का समर्थक है। अनुराग ने इस पर कोई प्रतिक्रिया जारी नहीं की है। लेकिन इस सत्र में जिस तरह से नादौन में एचआरटीसी के ई-बस स्टैंड के लिये 70 कनाल जमीन की खरीद बेच का मामला उठा है। उसके दस्तावेज जिस दिन सार्वजनिक रूप से सामने आ जाएंगे तब इस मामले में कई कठिनाइयां उठ खड़ी होगी यह तय है। इसी तरह भाजपा द्वारा राज्यपाल को सौंपे काले चिट्ठे में मुख्यमंत्री के नाम 770 कनाल जमीन होने का मामला सामने आया है। इस मामले का राजस्व रिकॉर्ड और अदालती फैसलों के दस्तावेज सार्वजनिक रूप से सामने आने पर बहुत लोगों को दिक्कतों का सामना करना पड़ेगा। इस वस्तुस्थिति में यदि सरकार और कांग्रेस पार्टी का आकलन किया जाये तो दोनों के लिये स्थितियां सुखद नहीं है। लेकिन मुख्यमंत्री के लिये अपने स्तर पर भी स्थितियां सुखद नहीं है। क्योंकि कांग्रेस से निकले हुये छः विधायकों के लिये मुख्यमंत्री के खिलाफ खोले मोर्चे को अन्तिम परिणाम तक पहुंचाना आवश्यक है। इन लोगों की लड़ाई में भाजपा के राष्ट्रीय नेतृत्व को अपनी विश्वसनीयता स्थापित करने के लिये इन लोगों का पूरा साथ देना राजनीतिक आवश्यकता बन चुका है।