शिमला/शैल। रेरा के अध्यक्ष और सदस्यों के पद भरने के लिये प्रक्रिया शुरू हो गई है इस आश्य का विज्ञापन जारी होने के बाद इसके लिये आवेदन आने शुरू हो गये हैं। हिमाचल में अभी तक रेरा के अध्यक्ष पद पर पूर्व मुख्य सचिव ही नियुक्त रहे हैं। इस बार भी इसमें अपवाद होने की संभावना बहुत कम है क्योंकि वर्तमान मुख्य सचिव भी इसके लिए आवेदक हो गये हैं। लेकिन इस बार यह चयन सरकार के स्वयं के लिये एक परीक्षा बन चुका है। वैसे तो सरकार के लिये लोकलाज कोई मायने नहीं रखती है। परन्तु जनता में सरकार और सत्ता रूढ़दल के लिये यह चयन ऐसे सवाल खड़े कर जायेगा जिनका प्रभाव दोनों की सेहत के लिए नुकसानदेह सिद्ध होगा। क्योंकि वर्तमान मुख्य सचिव आईएनएक्स मीडिया मामले में पूर्व केंद्रीय मंत्री पी.चिदम्बरम के साथ सह अभियुक्त हैं ंऔर यह मामला अभी तक सीबीआई कोर्ट में लम्बित चल रहा है। मुख्य सचिव ने इस मामले में हर बार व्यक्तिगत रूप से हाजिर होने में छूट ले रखी है। लेकिन यह छूट अदालत की अनुकंपा पर निर्भर है जिसे अदालत बिना नोटिस दिए रद्द भी कर सकती है। फिर केन्द्र के क्रमिक विभाग की 9 अक्तूबर 2024 की अधिसूचना के मुताबिक जिस भी अधिकारी/कर्मचारी के खिलाफ किसी भी अदालत में कोई आपराधिक मामला होगा उसे न तो कोई संवेदनशील पोस्टिंग दी जा सकती है और न ही सेवानिवृत्ति के बाद पुनर्नियुक्ति। किसी भी नियुक्ति के लिये विजिलैन्स से अनापत्ति प्रमाण पत्र लेना अनिवार्य होता है। राज्य सरकार के अधिकार क्षेत्र में आने वालों के लिये स्टेट विजिलैन्स और अखिल भारतीय सेवा अधिकारियों के लिये केंद्र के क्रामिक विभाग के माध्यम से यह अनापत्ति प्रमाण पत्र लेना होता है। वैसे राज्य सरकार के क्रामिक विभाग के पास भी यह सूचना उपलब्ध है। फिर एक बार अतुल शर्मा ने भी इस बारे में राज्य सरकार के सारे संबद्ध लोगों को पत्र लिखकर सचेत किया है। अब यह देखना दिलचस्प होगा कि प्रदेश सरकार केन्द्र की अधिसूचना को नजरअन्दाज करने का कितना साहस दिखाती है। क्योंकि केन्द्र के निर्देशों के मुताबिक ऐसे अधिकारी को सेवानिवृत्ति पर मिलने वाले पैन्शन आदि के लाभों पर भी प्रश्न चिन्ह लग जाता है।
इसी के साथ पिछले दिनों सर्वाेच्च न्यायालय ने भी रेरा के कामकाज पर कड़ी आपत्ति जताते हुये भारती जगत जोशी बनाम भारतीय रिजर्व बैंक और अन्य मामले में यह टिप्पणी की है कि हम रेरा के बारे में बात नहीं करना चाहते। यह उन नौकरशाहों के लिये पुनर्वास केन्द्र बन गया है जिन्होंने अधिनियम की पूरी योजना को ही असफल कर दिया है। सर्वाेच्च न्यायालय की यह टिप्पणी अपने में ही बहुत गंभीर है। फिर हिमाचल में भू-सुधार अधिनियम की धारा 118 के तहत गैर कृषकों को हिमाचल में जमीन खरीदने के लिये सरकार की पूर्व अनुमति वान्छित है। गैर कृषक अन्यथा प्रदेश में जमीन नहीं खरीद सकता। इस प्रतिबंध के बावजूद हिमाचल में रेरा के पास दो सौ से अधिक बिल्डर लिस्टिड हैं और शायद इससे ज्यादा दूसरे हैं जो रेरा की सूची में नहीं हैं। फिर हिमाचल में रेरा के धन से एचपीएमसी से लाखों का सेब खरीदकर प्रदेश से बाहर उपहार स्वरूप भेजा गया है। उससे सर्वाेच्च न्यायालय की टिप्पणी को ही बल मिलता है। इससे प्राधिकरण के कामकाज पर गंभीर सवाल खड़े हो जाते हैं। अब जब अतुल शर्मा ने वाकायदा शिकायत भेज कर इस पर सरकार का ध्यान आकर्षित किया है तब स्थिति और भी गंभीर हो जाती है। क्योंकि चयन प्रक्रिया में प्रदेश उच्च न्यायालय की अहम भूमिका है। अतुल शर्मा की शिकायत के बाद रेरा की नियुक्तियों पर लगी निगाहें
क्या सरकार केन्द्र की अधिसूचना को नजरअन्दाज कर पायेगी
रेरा द्वारा लाखों के सेब खरीदना सवालों में
शिमला/शैल। रेरा के अध्यक्ष और सदस्यों के पद भरने के लिये प्रक्रिया शुरू हो गई है इस आश्य का विज्ञापन जारी होने के बाद इसके लिये आवेदन आने शुरू हो गये हैं। हिमाचल में अभी तक रेरा के अध्यक्ष पद पर पूर्व मुख्य सचिव ही नियुक्त रहे हैं। इस बार भी इसमें अपवाद होने की संभावना बहुत कम है क्योंकि वर्तमान मुख्य सचिव भी इसके लिए आवेदक हो गये हैं। लेकिन इस बार यह चयन सरकार के स्वयं के लिये एक परीक्षा बन चुका है। वैसे तो सरकार के लिये लोकलाज कोई मायने नहीं रखती है। परन्तु जनता में सरकार और सत्ता रूढ़दल के लिये यह चयन ऐसे सवाल खड़े कर जायेगा जिनका प्रभाव दोनों की सेहत के लिए नुकसानदेह सिद्ध होगा। क्योंकि वर्तमान मुख्य सचिव आईएनएक्स मीडिया मामले में पूर्व केंद्रीय मंत्री पी.चिदम्बरम के साथ सह अभियुक्त हैं ंऔर यह मामला अभी तक सीबीआई कोर्ट में लम्बित चल रहा है। मुख्य सचिव ने इस मामले में हर बार व्यक्तिगत रूप से हाजिर होने में छूट ले रखी है। लेकिन यह छूट अदालत की अनुकंपा पर निर्भर है जिसे अदालत बिना नोटिस दिए रद्द भी कर सकती है। फिर केन्द्र के क्रमिक विभाग की 9 अक्तूबर 2024 की अधिसूचना के मुताबिक जिस भी अधिकारी/कर्मचारी के खिलाफ किसी भी अदालत में कोई आपराधिक मामला होगा उसे न तो कोई संवेदनशील पोस्टिंग दी जा सकती है और न ही सेवानिवृत्ति के बाद पुनर्नियुक्ति। किसी भी नियुक्ति के लिये विजिलैन्स से अनापत्ति प्रमाण पत्र लेना अनिवार्य होता है। राज्य सरकार के अधिकार क्षेत्र में आने वालों के लिये स्टेट विजिलैन्स और अखिल भारतीय सेवा अधिकारियों के लिये केंद्र के क्रामिक विभाग के माध्यम से यह अनापत्ति प्रमाण पत्र लेना होता है। वैसे राज्य सरकार के क्रामिक विभाग के पास भी यह सूचना उपलब्ध है। फिर एक बार अतुल शर्मा ने भी इस बारे में राज्य सरकार के सारे संबद्ध लोगों को पत्र लिखकर सचेत किया है। अब यह देखना दिलचस्प होगा कि प्रदेश सरकार केन्द्र की अधिसूचना को नजरअन्दाज करने का कितना साहस दिखाती है। क्योंकि केन्द्र के निर्देशों के मुताबिक ऐसे अधिकारी को सेवानिवृत्ति पर मिलने वाले पैन्शन आदि के लाभों पर भी प्रश्न चिन्ह लग जाता है।
इसी के साथ पिछले दिनों सर्वाेच्च न्यायालय ने भी रेरा के कामकाज पर कड़ी आपत्ति जताते हुये भारती जगत जोशी बनाम भारतीय रिजर्व बैंक और अन्य मामले में यह टिप्पणी की है कि हम रेरा के बारे में बात नहीं करना चाहते। यह उन नौकरशाहों के लिये पुनर्वास केन्द्र बन गया है जिन्होंने अधिनियम की पूरी योजना को ही असफल कर दिया है। सर्वाेच्च न्यायालय की यह टिप्पणी अपने में ही बहुत गंभीर है। फिर हिमाचल में भू-सुधार अधिनियम की धारा 118 के तहत गैर कृषकों को हिमाचल में जमीन खरीदने के लिये सरकार की पूर्व अनुमति वान्छित है। गैर कृषक अन्यथा प्रदेश में जमीन नहीं खरीद सकता। इस प्रतिबंध के बावजूद हिमाचल में रेरा के पास दो सौ से अधिक बिल्डर लिस्टिड हैं और शायद इससे ज्यादा दूसरे हैं जो रेरा की सूची में नहीं हैं। फिर हिमाचल में रेरा के धन से एचपीएमसी से लाखों का सेब खरीदकर प्रदेश से बाहर उपहार स्वरूप भेजा गया है। उससे सर्वाेच्च न्यायालय की टिप्पणी को ही बल मिलता है। इससे प्राधिकरण के कामकाज पर गंभीर सवाल खड़े हो जाते हैं। अब जब अतुल शर्मा ने वाकायदा शिकायत भेज कर इस पर सरकार का ध्यान आकर्षित किया है तब स्थिति और भी गंभीर हो जाती है। क्योंकि चयन प्रक्रिया में प्रदेश उच्च न्यायालय की अहम भूमिका है। अतुल शर्मा ने जो शिकायत सरकार को भेजी है उसे पाठकों के सामने रखा जा रहा है ताकि सरकार के बारे में पाठक अपनी एक निष्पक्ष राय बना सके।