क्या "असली भाजपा" व्यक्तिगत रोष का प्रतिफल है
- Details
-
Created on Monday, 10 March 2025 05:29
-
Written by Shail Samachar
- क्या यह रोष समय आने पर स्वतः ही शांत हो जायेगा
प्रदेश भाजपा का अगला अध्यक्ष कौन होगा? क्या वर्तमान अध्यक्ष को ही फिर से जिम्मेदारी मिल जायेगी या कोई नया अध्यक्ष चुना जायेगा? नया अध्यक्ष महिला होगी या पुरुष? प्रदेश अध्यक्ष का चयन टलता क्यों जा रहा है? भाजपा को लेकर यह सवाल लम्बे समय से चर्चा में चल रहा है। इन सवालों का जवाब आने से पहले ही भाजपा में पनपता रोष मुखर होकर सामने आ गया है। भाजपा में इस मुखरता को आकार दिया है पूर्व मंत्री रमेश धवाला ने। उन्होंने रुष्ट भाजपाइयों को इकट्ठा करके इस रोष को "असली भाजपा" का नाम दिया है। "असली भाजपा" का नाम देने से ही यह सामने आ जाता है कि यह रोष भाजपा की विचारधारा से असहमति होने का परिणाम नहीं है। बल्कि कुछ नेताओं के साथ व्यक्तिगत मतभेदों का परिणाम है। तय है कि व्यक्तिगत मतभेद जितनी तीव्रता से आकार लेते हैं उसी तीव्रता के साथ समय आने पर शांत भी हो जाते हैं। इस रोष के आकार लेने से यह स्पष्ट हो जाता है कि वर्तमान में प्रदेश भारी गुटबन्दी का शिकार है। क्योंकि प्रदेश भाजपा में कांग्रेस के कार्यकारी अध्यक्ष हर्ष महाजन जब भाजपा में शामिल हुये थे तब भाजपा के किसी भी छोटे-बड़े नेता ने उनके विरोध में कुछ नहीं कहा था। लेकिन हर्ष महाजन जब भाजपा में राज्यसभा का उम्मीदवार बन गये और कांग्रेस में तोड़फोड़ करके जीत भी हासिल कर गये तब उनके विरोध में स्वर उभरने लगे। पूर्व मंत्री रमेश धवाला रमेश ने तब यह आरोप लगाकर अपना विरोध प्रकट किया कि जब वह भाजपा के समर्थन में आये थे तब महाजन ने उनकी गाड़ी तोड़ी थी।
राज्यसभा में भाजपा की जीत के बाद कांग्रेस के छः विधायक पाला बदलकर भाजपा में शामिल हो गये तब इसका विरोध भाजपा के अन्दर कहीं से मुखर नहीं हुआ। जब दल बदल के कारण आये उपचुनावों में इन कांग्रेसियों को भाजपा से टिकट मिल गये तब यह विरोध थोड़ा सा व्यक्तिगत होकर सामने आया। बल्कि तब इन नये बने भाजपाइयों का जितना विरोध मुख्यमंत्री ने किया उतना भाजपा के भीतर नहीं उभरा। परन्तु लोकसभा चुनावों के बाद दिल्ली में बनी मोदी सरकार में प्रदेश को भागीदारी नहीं मिली अनुराग ठाकुर की जगह जे.पी. नड्डा गुजरात से राज्यसभा सांसद होने पर मंत्री बन गये। तब प्रदेश भाजपा के भीतरी समीकरणों का गणित बिगड़ा। इस बिगड़े गणित में कांग्रेस से भाजपायी बने नेताओं को मुख्यमंत्री और उनकी सरकार से सीधा भिड़ने की स्थिति बन गयी। आज कांग्रेस और मुख्यमंत्री के साथ नये बने भाजपायी सीधा टकराव में खड़े हैं। नादौन और हमीरपुर में हुई ई.डी. और आयकर की छापेमारी में विरोधी पक्ष की भूमिका यह नये भाजपायी निभा रहे हैं। मूल भाजपाइयों में से केवल नेता प्रतिपक्ष पूर्व मुख्यमंत्री जय राम ठाकुर ही सरकार पर हमलावर हो रहे हैं और बाकी भाजपायी तो विरोध की रस्म अदायगी भी नहीं कर पा रहे हैं। यह सही है कि इस समय सरकार अपने ही फैसलों से इस कदर जनता में बदनाम होती जा रही है कि भाजपा या किसी अन्य को सरकार का विरोध करने की आवश्यकता ही नहीं रही है। भाजपा इसी से खुश है कि उसे एक सुनियोजित विरोध करने की आवश्यकता ही नहीं है। लेकिन यदि कांग्रेस ने ही आने वाले दिनों में नेतृत्व में परिवर्तन करके किसी नये नेता को जिम्मेदारी सौंप दी तब भाजपा के पास सरकार के विरोध का कोई तार्किक आधार नहीं बचेगा।
इस समय प्रदेश की राजनीतिक स्थितियां जिस दौर से गुजर रही हैं और प्रदेश लगातार कर्ज के दलदल में फसता जा रहा है उसका सीधा कुप्रभाव रोजगार पर पड़ेगा। सरकार में रोजगार के अवसर लगातार कम होते जायेंगे। उद्योग पलायन करने के कगार पर पहुंच जायेंगे। इससे सीधा प्रदेश का नुकसान होगा और इसकी जिम्मेदारी सरकार के साथ ही विपक्ष पर भी आयेगी। यह प्रदेश का दुर्भाग्य है कि कांग्रेस के लोग सरकार होने के कारण विरोध में कुछ नहीं कर पा रहे हैं। भाजपा इसी नीति पर चल रही है कि कांग्रेस अपने ही भार के नीचे दबकर दम तोड़ देगी। इसलिये उसे कुछ करने की जरूरत ही नहीं है। इससे प्रदेश का कितना नुकसान हो रहा है और इस ओर किसी का ध्यान नहीं है।